इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इमरान खान बनाम राज्य बनाम उ.प्र. व अन्य मामले में महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा है कि सोशल मीडिया पर किसी पोस्ट को केवल “लाइक” करना अश्लील या भड़काऊ सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण नहीं माना जा सकता और इस पर सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2008 की धारा 67 लागू नहीं होती। न्यायमूर्ति सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने आरोपी इमरान खान के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
यह आदेश दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अंतर्गत दायर आवेदन संख्या 26678/2024 पर पारित किया गया, जिसमें आरोप पत्र दिनांक 06.04.2021, संज्ञान आदेश दिनांक 07.02.2022 एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा के समक्ष लंबित आपराधिक वाद संख्या 2961/2022 को रद्द करने की मांग की गई थी।
मामला:
मूल प्राथमिकी मामला अपराध संख्या 53/2019 के तहत थाना मंटोला, जिला आगरा में दर्ज की गई थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार, इमरान खान ने सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश पोस्ट किए जिससे मुस्लिम समुदाय के लगभग 600-700 लोगों की भीड़ बिना अनुमति के एकत्रित हो गई, जिससे शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका उत्पन्न हुई।
प्राथमिकी भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67, और आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम की धारा 7 के तहत दर्ज की गई थी।
याचिकाकर्ता की दलीलें:
अधिवक्ता अभिषेक अंकुर चौरसिया और दीवान सैफुल्लाह खान ने दलील दी कि साइबर क्राइम सेल की रिपोर्ट के अनुसार, इमरान खान के फेसबुक अकाउंट पर कोई आपत्तिजनक सामग्री नहीं पाई गई। उन्होंने यह भी बताया कि सह-आरोपी इमरान काज़ी के पक्ष में 18.10.2023 को पारित आदेश में यह स्पष्ट किया गया था कि विवेचक द्वारा केवल चौधरी फरहान उस्मान द्वारा डाली गई एक पोस्ट को सह-आरोपी ने “लाइक” किया था, न कि साझा या प्रकाशित किया।
वहीं, शासकीय अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता के फेसबुक अकाउंट पर कोई सामग्री नहीं मिली क्योंकि उसे हटा दिया गया था, लेकिन केस डायरी में व्हाट्सएप तथा अन्य सोशल मीडिया पर कुछ सामग्री होने की बात उल्लेखित है।
न्यायालय की टिप्पणी:
कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 67 की व्याख्या करते हुए कहा:
“अश्लील सामग्री का प्रकाशन या प्रसारण एक दंडनीय अपराध है… किसी पोस्ट या संदेश को ‘प्रकाशित’ तब माना जाएगा जब उसे पोस्ट किया जाए, और ‘प्रसारित’ तब जब उसे साझा या रिट्वीट किया जाए।”
इस आधार पर कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किसी पोस्ट को “लाइक” करना न तो प्रकाशन है, न ही प्रसारण, अतः यह धारा 67 के अंतर्गत नहीं आता।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया:
“अभिलेख में ऐसा कोई संदेश नहीं है जो भड़काऊ प्रकृति का हो, और चौधरी फरहान उस्मान द्वारा डाले गए संदेश को केवल लाइक करना सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 67 या किसी अन्य आपराधिक अपराध के अंतर्गत दंडनीय नहीं है।”
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भड़काऊ या अश्लील सामग्री का सक्रिय रूप से प्रसार होना आवश्यक है, केवल “लाइक” करना मात्र सहमति या प्रशंसा का संकेत है, न कि प्रकाशन।
निर्णय:
कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई आपत्तिजनक या भड़काऊ सामग्री से जुड़ा प्रमाण नहीं है। न्यायालय ने कहा:
“याचिकाकर्ता के विरुद्ध कोई अपराध सिद्ध नहीं होता।”
अतः मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, आगरा के समक्ष लंबित वाद संख्या 2961/2022 को रद्द कर दिया गया। साथ ही ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि यदि विधिक रूप से उचित हो तो अन्य सह-आरोपियों के विरुद्ध कार्यवाही जारी रखी जा सकती है।
मामले का शीर्षक: इमरान खान बनाम राज्य उ.प्र. व अन्य
मामला संख्या: धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत आवेदन संख्या 26678/2024