एक ऐतिहासिक फैसले में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आज उत्तर प्रदेश पुलिस की उन अनियंत्रित शक्तियों को सीमित कर दिया, जिनके तहत वह व्यक्तियों के खिलाफ क्लास-बी हिस्ट्री शीट खोल सकती थी। कोर्ट ने प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करने पर जोर दिया। यह फैसला पुलिस द्वारा व्यक्तियों को “पेशेवर अपराधी” करार देने की प्रक्रिया को चुनौती देता है, जिसमें उचित प्रक्रियात्मक सुरक्षा का अभाव था।
क्या हैं क्लास-बी हिस्ट्री शीट?
यूपी पुलिस रेगुलेशन्स के तहत, क्लास-बी हिस्ट्री शीट्स उन व्यक्तियों के लिए खोली जाती हैं जो धोखाधड़ी जैसे गैर-हिंसक अपराधों में शामिल होते हैं। जस्टिस सिद्धार्थ और जस्टिस सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने आदेश दिया कि ऐसे किसी भी व्यक्ति को, जिसके खिलाफ पुलिस हिस्ट्री शीट खोलना चाहती है, अपनी आपत्ति दर्ज करने का अवसर दिया जाना चाहिए।
पुलिस प्रक्रिया में पारदर्शिता और न्याय की ओर कदम
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आपत्तियों पर विचार करने और उसके बाद ही एक तर्कसंगत आदेश पारित करने की आवश्यकता है। यह बदलाव पुलिस प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए किया गया है।
उपनिवेशकालीन नियमों की आलोचना
अपने 33-पृष्ठीय आदेश में, कोर्ट ने कहा कि वर्तमान पुलिस रेगुलेशन्स उपनिवेशकाल के समय के हैं और लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए डिज़ाइन नहीं किए गए थे। “बिना सुने किसी नागरिक को निगरानी में रखना उपनिवेशकालीन मानसिकता का प्रतीक है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत जीवन, स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है,” कोर्ट ने कहा।
क्या था मामला?
यह आदेश चार व्यक्तियों द्वारा दायर याचिका पर दिया गया, जिन्होंने दावा किया कि उनके खिलाफ खोली गई हिस्ट्री शीट प्रक्रिया और न्याय के नियमों का उल्लंघन करती है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया, और केवल पुलिस रिपोर्ट के आधार पर उनकी निगरानी शुरू कर दी गई।
क्लास-ए और क्लास-बी हिस्ट्री शीट्स में भेदभाव
कोर्ट ने बताया कि क्लास-ए हिस्ट्री शीट्स के लिए पहले से दिशानिर्देश मौजूद हैं, लेकिन क्लास-बी के लिए कोई गाइडलाइंस नहीं हैं, जिससे पुलिस को निरंकुश अधिकार मिलते हैं। यह प्रक्रिया नागरिकों के अधिकारों के लिए खतरा है और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
सरकार को दिए गए निर्देश
कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह हिस्ट्री शीट खोलने की प्रक्रिया में संशोधन करे, जिसमें व्यक्ति को आपत्ति दर्ज करने का अवसर मिले और हर साल हिस्ट्री शीट्स की समीक्षा हो। इसके तहत उन व्यक्तियों की हिस्ट्री शीट्स बंद की जाएं, जो बाद में बरी हो चुके हैं या जिन पर आरोप सिद्ध नहीं हुए।
इसके अलावा, प्रमुख सचिव (गृह) को तीन महीने के भीतर इस फैसले के अनुपालन की रिपोर्ट अदालत में प्रस्तुत करने के लिए कहा गया है। रिपोर्ट न मिलने पर अदालत मामले की फिर से सुनवाई करेगी।