नवीनतम High Court के आदेश में, कल Allahabad High Court के माननीय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर का निर्णय है, जिसमें उन्होने एक जूवनाइल की बेल खारिज कर दी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना है कि धारा 437 और 439 सीआरपीसी के तहत वयस्कों के मामले में लागू बेल में समानता का नियम कानून जुवेनाइल की जमानत पर लागू नहीं होता है।
अभिषेक कुमार यादव बनाम स्टेट ऑफ़ यूपी एवं अन्य मामले के संक्षिप्त तथ्य इस प्रकार है
शिकायतकर्ता के अनुसार, वो मृतक और अन्य रिश्तेदार पास के एक क्षेत्र में एक समारोह में भाग लेने गए थे। जब वे बंधे पर पहुँचे, तो उन पर अभिषेक कुमार यादव और अन्य आरोपियों ने लोहे की छड़ और पाइप से हमला किया।
मुखबिर ने कहा कि मृतकों को घेर लिया गया था और उनकी हत्या कर दी गई थी – दो अन्य लोग जो मृतक के साथ यात्रा कर रहे थे, वे बुरी तरह से आहत थे लेकिन अपनी जान बचाने में सफल रहे।
सभी आरोपियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए, और याची ने दावा किया कि वह घटना के वक्त एक किशोर था और इस कारण उसने किशोर न्याय बोर्ड में आवेदन किया था। याची को बोर्ड द्वारा किशोर घोषित किया गया था और उसकी उम्र घटना की तारीख को 17 वर्ष नौ महीने और 19 दिन घोषित की गई थी।
याची ने किशोर न्याय बोर्ड के समक्ष जमानत अर्जी दायर की, लेकिन उसकी जमानत अर्जी खारिज कर दी गई। सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक अपील दायर की गई थी जिसे भी खारिज कर दिया गया था।
सत्र न्यायाधीश के आदेश से क्षुब्ध होकर तत्काल पुनरीक्षण याचिका दायर की गई।
Allahabad High Court के समक्ष कार्यवाही
याची के वकील द्वारा उठाए गए तर्क-
वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत ने याची की जमानत याचिका को अस्वीकार करके एक त्रुटि की थी। उन्होंने कहा कि क्योंकि किशोर न्याय बोर्ड ने याची को किशोर घोषित किया है, इसलिए उसे जमानत दी जानी चाहिए। अधिवक्ता ने आगे कहा कि सत्र न्यायाधीश को अपराध की गंभीरता पर विचार नहीं करना चाहिए था क्योंकि याची एक किशोर था।
यह आगे प्रस्तुत किया गया था कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट की धारा 12 (1) के तहत केस को डिस्-एंटाइटेलिंग श्रेणी के तहत आने पर ही जमानत याचिका खारिज की जा सकती है।
विपक्षी पार्टी द्वारा उठाए गए तर्क।
विपरीत पक्ष के वकील ने सत्र न्यायालय का आदेश को न्यायपूर्ण और वैधानिक कहा, और हाईकोर्ट को इसमें हस्तक्षेप न करने की प्राथर्ना की।
हाईकोर्ट का विशलेषण
कोर्ट ने देखा कि जब एक किशोर की जमानत याचिका पर विचार करने की बात आती है, तो वयस्कों की तुलना के पैरामीटर नहीं लगायो जा सकते। कोर्ट ने विशेष रूप से किशोर न्याय अधिनियम की धारा 12 (1) में उल्लिखित प्रावधानों का उल्लेख किया और कहा कि यदि किशोर का मामला उक्त धारा के अधीन आता है, तो जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
इसके अलावा, अदालत ने इस तथ्य पर ध्यान दिया कि इस विशेष मामले में अभियुक्त 16 वर्ष से अधिक उम्र का था और सिर्फ 18 वर्ष पूरा करने ही वाला था। दूसरे शब्दों में, वह सही और गलत के बीच अंतर करने में सक्षम था।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि कोर्ट बलात्कार या हत्या जैसे भीषण अपराधों के आरोपी को जमानत पर रिहा करने की अनुमति देता है, तो यह समाज में एक बहुत ही गलत संदेश देता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि याची जैसे अपराधी बड़े पैमाने पर समाज को नुकसान पहुंचा सकता है।
माननीय न्यायाधीश ने यह भी देखा कि समानता का नियम, जो सामान्य रूप से धारा 437 या 439 सीआरपीसी के तहत जमानत के मामलों में लागू होता है, वह कानून Juvenile in Conflict with law पर आकर्षित नहीं हो सकता है, जहां Conflict में एक और बच्चा उसी अपराध में अधिनियम के तहत जमानत की छूट दी जाती है।
कोर्ट ने कहा दो बच्चों की बेल के मामले मंे अलग-अलग परिस्थिति हो सकती है, जैसे कि एक के मामले में, न्यायालय सामाजिक जांच रिपोर्ट, पुलिस रिकॉर्ड और जमानत पर रिहा होने वाली अन्य परिस्थितियों के आधार पर युवा अपराधी को एक ज्ञात अपराधी के साथ नहीं मिलाएगा या उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में नहीं लाएगा, लेकिन दूसरे के मामले में, निष्कर्ष बच्चे की परिस्थितियों को देखते हुए, इसके विपरीत हो सकता है।
हाईकोट ने सामाजिक जांच रिपोर्ट देखने के बाद पाया कि याची को जमानत नहीं दी जानी चाहिए।
हालॉंकि कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को ट्रायल जल्द पूर्ण करने का निर्देश दिया है। साथ ही यह भी निर्देशित किया गया है कि यदि गवाह मामले में उपस्थित नहीं होते हैं, तो उनके खिलाफ कार्यवाही की जाये।
Case Details:-
Title: Abhishek Kumar Yadav vs State Of U.P. And Anr
Case No. CRIMINAL REVISION No. – 1221 of 2019
Date of Order: 21.09.2020
Coram: Hon’ble Justice J.J. Munir
Advocates: Counsel for Revisionist:- Anand Prakash Srivastava, Matiur Rehman Khan, Sugendra Kumar Yadav Counsel for Opposite Party:- G.A.