इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बलात्कार और POCSO अधिनियम के तहत दर्ज एक गंभीर आपराधिक मामले में आरोपी विजय कुमार उर्फ कृष्णा को यह कहते हुए जमानत दे दी कि फॉरेंसिक साक्ष्य में स्पष्ट विरोधाभास हैं और डीएनए परीक्षण में अनुचित देरी से साक्ष्य की विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई है। यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने क्रिमिनल मिस. बेल आवेदन संख्या 750 ऑफ 2025 में पारित किया।
मामले की पृष्ठभूमि
एफआईआर के अनुसार, 15 वर्षीय पीड़िता 24 मार्च 2021 की शाम करीब 7:30 बजे शौच के लिए गई थी, तभी आरोपी और एक अन्य अज्ञात व्यक्ति ने उसे पकड़कर मारपीट की और बलात्कार किया। एफआईआर 18 घंटे की देरी से दर्ज की गई, जिसके बारे में बचाव पक्ष ने कोई उचित स्पष्टीकरण न होने की बात कही।
प्रारंभिक जांच के बाद विवेचक ने 23 अप्रैल 2021 को क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी थी और झूठी रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए पीड़िता के विरुद्ध धारा 182 सीआरपीसी के तहत कार्रवाई का प्रस्ताव भी दिया गया था। बाद में पीड़िता और उसके पिता ने सीएम पोर्टल के माध्यम से आपत्ति दर्ज कराई, जिसके आधार पर दोबारा जांच शुरू की गई।

आवेदक की ओर से तर्क
आवेदक की ओर से अधिवक्ता अखिलेश सिंह, अतुल कुमार शाही, पंकज सिंह और शिवम यादव ने प्रस्तुत किया:
- एफआईआर में अनावश्यक देरी हुई है।
- 25 मार्च 2021 को कराए गए चिकित्सीय परीक्षण में पीड़िता के शरीर पर कोई चोट नहीं पाई गई।
- प्रारंभिक फॉरेंसिक रिपोर्ट में यौन उत्पीड़न का कोई संकेत नहीं मिला।
- पीड़िता के अंडरवियर पर मानव रक्त और लोअर पर शुक्राणु मिलने की बात रिपोर्ट में है, लेकिन निष्कर्ष अस्पष्ट और विरोधाभासी हैं।
- डीएनए सैंपल घटना के 2.5 वर्ष बाद 25 नवंबर 2023 को लिया गया, और 25 दिनों की देरी से लैब भेजा गया, जिससे साक्ष्य की शुद्धता पर संदेह उत्पन्न होता है।
- साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
- पीड़िता और उसके पिता द्वारा पहले एसएसपी मैनपुरी को दिए गए शपथपत्र में कहा गया था कि आरोपी ने कोई अपराध नहीं किया और गांववालों के दबाव में एफआईआर दर्ज कराई गई थी।
- यह एफआईआर स्वयं आरोपी के घायल होने की घटना के जवाब में दायर की गई थी, जिसमें पीड़िता के परिवार पर चार्जशीट दाखिल हुई थी।
यह भी कहा गया कि आवेदक का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह 16 नवंबर 2024 से जेल में है।
राज्य व सूचक पक्ष के तर्क
राज्य व पीड़िता की ओर से अधिवक्ता संजय मिश्रा व अपर सरकारी अधिवक्ता सुनील कुमार ने तर्क दिया:
- एफआईआर तत्काल दर्ज की गई थी और हाईस्कूल अंकपत्र के अनुसार पीड़िता की जन्मतिथि 3 अप्रैल 2005 है, जिससे घटना के समय उसकी उम्र 15 वर्ष 11 माह थी।
- प्रारंभिक जांच में विवेचक ने केवल 25 दिनों में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी, जो जल्दबाजी में की गई थी।
- पीड़िता के पिता ने उच्च न्यायालय में रिट याचिका संख्या 4858/2021 दाखिल कर निष्पक्ष जांच की मांग की, जिस पर 3 अगस्त 2021 को न्यायालय ने पुलिस को निष्पक्ष जांच के निर्देश दिए।
- इसके अनुपालन में डीएनए जांच हेतु आवेदन प्रस्तुत किया गया और मेडिकल बोर्ड गठित किया गया।
- एसएसपी को दिया गया कथित शपथपत्र फर्जी है, जिसे पीड़िता ने स्वयं नकार दिया।
- इसके बाद भी पीड़िता द्वारा रिट याचिका संख्या 19095/2024 दाखिल की गई, जिसमें 19 नवंबर 2024 को पुनः निष्पक्ष जांच के आदेश दिए गए।
- सह-अभियुक्त चंद्रशेखर को 7 मई 2025 को डीएनए रिपोर्ट के आधार पर अग्रिम जमानत मिली थी, जिसमें आरोपी विजय कुमार से मेल खाने की पुष्टि की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ और निष्कर्ष
न्यायालय ने फॉरेंसिक रिपोर्टों में विरोधाभास और साक्ष्य भेजने में देरी पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा:
“रिकॉर्ड पर मौजूद दो फॉरेंसिक रिपोर्टों में गंभीर विसंगति है। डीएनए रिपोर्ट, जो अभियोजन के पक्ष में प्रतीत होती है, 25 दिन की अनावश्यक और बिना स्पष्टीकरण देरी के कारण अविश्वसनीय हो जाती है।”
न्यायालय ने ‘चेन ऑफ कस्टडी’ (साक्ष्य की शृंखला) को आपराधिक न्यायशास्त्र में अत्यंत महत्वपूर्ण बताया और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय Prakash Nishad v. State of Maharashtra का हवाला दिया:
“साक्ष्य भेजने में देरी अस्वीकार्य है और इससे उनके दूषित या छेड़छाड़ होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।”
इसके अलावा Irfan @ Bhayu Mevati v. State of Madhya Pradesh (2025), Anokhilal v. State of Madhya Pradesh, Rahul v. State of NCT of Delhi, Krishan Kumar Malik v. State of Haryana और Pattu Rajan v. State of Tamil Nadu जैसे मामलों का भी उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में डीएनए रिपोर्ट को अत्यधिक सावधानी से देखा जाना चाहिए।
अंतिम निर्णय
न्यायालय ने कहा:
“मामले की परिस्थितियों, एफआईआर में देरी, परस्पर विरोधी फॉरेंसिक रिपोर्टों, डीएनए परीक्षण में देरी और मेडिकल परीक्षण में अभियोजन की कहानी की पुष्टि न होने को ध्यान में रखते हुए… कोर्ट की राय है कि आवेदक को जमानत दिए जाने का मामला बनता है।”
अतः आरोपी विजय कुमार उर्फ कृष्णा को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया गया, बशर्ते वह व्यक्तिगत बंधपत्र और दो जमानती प्रस्तुत करे। साथ ही, निम्नलिखित शर्तें लागू की गईं:
- अभियुक्त साक्ष्य से छेड़छाड़ नहीं करेगा।
- अभियुक्त गवाहों को धमकाएगा या प्रभावित नहीं करेगा।
- अभियुक्त नियमित रूप से ट्रायल कोर्ट में पेश होगा।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जमानत आदेश में की गई टिप्पणियाँ ट्रायल कोर्ट की स्वतंत्र विचार प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करेंगी।
मामले का शीर्षक: Vijay Kumar @ Krishna बनाम State of U.P. and Others
मामला संख्या: Criminal Misc. Bail Application No. 750 of 2025