इलाहाबाद हाईकोर्ट का आदेश: वकीलों द्वारा अदालत कक्ष को विवाह केंद्र की तरह इस्तेमाल नहीं किया जा सकता; दिया बेदखली का आदेश

एक नाटकीय घटनाक्रम में, इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने क्रिमिनल मिसलेनियस रिट याचिका संख्या 5963/2025 में सुनवाई करते हुए, पुलिस उत्पीड़न से सुरक्षा की मांग करने वाली एक जोड़ी की याचिका खारिज कर दी, याचिकाकर्ता के खिलाफ झूठे हलफनामे की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया और कोर्ट परिसर में स्थित एक चैंबर से कथित अवैध विवाह केंद्र को खाली कराने का निर्देश जारी किया।

याचिका और आरोप

यह याचिका अरुण कुमार यादव द्वारा दायर की गई थी, जिन्होंने स्वयं और एक महिला शिवानी यादव की ओर से प्रतिनिधित्व करते हुए दावा किया कि दोनों ने स्वेच्छा से विवाह किया है। याचिका में मांग की गई थी कि पुलिस और अन्य को शिवानी के परिवार के कहने पर उन्हें परेशान करने से रोका जाए। याचिका में “प्रगतिशील हिंदू समाज न्यास” द्वारा जारी कथित विवाह प्रमाणपत्र और “ब्रह्मास्त्र लीगल एसोसिएट्स,” चैंबर संख्या 31, पुरानी सीएससी बिल्डिंग, केसरबाग, लखनऊ में विवाह समारोह की तस्वीरें भी संलग्न थीं।

Video thumbnail

न्यायिक हस्तक्षेप और स्थल निरीक्षण

न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की खंडपीठ ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए, कोर्ट परिसर के दुरुपयोग की आशंका पर संज्ञान लिया और वज़ीरगंज थाने के प्रभारी निरीक्षक व क्षेत्राधिकारी को तत्काल चैंबर संख्या 31 का निरीक्षण करने का निर्देश दिया। साथ ही, लखनऊ के जिला एवं सत्र न्यायाधीश को अदालत की इंफ्रास्ट्रक्चर सब-कमेटी के अधिकारियों को स्थिति की जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश भी दिया गया।

READ ALSO  युवराज सिंह ने गोपनीयता के उल्लंघन और विलंबित कब्जे के लिए रियल एस्टेट फर्मों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की

जांच रिपोर्ट और निष्कर्ष

दोपहर बाद की सुनवाई में वज़ीरगंज थाने के SHO ने रिपोर्ट व तस्वीरें दाखिल कीं, जिनमें चैंबर को विवाह केंद्र की तरह इस्तेमाल किए जाने की पुष्टि हुई। चैंबर के दरवाजे पर राघवेंद्र मिश्रा हिंदू और विपिन चौधरी नामक अधिवक्ताओं के मोबाइल नंबर और ब्रह्मास्त्र लीगल एसोसिएट्स लिखा पाया गया। SHO की रिपोर्ट में कहा गया कि राघवेंद्र मिश्रा ने चैंबर से विवाह संपन्न कराने की बात स्वीकार की, जिसमें फोटोग्राफी और रस्में भी होती थीं।

कोर्ट के अधिकारियों द्वारा प्रस्तुत अतिरिक्त तस्वीरों में चैंबर में की गई सजावट, ताले में बंद दरवाजा, और अन्य जोड़ों के विवाह प्रमाणपत्र पाए गए, जिससे स्पष्ट हुआ कि यह एक व्यवस्थित अवैध गतिविधि थी। अदालत ने इसे अदालती संपत्ति पर अतिक्रमण और संरचनात्मक परिवर्तन माना और यह भी टिप्पणी की कि विवाहों की वैधता पर संदेह है, क्योंकि हिंदू विवाह की अनिवार्य “सप्तपदी” जैसी रस्में नहीं निभाई गईं।

याचिका खारिज और दंडात्मक कार्यवाही

READ ALSO  कर्नाटक हाईकोर्ट का अहम फैसला: वयस्क बच्चों को भी 'लॉस ऑफ कंसोर्टियम' मुआवज़े का अधिकार

रिकॉर्ड की समीक्षा और दलीलें सुनने के बाद, कोर्ट ने पाया कि याचिका स्वयं शिवानी यादव द्वारा नहीं दायर की गई थी, इस कारण याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने यह भी कहा कि अरुण कुमार यादव द्वारा दाखिल किया गया हलफनामा झूठा प्रतीत होता है, और इसके आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 340 व 195 तथा भारतीय दंड संहिता के तहत झूठे साक्ष्य देने की कार्यवाही शुरू करने का आदेश दिया। यह मामला संबंधित मजिस्ट्रेट को उचित कार्रवाई हेतु भेजा गया।

व्यापक प्रभाव और प्रशासनिक निर्देश

अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इसे स्वतः संज्ञान जनहित याचिकाओं से निपटने वाली खंडपीठ के समक्ष प्रस्तुत करने का निर्देश दिया, ताकि लखनऊ कोर्ट परिसर में वकीलों द्वारा की जा रही “अस्वस्थ गतिविधियों” की जांच की जा सके। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि सभी तस्वीरें और दस्तावेज अदालत के रिकॉर्ड में सुरक्षित रखे जाएं।

READ ALSO  त्रिपुरा हाईकोर्ट ने सरकार से सेवानिवृत्त आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं, सहायिकाओं को ग्रेच्युटी प्रदान करने को कहा

सबसे महत्वपूर्ण बात, कोर्ट ने जिला एवं सत्र न्यायाधीश को निर्देश दिया कि दो दिनों के भीतर राघवेंद्र मिश्रा हिंदू और विपिन चौधरी को चैंबर संख्या 31 से बेदखल किया जाए और चैंबर के दरवाजे से “ब्रह्मास्त्र लीगल एसोसिएट्स” और “प्रगतिशील हिंदू समाज न्यास” की पट्टिकाएं हटाई जाएं। आवश्यकता पड़ने पर वज़ीरगंज पुलिस को बेदखली में सहयोग करने का अधिकार भी दिया गया है।

यह मामला अब 11 जुलाई 2025 को उचित खंडपीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

Related Articles

Latest Articles