भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि न्यायालय में पेश होने का अधिवक्ता का अधिकार उनकी भौतिक उपस्थिति और सुनवाई के दौरान सक्रिय भागीदारी की जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है। अदालत ने आगे यह भी चेतावनी दी कि अधिवक्ता-ऑन-रिकॉर्ड (AORs) केवल “नामधारी” की भूमिका तक सीमित नहीं रह सकते, बल्कि उन्हें पक्षकारों का प्रतिनिधित्व करने में वास्तविक जिम्मेदारी निभानी होगी।
यह निर्णय न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने Miscellaneous Application Nos. 3-4 of 2025 (जो Criminal Appeal Nos. 3883-3884 of 2024 से उत्पन्न हुए हैं) में सुनाया। यह मामला सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन की याचिकाओं से संबंधित था। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 की कानूनी रूपरेखा को फिर से स्पष्ट किया गया है और अधिवक्ताओं की जिम्मेदारियों पर प्रकाश डाला गया है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह फैसला 20 सितंबर 2024 के एक निर्णय से संबंधित है, जिसमें Criminal Appeal Nos. 3883-3884 of 2024 में न्यायालय ने अधिवक्ताओं की उपस्थिति को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे। अदालत ने देखा कि रिकॉर्ड ऑफ प्रोसीडिंग्स (Record of Proceedings) में बिना किसी अधिकृत पुष्टि के कई अधिवक्ताओं के नाम सूचीबद्ध किए जा रहे थे। इस प्रवृत्ति में धोखाधड़ी और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग की संभावना देखी गई।

इसलिए, न्यायालय ने यह आदेश दिया कि AORs केवल उन्हीं अधिवक्ताओं की उपस्थिति दर्ज कराएं, जो वास्तव में सुनवाई के दिन तर्क प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत हों, और किसी भी बदलाव की सूचना तुरंत कोर्ट मास्टर को दी जाए।
हालांकि, इस निर्देश को लेकर कानूनी समुदाय में चिंता उत्पन्न हुई। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA), जिसके अध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल हैं, और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) ने Miscellaneous Application Nos. 3-4 of 2025 दाखिल की।
उनका तर्क था कि यह नियम SCBA चुनावों में मतदान के अधिकार, सुप्रीम कोर्ट के चैंबर आवंटन की पात्रता और सीनियर एडवोकेट पदवी प्राप्त करने की प्रक्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
न्यायालय के समक्ष प्रमुख कानूनी प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट को दो मुख्य प्रश्नों पर विचार करना था:
- क्या किसी अधिवक्ता को बिना उचित प्राधिकरण के उपस्थिति दर्ज कराने का पूर्ण अधिकार है?
- क्या न्यायालय के ये निर्देश अधिवक्ताओं के विधिक, संवैधानिक या पेशेवर अधिकारों का उल्लंघन करते हैं?
SCBA और SCAORA ने निम्नलिखित बिंदुओं को रेखांकित किया:
- मतदान अधिकार: SCBA नियमों के तहत, सदस्यों को न्यूनतम मामलों में पेश होना आवश्यक होता है।
- चैंबर आवंटन: दर्ज उपस्थिति, सुप्रीम कोर्ट के चैंबर आवंटन की पात्रता को प्रभावित करती है।
- सीनियर एडवोकेट पदवी: 2023 गाइडलाइंस के अनुसार, वकीलों की बहस या सहायक अधिवक्ता के रूप में उपस्थिति इस पदवी के लिए महत्वपूर्ण है।
- जूनियर अधिवक्ताओं पर प्रभाव: यदि उपस्थिति दर्ज कराने की सीमा तय कर दी गई, तो यह जूनियर अधिवक्ताओं के करियर की प्रगति में बाधा बन सकती है।
न्यायालय ने इन मुद्दों का अधिवक्ता अधिनियम, 1961, बार काउंसिल ऑफ इंडिया नियम, और सुप्रीम कोर्ट नियम, 2013 के तहत परीक्षण किया, विशेष रूप से ऑर्डर IV पर ध्यान केंद्रित किया।
न्यायालय का निर्णय और मुख्य टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने अपने 19 मार्च 2025 के निर्णय में अपने पहले के निर्देशों को बरकरार रखा, लेकिन कुछ संशोधन किए ताकि वे सुप्रीम कोर्ट रूल्स, 2013 के अनुरूप हों।
मुख्य निर्णय:
- सीनियर एडवोकेट की उपस्थिति: बिना AOR के सीनियर एडवोकेट न्यायालय में उपस्थित नहीं हो सकते (ऑर्डर IV, नियम 2(b))।
- गैर-AOR अधिवक्ताओं की भूमिका: गैर-AOR केवल तभी प्रस्तुत हो सकते हैं यदि उन्हें AOR द्वारा अधिकृत किया गया हो या न्यायालय की अनुमति प्राप्त हो (ऑर्डर IV, नियम 1(b))।
- वकालतनामा प्रमाणन: AORs को केवल उन्हीं वकालतनामों को प्रमाणित करना होगा, जो उनकी उपस्थिति में निष्पादित किए गए हों।
- उपस्थिति रिकॉर्डिंग: केवल वही अधिवक्ता रिकॉर्ड में दर्ज होंगे, जो भौतिक रूप से उपस्थित हों—एक वरिष्ठ अधिवक्ता/AOR और एक सहायक अधिवक्ता (फॉर्म नं. 30 के अनुसार)।
- परिवर्तन सूचना: AOR को किसी भी अधिकृत परिवर्तन की सूचना देने के लिए नया Appearance Slip जमा करना होगा।
न्यायालय की टिप्पणियां:
- अधिकार और कर्तव्य:
“किसी अधिवक्ता का किसी पक्षकार के लिए पेश होना और अदालत में अभ्यास करने का अधिकार उसके कर्तव्य से जुड़ा हुआ है कि वह सुनवाई के दौरान उपस्थित रहे, प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले, और ईमानदारी से अपना कार्य करे। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” - AOR की ज़िम्मेदारी:
“कई मामलों में यह देखा गया है कि AOR केवल नाम उधार देते हैं और कार्यवाही में कोई भाग नहीं लेते… हर वकालतनामा या उपस्थित होने के लिए दाखिल किया गया मेमोरेंडम एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी और जवाबदेही के साथ आता है।” - कानूनी अनुपालन:
“सुप्रीम कोर्ट के नियमों का वैधानिक बल है और इनका पालन सभी को करना होगा… कोई भी प्रथा वैधानिक नियमों के विरुद्ध नहीं हो सकती।” - अनधिकृत उपस्थिति:
“न्यायालय में केवल औपचारिक, अनधिकृत या निष्क्रिय उपस्थिति पर्याप्त नहीं होगी, जब तक कि अधिवक्ता को पार्टी द्वारा अधिकृत न किया गया हो।”
न्यायालय ने SCBA और SCAORA की व्यापक मांगों को खारिज कर दिया और Gopal Jha बनाम सुप्रीम कोर्ट (2019) और Supreme Court Bar Association बनाम B.D. Kaushik (2011) जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि मतदान अधिकार, चैंबर आवंटन और सीनियर एडवोकेट पदवी विशेषाधिकार हैं, मौलिक अधिकार नहीं।