इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक लिव-इन कपल की सुरक्षा याचिका खारिज कर दी है, यह कहते हुए कि महिला अभी भी कानूनी रूप से शादीशुदा है और वह ऐसे संबंध के लिए संरक्षण का अधिकार नहीं मांग सकती जो उसके पति के वैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह ने 7 नवंबर को पारित आदेश में सोनम और उसके साथी की याचिका खारिज कर दी। दोनों ने आरोप लगाया था कि महिला के पति और पुलिस द्वारा उत्पीड़न का खतरा है और वे शांतिपूर्वक साथ रहने हेतु सुरक्षा चाहते हैं।
अदालत ने स्पष्ट किया कि भले ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता मौलिक अधिकार है, लेकिन यह किसी अन्य व्यक्ति के वैधानिक अधिकारों की कीमत पर लागू नहीं हो सकती।
न्यायालय ने कहा कि “एक व्यक्ति की स्वतंत्रता वहीं समाप्त होती है जहां दूसरे व्यक्ति का वैधानिक अधिकार शुरू होता है।” अदालत ने यह भी माना कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति का अपनी पत्नी के साथ रहने का अधिकार है और ऐसे हालात में सुरक्षा देना “अवैध संबंधों को अप्रत्यक्ष सहमति देने” जैसा होगा।
हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि कोई भी विवाहित व्यक्ति तब तक लिव-इन संबंध के लिए संरक्षण नहीं मांग सकता जब तक वह विधि अनुसार अपनी वैवाहिक स्थिति को समाप्त या अलग न कर ले।
अदालत ने यह भी कहा कि जब तक याचिकाकर्ताओं के पास कोई विधिसम्मत और न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय अधिकार नहीं है, तब तक उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए मैंडमस जारी नहीं किया जा सकता।
न्यायालय ने कहा कि यदि महिला को अपने पति से कोई विवाद है, तो उसे कानून के अनुसार अलगाव या तलाक का रास्ता अपनाना होगा, न कि अदालत से ऐसे संबंध को मान्यता देने का आग्रह करना जो उसके पति के वैधानिक अधिकारों के विपरीत हो।




