कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में स्पष्ट किया है कि यदि किसी आरोपी को एक बार नियमित जमानत (Regular Bail) मिल चुकी है, तो वह उसी अपराध में बाद में अग्रिम जमानत (Anticipatory Bail) का दावा नहीं कर सकता है। कोर्ट ने कहा कि भले ही आरोपी की गैर-हाजिरी के कारण गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी किया गया हो, फिर भी अग्रिम जमानत का प्रावधान लागू नहीं होगा।
जस्टिस शिवशंकर अमरन्नवर की पीठ ने लूट के आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में उचित कानूनी उपाय ट्रायल कोर्ट के समक्ष जाकर वारंट को रिकॉल (रद्द) करवाना है, न कि हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत मांगना।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला क्रिमिनल पिटीशन नंबर 14233 ऑफ 2025 से संबंधित है, जो मुदासिर @ मुड्डू द्वारा दायर की गई थी। याचिकाकर्ता ब्याप्पनहल्ली पुलिस स्टेशन द्वारा दर्ज क्राइम नंबर 5/2020 में दूसरा आरोपी है। यह मामला शुरू में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 394 के तहत दर्ज किया गया था, लेकिन बाद में पुलिस ने IPC की धारा 397 (हत्या या गंभीर चोट पहुँचाने के प्रयास के साथ लूट या डकैती) के तहत आरोप पत्र (Charge Sheet) दाखिल किया। वर्तमान में यह मामला बेंगलुरु के X अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के समक्ष C.C. No. 51982/2021 के रूप में लंबित है।
रिकॉर्ड के अनुसार, याचिकाकर्ता को अपराध की जांच के चरण में ही 10 फरवरी, 2020 के आदेश के तहत नियमित जमानत दे दी गई थी। हालांकि, आरोप पत्र दाखिल होने के बाद याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट के समक्ष उपस्थित होने में विफल रहा। इसके परिणामस्वरूप, jurisdictional court (अधिकार क्षेत्र वाली अदालत) ने उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी कर दिया।
17 जून, 2022 को याचिकाकर्ता ने कोर्ट में पेश होकर दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 70 के तहत आवेदन दिया और अपने खिलाफ जारी NBW को वापस (Recall) करवा लिया। लेकिन इसके बाद वह फिर से कोर्ट में पेश नहीं हुआ। उसकी लगातार अनुपस्थिति को देखते हुए, ट्रायल कोर्ट ने दोबारा NBW और उद्घोषणा (Proclamation) जारी कर दी। गिरफ्तारी की आशंका के चलते याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया और CrPC की धारा 438 (तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता – BNSS की धारा 482) के तहत अग्रिम जमानत की मांग की।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता का तर्क: याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद उन्हें कोई समन प्राप्त नहीं हुआ था। वारंट रिकॉल होने के बाद दोबारा कोर्ट में पेश न होने के कारण पर उन्होंने कहा कि “याचिकाकर्ता और उसके वकील के बीच गलतफहमी (mis-communication)” हो गई थी, जिसके कारण वह मामले में उपस्थित नहीं हो सका।
राज्य (अभियोजन पक्ष) का तर्क: अतिरिक्त राज्य लोक अभियोजक (SPP) श्रीमती पुष्पलता बी. ने याचिका का कड़ा विरोध किया। उन्होंने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता को कार्यवाही में पहले ही नियमित जमानत मिल चुकी है, इसलिए वह “उसी अपराध में अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है।”
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
जस्टिस शिवशंकर अमरन्नवर ने रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का अवलोकन किया और याचिकाकर्ता की गैर-हाजिरी के इतिहास पर गौर किया। कोर्ट ने नोट किया कि याचिकाकर्ता ने पहले नियमित जमानत का लाभ उठाया था और एक बार वारंट रिकॉल भी करवाया था, लेकिन इसके बाद वह फिर से अनुपस्थित हो गया।
इस परिस्थिति में क्या अग्रिम जमानत दी जा सकती है, इस कानूनी प्रश्न पर विचार करते हुए हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा:
“याचिकाकर्ता जिसे उसी अपराध में नियमित जमानत दी जा चुकी है, वह उसी अपराध में अग्रिम जमानत मांगने का हकदार नहीं है।” (The petitioner who has been granted regular bail in the same crime is not entitled to seek anticipatory bail in the same crime.)
याचिकाकर्ता द्वारा अपनी अनुपस्थिति के लिए दिए गए “वकील के साथ गलतफहमी” के तर्क को कोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“कोर्ट के समक्ष गैर-हाजिरी के लिए याचिकाकर्ता द्वारा दिया गया कारण, यानी याचिकाकर्ता और उसके वकील के बीच गलतफहमी, स्वीकार्य कारण नहीं है।”
कोर्ट ने आगे स्पष्ट किया कि ऐसी स्थिति में आरोपी के पास क्या कानूनी रास्ता बचता है। पीठ ने कहा कि “याचिकाकर्ता ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है और NBW को रिकॉल करवा सकता है।”
निर्णय
इन टिप्पणियों के आधार पर, हाईकोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ने “अग्रिम जमानत देने के लिए कोई आधार नहीं बनाया है” और उसकी याचिका को खारिज (Dismiss) कर दिया।
केस विवरण:
- केस शीर्षक: मुदासिर @ मुड्डू बनाम कर्नाटक राज्य
- केस नंबर: क्रिमिनल पिटीशन नंबर 14233 ऑफ 2025
- कोरम: जस्टिस शिवशंकर अमरन्नवर
- प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता के लिए श्री मोहम्मद अरशद; राज्य के लिए अतिरिक्त SPP श्रीमती पुष्पलता बी.

