साथ रहने से नहीं मिलता ‘पत्नी’ का दर्जा: पहली शादी से तलाक लिए बिना दूसरी शादी करने वाली महिला को गुजारा भत्ता देने से इलाहाबाद हाईकोर्ट का इनकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि यदि कोई महिला अपनी पहली शादी के कायम रहते हुए दूसरी शादी करती है, तो वह दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत गुजारा भत्ता (Maintenance) पाने की हकदार नहीं है। जस्टिस मदन पाल सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि लंबे समय तक साथ रहने (cohabitation) से किसी महिला को कानूनी रूप से ब्याहता ‘पत्नी’ का दर्जा नहीं मिल जाता, यदि उसकी शादी पहले से ही शून्य (void) है। कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को सही ठहराया जिसमें महिला की गुजारा भत्ता याचिका खारिज कर दी गई थी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला कानपुर नगर की फैमिली कोर्ट के 12 फरवरी 2024 के आदेश के खिलाफ दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका (Criminal Revision) से जुड़ा है। फैमिली कोर्ट ने याची (महिला) द्वारा धारा 125 CrPC के तहत दायर भरण-पोषण की अर्जी को खारिज कर दिया था।

याची का विवाह 29 अप्रैल 1992 को उसके पहले पति के साथ हुआ था, जिससे उनके दो बच्चे भी थे। वैवाहिक कलह के कारण दोनों अलग रहने लगे। इस दौरान याची की मुलाकात विपक्षी संख्या 2 से हुई, जो उन्नाव जिला न्यायालय में अधिवक्ता हैं। याची का आरोप है कि विपक्षी ने उन्हें सलाह दी कि नोटरी समझौते के जरिए पिछली शादी खत्म की जा सकती है और दावा किया कि उन्होंने (विपक्षी ने) अपनी पहली शादी भी इसी तरह खत्म कर ली है।

READ ALSO  आदेशों की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने के लिए अधिवक्ताओं द्वारा फोलियो पर एडवोकेट बैंड, गैवेल और न्याय के प्रतीक का उपयोग कैसे किया जाता है? इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पूछा

इस पर विश्वास करते हुए, याची और विपक्षी ने 30 जून 2009 को कथित रूप से शादी कर ली और लगभग एक दशक तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे। याची का दावा था कि आधार कार्ड और पासपोर्ट जैसे दस्तावेजों में भी उसका नाम विपक्षी की पत्नी के रूप में दर्ज है। हालांकि, मार्च 2018 में विपक्षी ने उसे घर से निकाल दिया, जिसके बाद उसने गुजारा भत्ता के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया।

पक्षकारों की दलीलें

याची के वकील ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट का फैसला गलत है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे (2014) के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि कानून उन रिश्तों को भी मान्यता देता है जहां पक्षकार लंबे समय तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे हों। ऐसे मामलों में शादी के सख्त सबूत की जरूरत नहीं होती।

दूसरी ओर, विपक्षी संख्या 2 के वकील ने दलील दी कि याची ने अपने पहले पति से कभी भी कानूनी रूप से तलाक नहीं लिया है। इसके अलावा, यह स्वीकार किया गया कि विपक्षी संख्या 2 भी पहले से शादीशुदा थे और अपनी पहली पत्नी व बच्चों के साथ रह रहे थे। वकील ने तर्क दिया कि चूंकि दोनों पक्षकारों के जीवनसाथी जीवित थे और पहली शादियां कायम थीं, इसलिए उनके बीच का कथित विवाह शून्य (void) है और गुजारा भत्ता का दावा नहीं किया जा सकता।

READ ALSO  सुप्रीम कोर्ट ने एनसीआर में वाहनों से होने वाले प्रदूषण पर डीडीए और एमसीडी से जवाब मांगा

कोर्ट का विश्लेषण और फैसला

जस्टिस मदन पाल सिंह ने मामले के रिकॉर्ड का अवलोकन करने पर पाया कि याची की पहली शादी कानूनी रूप से कभी भंग नहीं हुई थी। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत दायर उसकी तलाक की याचिका ‘डिफ़ॉल्ट’ में खारिज हो गई थी, जिसका अर्थ है कि कानूनन उसकी पहली शादी अस्तित्व में थी।

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 का हवाला देते हुए कहा कि जीवनसाथी के जीवित रहते हुए की गई दूसरी शादी शुरू से ही शून्य (void ab initio) होती है और यह पति-पत्नी का कानूनी दर्जा नहीं देती।

याची द्वारा बादशाह केस का हवाला दिए जाने पर हाईकोर्ट ने कहा कि उस मामले के तथ्य अलग थे। वहां दूसरी पत्नी को पति की पहली शादी के बारे में जानकारी नहीं थी, जबकि यहां याची को पता था कि उसका अपना तलाक नहीं हुआ है। कोर्ट ने कहा कि नोटरी के जरिए तलाक या शादी का कोई कानूनी आधार नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट के सविताबेन सोमभाई भाटिया बनाम गुजरात राज्य (2005) के फैसले का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने दोहराया कि धारा 125 CrPC में ‘पत्नी’ शब्द का दायरा इतना नहीं बढ़ाया जा सकता कि उसमें वह महिला भी शामिल हो जाए जो कानूनी रूप से विवाहित नहीं है।

READ ALSO  कोर्ट मैरिज कैसे करे? जानिए प्रक्रिया और जरूरी दस्तावेज

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:

“कानूनन, भले ही शादी की रस्में निभाई गई हों, लेकिन यह शादी शून्य होगी क्योंकि आवेदक का पिछला वैवाहिक बंधन कायम था। इस प्रकार, केवल लंबे समय तक साथ रहने के आधार पर वह धारा 125 CrPC के तहत गुजारा भत्ता का दावा नहीं कर सकती।”

समाज पर इसके प्रभाव को लेकर कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की:

“यदि समाज में ऐसी प्रथा को अनुमति दी जाती है… तो धारा 125 CrPC का उद्देश्य और पवित्रता ही खत्म हो जाएगी और विवाह संस्था अपनी कानूनी और सामाजिक अखंडता खो देगी। ऐसा प्रस्ताव न तो विधायी मंशा के अनुरूप है और न ही हिंदू परिवार कानून की नैतिक और सांस्कृतिक नींव के।”

अंततः, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने माना कि याची धारा 125 CrPC के उद्देश्यों के लिए कानूनी रूप से विवाहित पत्नी की श्रेणी में नहीं आती है। कोर्ट ने पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles