इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में उस रिट याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें बिजली विभाग के ट्रांसफार्मर में आग लगने से हुए नुकसान के लिए 55 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस मामले में तथ्यों को लेकर विवाद है, जिसका निर्धारण केवल साक्ष्यों के आधार पर किया जा सकता है, इसलिए रिट क्षेत्राधिकार के तहत इसमें राहत नहीं दी जा सकती।
न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुधांशु चौहान की खंडपीठ ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा कि आग लगने का कारण और नुकसान की मात्रा तय करने के लिए सबूतों की आवश्यकता होती है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता मोहम्मद रफीक ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में रिट याचिका (रिट-सी संख्या 29227 वर्ष 2025) दायर की थी। याचिकाकर्ता का दावा था कि उसकी दुकान के सामने स्थापित बिजली विभाग के ट्रांसफार्मर में आग लग गई थी। उनका आरोप था कि यह आग उनकी दुकान और गोदाम तक फैल गई, जिससे उन्हें भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
याचिकाकर्ता ने इस घटना में हुए नुकसान का अनुमान 55,00,000 रुपये (पचपन लाख रुपये) लगाया था। उन्होंने मुआवजे के संबंध में अधिकारियों को 22 मई 2025 को एक अभ्यावेदन भी दिया था, लेकिन कोई राहत न मिलने पर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अमित कुमार शुक्ला और राहुल कुमार त्रिपाठी ने पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट से पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड के प्रबंध निदेशक को निर्देश देने की मांग की कि वे याचिकाकर्ता के 22 मई 2025 के आवेदन पर निर्णय लें और मुआवजे का भुगतान सुनिश्चित करें। याचिका में परमादेश (Mandamus) की प्रकृति में रिट जारी करने की प्रार्थना की गई थी।
वहीं, प्रतिवादियों की ओर से मुख्य स्थायी अधिवक्ता (C.S.C.) और अधिवक्ता प्रांजल मेहरोत्रा ने याचिका का विरोध किया।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
हाईकोर्ट ने मांगी गई राहत की प्रकृति की जांच की और पाया कि मामला पूरी तरह से तथ्यात्मक निर्धारण पर निर्भर है। कोर्ट का मानना था कि आग लगने का कारण क्या था और वास्तव में कितना नुकसान हुआ, यह जांच का विषय है।
खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा:
“यह प्रश्न कि क्या याची को उसकी दुकान और गोदाम में आग लगने से 55 लाख रुपये का नुकसान हुआ है, और क्या यह आग बिजली विभाग के ट्रांसफार्मर के कारण लगी थी, यह तथ्य का एक विवादित प्रश्न (Disputed question of fact) है, जिसे केवल रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों के आधार पर निर्धारित किया जा सकता है।”
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि तथ्यों के इस तरह के विवाद को देखते हुए, वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा मांगी गई राहत इस न्यायालय द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती।
निर्णय
परिणामस्वरूप, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रिट याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता के अधिकारों को सुरक्षित रखते हुए उन्हें “कानून के तहत उपलब्ध उचित उपाय (Appropriate Remedy) का लाभ उठाने की स्वतंत्रता” प्रदान की है। इसका अर्थ है कि याचिकाकर्ता नुकसान की भरपाई के लिए दीवानी न्यायालय या अन्य सक्षम मंच पर साक्ष्यों के साथ अपना दावा पेश कर सकते हैं।
केस विवरण:
केस टाइटल: मो. रफीक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और 4 अन्य
केस नंबर: रिट-सी संख्या 29227 वर्ष 2025
कोरम: न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति सुधांशु चौहान
याचिकाकर्ता के वकील: अमित कुमार शुक्ला, राहुल कुमार त्रिपाठी
प्रतिवादी के वकील: सी.एस.सी., प्रांजल मेहरोत्रा
साइटेशन: 2025:AHC:227883-DB

