इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो वैवाहिक मामलों में स्थानांतरण आवेदनों के लिए अधिकार क्षेत्र के मानदंडों को स्पष्ट करता है। न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र द्वारा दिए गए निर्णय में, न्यायालय ने इस बात से संबंधित प्रक्रियागत और कानूनी अस्पष्टताओं को संबोधित किया कि क्या लखनऊ पीठ के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले मामलों के लिए स्थानांतरण आवेदनों पर इलाहाबाद में मुख्य पीठ द्वारा विचार किया जा सकता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद एक स्थानांतरण आवेदन से उत्पन्न हुआ, जिसमें लखनऊ पीठ के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर एक पारिवारिक न्यायालय में लंबित वैवाहिक मामले को दूसरे जिले में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। आवेदक ने तर्क दिया कि कार्रवाई के कारण का एक हिस्सा इलाहाबाद में मुख्य पीठ की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर उत्पन्न हुआ, जिससे आवेदन को वहां दायर करना उचित था। हालांकि, स्टाम्प रिपोर्टिंग अनुभाग ने आपत्ति जताई, यह दावा करते हुए कि मामला विशेष रूप से लखनऊ पीठ के अधिकार क्षेत्र में आता है।
इस मामले ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के द्विभाजित अधिकार क्षेत्र और स्थानांतरण आवेदनों को नियंत्रित करने वाले प्रक्रियात्मक नियमों पर सवाल उठाया।
मुख्य कानूनी मुद्दे
अदालत ने कई महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्नों पर विचार किया:
1. हाईकोर्ट की पीठों का क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार:
मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इलाहाबाद में मुख्य पीठ के पास लखनऊ पीठ की क्षेत्रीय सीमाओं के भीतर आने वाले मामलों के लिए स्थानांतरण आवेदनों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार था।
2. सीपीसी और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम की प्रयोज्यता:
न्यायमूर्ति शैलेंद्र ने अधिकार क्षेत्र और वैवाहिक मामलों के हस्तांतरण को नियंत्रित करने वाले प्रक्रियात्मक और मूल नियमों को निर्धारित करने के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता (धारा 22-25) और पारिवारिक न्यायालय अधिनियम, 1984 के प्रासंगिक प्रावधानों की जांच की।
3. एक निर्णायक कारक के रूप में अपीलीय क्षेत्राधिकार:
अदालत ने यह भी विचार किया कि क्या लखनऊ पीठ के अपने क्षेत्र में पारिवारिक न्यायालयों पर अपीलीय क्षेत्राधिकार के कारण स्थानांतरण आवेदन केवल लखनऊ पीठ में ही दायर किए जाने चाहिए।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति शैलेंद्र ने कानून का विस्तृत विश्लेषण किया, जिसमें इस सिद्धांत पर जोर दिया गया कि अदालतें अपनी क्षेत्रीय सीमाओं से बंधी हुई हैं। उन्होंने कहा:
“प्रत्येक न्यायालय की अपनी स्थानीय या प्रादेशिक सीमाएँ होती हैं, जिसके परे वह अधिकार क्षेत्र का प्रयोग नहीं कर सकता।”
निर्णय में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि पारिवारिक न्यायालय अधिनियम राज्य सरकार की अधिसूचनाओं द्वारा निर्धारित विशिष्ट पारिवारिक न्यायालयों को अधिकार क्षेत्र प्रदान करता है, तथा अपीलीय अधिकार क्षेत्र संबंधित हाईकोर्ट पीठ के पास होता है। इस मामले में, लखनऊ पीठ की प्रादेशिक सीमाओं के भीतर पारिवारिक न्यायालय उस पीठ के अधीनस्थ हैं, जिससे लखनऊ पीठ उन मामलों से संबंधित स्थानांतरण आवेदनों के लिए उपयुक्त मंच बन जाती है।
न्यायालय ने दुर्गेश शर्मा बनाम जयश्री (2008) तथा शाह नवाज खान बनाम नागालैंड राज्य (2023) सहित प्रमुख उदाहरणों का हवाला देते हुए रेखांकित किया कि प्रक्रियागत विसंगतियों से बचने के लिए प्रादेशिक तथा अपीलीय अधिकार क्षेत्रों का सम्मान किया जाना चाहिए।
निर्णय
न्यायालय ने इलाहाबाद में मुख्य पीठ में दायर स्थानांतरण आवेदन को गैर-धारणीय बताते हुए खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि आवेदक लखनऊ पीठ के समक्ष राहत मांग सकता है। न्यायमूर्ति शैलेंद्र ने दोहराया कि अपीलीय अधिकार क्षेत्र स्थानांतरण आवेदनों के लिए उपयुक्त मंच निर्धारित करता है, जिससे प्रक्रियागत स्थिरता तथा प्रादेशिक सीमाओं का पालन सुनिश्चित होता है।