इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि वकीलों की निरंतर हड़ताल के कारण उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता (U.P. Revenue Code), 2006 के तहत चल रही कार्यवाही तय समय सीमा के भीतर पूरी नहीं होती है, तो इसके लिए संबंधित बार एसोसिएशन के पदाधिकारी न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) के दोषी माने जाएंगे।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल की पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हड़ताल के कारण न्यायिक कार्यों में बाधा डालना दया शंकर बनाम स्टेट ऑफ यूपी मामले में दिए गए निर्देशों का उल्लंघन है।
मामले की पृष्ठभूमि
याची परशुराम और एक अन्य ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए मांग की थी कि एसडीएम (उप जिला मजिस्ट्रेट), उतरौला, जिला बलरामपुर को उनके लंबित मुकदमे का निस्तारण जल्द से जल्द करने का निर्देश दिया जाए।
यह मामला (वाद संख्या 7405/2022, परशुराम आदि बनाम रामदीन आदि) उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता, 2006 की धारा 116 (जोत का विभाजन) के तहत 11 नवंबर 2022 से लंबित था।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता श्री विमल किशोर सिंह ने तर्क दिया कि कानून के मुताबिक मुकदमों का निपटारा समयबद्ध तरीके से होना चाहिए। उन्होंने यूपी राजस्व संहिता नियमावली, 2016 के नियम 109(10) का हवाला दिया, जिसके अनुसार उप-जिलाधिकारी (SDM) को छह महीने के भीतर विभाजन के बाद का फैसला करने का प्रयास करना चाहिए। इसके बावजूद, यह मामला 2022 से लंबित था।
राज्य सरकार की ओर से स्थायी अधिवक्ता श्री योगेश कुमार अवस्थी ने पक्ष रखा।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
न्यायमूर्ति देशवाल ने इस मामले में हाईकोर्ट के पूर्व फैसले दया शंकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य [2023 (6) A.D.J. 181] का उल्लेख किया। दया शंकर मामले में हाईकोर्ट ने राजस्व संहिता के तहत विभिन्न प्रकार के वादों के निस्तारण के लिए स्पष्ट समय सीमा निर्धारित की थी, जैसे:
- धारा 24 (सीमा विवाद): 3 महीने
- धारा 34 (नामांतरण/म्यूटेशन): अविवादित में 45 दिन और विवादित में 90 दिन
- धारा 116 (बंटवारा): 6 महीने
मौजूदा मामले की ऑर्डर शीट देखने पर कोर्ट ने पाया कि कार्यवाही में देरी का मुख्य कारण पीठासीन अधिकारी की अनुपलब्धता नहीं, बल्कि “तहसील उतरौला के अधिवक्ताओं की निरंतर हड़ताल” थी।
कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा:
“यह स्पष्ट है कि तहसील उतरौला के बार एसोसिएशन की हड़ताल ही प्रश्नगत कार्यवाही के निष्कर्ष तक न पहुँचने का कारण है। इसलिए, प्रथम दृष्टया यह अवमानना पीठासीन अधिकारी द्वारा नहीं, बल्कि बार एसोसिएशन, उतरौला द्वारा की गई है।”
निर्णय और सामान्य निर्देश (General Directions)
हाईकोर्ट ने याचिका का निस्तारण करते हुए एसडीएम, उतरौला को निर्देश दिया कि वे संबंधित केस (संख्या 7405/2022) का फैसला छह महीने के भीतर करें।
इसके साथ ही, कोर्ट ने पूरे उत्तर प्रदेश के लिए सामान्य निर्देश (General Directions) जारी किए। कोर्ट ने कहा कि यह मुद्दा बड़े पैमाने पर जनता, विशेषकर गरीब वादकारियों और किसानों को प्रभावित कर रहा है।
कोर्ट का आदेश:
“…यदि किसी तहसील, कलेक्ट्रेट या कमिश्नरी के बार एसोसिएशन की निरंतर हड़ताल के कारण राजस्व संहिता के तहत कार्यवाही दया शंकर मामले में तय समय सीमा के भीतर पूरी नहीं हो पाती है, तो बार एसोसिएशन के पदाधिकारी दया शंकर मामले के निर्देशों का उल्लंघन करने के लिए इस कोर्ट की अवमानना के लिए उत्तरदायी होंगे और प्रभावित पक्ष संबंधित बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू करने के लिए स्वतंत्र होगा।”
हाईकोर्ट ने अपने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया कि इस आदेश की प्रति राजस्व परिषद (Board of Revenue) के अध्यक्ष को भेजी जाए, ताकि इसे तहसील से लेकर कमिश्नरी स्तर तक सभी राजस्व अधिकारियों को परिपत्रित किया जा सके और नोटिस बोर्ड पर चस्पा किया जा सके।
केस विवरण:
- केस टाइटल: परशुराम और अन्य बनाम उप जिला मजिस्ट्रेट, उतरौला, बलरामपुर और अन्य
- केस नंबर: Matters Under Article 227 No. 6938 of 2025
- पीठ: न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल
- याचिकाकर्ता के वकील: विमल किशोर सिंह, प्रेमकांत
- प्रतिवादी के वकील: सी.एस.सी., पंकज गुप्ता

