दिल्ली हाईकोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा जांच किए जा रहे मनी लॉन्ड्रिंग मामले में एक महिला आरोपी, संदीपा विर्क को नियमित जमानत दे दी है। जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002 की धारा 45(1) के पहले प्रोविसो (परंतुक) के तहत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग किया, जो महिलाओं के लिए जमानत की सख्त शर्तों में ढील प्रदान करता है। इसके अलावा, कोर्ट ने ट्रायल में हो रही अनिश्चितकालीन देरी को गंभीरता से लिया, क्योंकि मुख्य आरोपी अभी भी फरार (Proclaimed Offender) है, जिसके कारण कार्यवाही रुकी हुई है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 16 नवंबर, 2016 को पंजाब के एसएएस नगर, मोहाली के एक पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर से जुड़ा है। मूल अपराध (Predicate Offence) में मुख्य आरोपी अमित गुप्ता (उर्फ नागेश्वर गुप्ता) और अन्य पर आरोप था कि उन्होंने एक शिकायतकर्ता और उसके परिवार को फिल्म में मुख्य भूमिका देने और फिल्म निर्माण में निवेश के बहाने लगभग 6 करोड़ रुपये की ठगी की।
इस एफआईआर के आधार पर, ईडी ने अगस्त 2025 में एक प्रवर्तन मामला सूचना रिपोर्ट (ECIR) दर्ज की। एजेंसी का आरोप था कि ठगी से प्राप्त धन “अपराध की कमाई” (Proceeds of Crime) है। ईडी ने दावा किया कि याचिकाकर्ता संदीपा विर्क ने जानबूझकर अपने बैंक खातों में इनमें से 1.03 करोड़ रुपये प्राप्त किए और इसका उपयोग मुंबई के अंधेरी (वेस्ट) में एक फ्लैट और नई दिल्ली के तिलक नगर में दो संपत्तियां खरीदने के लिए किया। यह भी आरोप लगाया गया कि उन्होंने तलाशी अभियान से पहले अपना मोबाइल फोन नष्ट कर दिया था।
अदालत के समक्ष दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनुराग अहलूवालिया ने तर्क दिया कि मूल अपराध में याचिकाकर्ता की कोई भूमिका नहीं थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यद्यपि एफआईआर 2016 में दर्ज की गई थी और लेनदेन 2008-2013 के बीच के थे, लेकिन 2017 में पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट में उन्हें आरोपी नहीं बनाया गया था। उन्होंने तर्क दिया कि एफआईआर के नौ साल बाद ईसीआईआर दर्ज की गई और 2025 में याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी मनमानी है।
बचाव पक्ष ने मुख्य रूप से इस तथ्य पर भरोसा जताया कि मुख्य आरोपी अमित गुप्ता को भगोड़ा घोषित किया जा चुका है और ईडी ने उसे गिरफ्तार नहीं किया है, जबकि उसका वकील पीएमएलए कार्यवाही में पेश हो रहा है। यह तर्क दिया गया कि चूंकि मुख्य आरोपी फरार है, इसलिए मूल अपराध का ट्रायल रुका हुआ है और याचिकाकर्ता को अनिश्चित काल तक हिरासत में रखना दंडात्मक होगा।
जमानत का विरोध करते हुए, ईडी के वकील सम्राट गोस्वामी ने तर्क दिया कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। एजेंसी ने कहा कि याचिकाकर्ता अपराध की कमाई की प्रत्यक्ष लाभार्थी थी और उसने दागी धन को बेदाग दिखाने में सक्रिय रूप से भाग लिया। ईडी ने कहा कि पीएमएलए की धारा 45 के तहत “दोहरी शर्तें” (Twin Conditions) लागू होनी चाहिए और महिलाओं के लिए प्रोविसो अनिवार्य नहीं बल्कि विवेकाधीन है।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
जस्टिस डॉ. स्वर्ण कांता शर्मा ने पीएमएलए के विधायी मंशा और मामले की विशिष्ट परिस्थितियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए जमानत याचिका स्वीकार कर ली।
- धारा 45 प्रोविसो की प्रयोज्यता: कोर्ट ने शशि बाला बनाम प्रवर्तन निदेशालय मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह पुष्टि की गई थी कि महिला आरोपी के लिए धारा 45(1)(ii) की “दोहरी शर्तों” की कठोरता को पूरा करना आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह प्रोविसो विवेकाधीन है, लेकिन याचिकाकर्ता ने जमानत के लिए प्रथम दृष्टया मामला सफलतापूर्वक बनाया है।
- रुका हुआ ट्रायल और मुख्य आरोपी का फरार होना: कोर्ट ने मामले की अजीब समयसीमा पर प्रकाश डाला, जहां मूल अपराध की जांच 2016 में शुरू हुई, लेकिन पीएमएलए का मामला 2025 में शुरू हुआ। जस्टिस शर्मा ने टिप्पणी की:
“मूल अपराध में ट्रायल आगे नहीं बढ़ रहा है क्योंकि एकमात्र आरोपी, यानी अमित गुप्ता फरार है… याचिकाकर्ता चार महीने से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में है… और ट्रायल पूरा होने में समय लगेगा।” - मूल अपराध में संलिप्तता का अभाव: पीठ ने नोट किया कि याचिकाकर्ता को न तो अनुसूचित अपराध में पुलिस द्वारा चार्जशीट किया गया था और न ही निजी शिकायत में तलब किया गया था। इसके अतिरिक्त, कोर्ट ने इस बात पर विचार किया कि कथित राशि का एक बड़ा हिस्सा (लगभग 2.7 करोड़ रुपये) शिकायतकर्ता को वापस कर दिया गया था।
शर्तें
कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 2,00,000 रुपये का निजी मुचलका और इतनी ही राशि की दो जमानतदार पेश करने की शर्त पर रिहा करने का आदेश दिया। उन्हें अपना पासपोर्ट जमा करने, बिना अनुमति देश न छोड़ने और जांच में पूरा सहयोग करने का निर्देश दिया गया है।
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: संदीपा विर्क बनाम प्रवर्तन निदेशालय
- केस नंबर: BAIL APPLN. 4331/2025
- कोरम: जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा

