इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कर अधिकारियों की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि जीएसटी व्यवस्था देश में व्यापार को आसान बनाने के उद्देश्य से लागू की गई थी, लेकिन अधिकारी इसके विपरीत कार्य कर रहे हैं और करदाताओं को परेशान कर रहे हैं।
न्यायमूर्ति पियूष अग्रवाल ने सेफकॉन लाइफसाइंस प्राइवेट लिमिटेड की कर रिट याचिका स्वीकार करते हुए कहा कि जब वस्तुओं की वास्तविक आवाजाही साबित हो चुकी हो और उसका खंडन न किया गया हो, तब जीएसटी अधिनियम, 2017 की धारा 74 के तहत कार्यवाही करना पूरी तरह से अनुचित है।
याचिकाकर्ता कंपनी ने यूनिमैक्स फार्मा केम, भिवंडी (महाराष्ट्र) के साथ लेन-देन किए थे, जिनके लिए चालान, ई-वे बिल, परिवहन बिल और बैंकिंग रिकॉर्ड प्रस्तुत किए गए। आपूर्तिकर्ता द्वारा दाखिल जीएसटी रिटर्न में भी ये लेन-देन दर्ज थे।

इसके बावजूद कंपनी को धारा 74 के तहत नोटिस जारी किया गया कि उसने इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) गलत तरीके से लिया है क्योंकि आपूर्तिकर्ता का पंजीकरण रद्द कर दिया गया था। याचिकाकर्ता का जवाब और अपील दोनों ही विभाग ने खारिज कर दिए।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि आपूर्तिकर्ता की जीएसटीआर-3बी रिटर्न में संबंधित लेन-देन पर कर जमा दिखाया गया है और सभी आवश्यक दस्तावेज विभाग व न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए।
न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्ता द्वारा सभी आवश्यक दस्तावेज पेश किए जाने के बावजूद अधिकारियों ने उन्हें महत्व नहीं दिया। याचिकाकर्ता और आपूर्तिकर्ता दोनों की रिटर्न में लेन-देन दर्ज थे, जिसे विभाग ने नकारा भी नहीं।
न्यायालय ने कहा, “याचिकाकर्ता और आपूर्तिकर्ता के बीच लेन-देन में किसी भी प्रकार की अनियमितता सामग्री में दर्ज नहीं है। इसके अलावा, जिस सामग्री पर विभाग ने भरोसा किया, वह याचिकाकर्ता को उपलब्ध कराई जानी चाहिए थी।”
कोर्ट ने केंद्र सरकार के 13 दिसंबर 2023 के परिपत्र का भी उल्लेख किया, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि धारा 74 की कार्यवाही तभी हो सकती है जब धोखाधड़ी, जानबूझकर गलतबयानी या तथ्य छिपाकर कर से बचने की कोशिश की गई हो, अन्यथा नहीं।
हाईकोर्ट के इस फैसले से यह स्पष्ट संदेश गया है कि केवल आपूर्तिकर्ता का पंजीकरण रद्द होने के आधार पर, नियमों का पालन करने वाले खरीदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती।
सेफकॉन लाइफसाइंस के पक्ष में कार्यवाही रद्द करते हुए अदालत ने कहा कि जीएसटी का उद्देश्य ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बढ़ावा देना है और इसके विपरीत दुरुपयोग स्वीकार नहीं किया जाएगा।