बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि केवल आधार कार्ड, पैन कार्ड या वोटर आईडी रखने मात्र से कोई व्यक्ति भारत का नागरिक नहीं बन जाता। ये दस्तावेज़ सिर्फ पहचान या सेवाओं का लाभ लेने के लिए होते हैं और नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने की कानूनी शर्तों को नकार नहीं सकते।
न्यायमूर्ति अमित बोरकर ने यह टिप्पणी बाबू अब्दुल रूफ सरदार की जमानत याचिका खारिज करते हुए की। सरदार पर आरोप है कि वह बांग्लादेश का नागरिक है, जो एक दशक से अधिक समय पहले अवैध रूप से भारत में घुसा और आधार, पैन, वोटर आईडी व भारतीय पासपोर्ट जैसे फर्जी भारतीय दस्तावेज़ बनवाए।
अदालत ने कहा, “नागरिकता अधिनियम, 1955 आज भारत में राष्ट्रीयता से जुड़े प्रश्न तय करने का मुख्य और नियंत्रक कानून है। इसमें यह तय है कि कौन नागरिक है, नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है और किन परिस्थितियों में यह समाप्त हो सकती है।” अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून वैध नागरिकों और अवैध प्रवासियों के बीच “स्पष्ट रेखा” खींचता है, और अवैध प्रवासियों को अधिकांश कानूनी मार्गों से नागरिकता पाने से रोकता है।

पीठ ने कहा कि यह अंतर इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि देश की संप्रभुता सुरक्षित रहे और नागरिकों के लिए तय अधिकार व लाभ उन लोगों को न मिलें जिनके पास भारत में रहने का कोई कानूनी आधार नहीं है।
सरदार ने दावा किया था कि उसके दस्तावेज़ आयकर रिकॉर्ड और व्यापार पंजीकरण से जुड़े हैं और वह 2013 से ठाणे में रह रहा है। अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि यह मामला केवल अवैध रूप से ठहरने का नहीं, बल्कि “जानबूझकर पहचान छिपाने और फर्जी दस्तावेज़ तैयार कर भारतीय नागरिकता के लाभ लेने” का है।
अभियोजन पक्ष ने जमानत का विरोध करते हुए आशंका जताई कि आरोपी फरार हो सकता है और जांच में यह भी देखा जा रहा है कि कहीं इसमें अवैध प्रवास और पहचान धोखाधड़ी का कोई बड़ा नेटवर्क तो शामिल नहीं है। अदालत ने पुलिस की यह आशंका उचित मानते हुए जमानत याचिका खारिज कर दी, खासकर इसलिए कि आरोपी के आधार कार्ड की सत्यापन प्रक्रिया UIDAI में लंबित है और अन्य जांचें भी जारी हैं।
सरदार पर भारतीय दंड संहिता (भारतीय न्याय संहिता), पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम और विदेशी आदेश के तहत मामला दर्ज है।