दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी सरकारी कर्मचारी को हिरासत से रिहा कर दिया गया है, तो उसके ‘डीम्ड सस्पेंशन’ (स्वतः निलंबन) की समीक्षा प्रारंभिक निलंबन की तारीख से 90 दिनों के भीतर की जानी अनिवार्य है। जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन की खंडपीठ ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT) के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक सरकारी अधिकारी के निलंबन और उसके बाद के विस्तार आदेशों को रद्द कर दिया गया था। कोर्ट ने केंद्र सरकार (यूनियन ऑफ इंडिया) द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
यह मामला यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गली श्रीधर (W.P.(C) 19586/2025) से संबंधित है। केंद्र सरकार ने कैट के 5 अगस्त, 2025 के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। ट्रिब्यूनल ने प्रतिवादी, गली श्रीधर के निलंबन आदेश को रद्द कर दिया था। हाईकोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न केंद्रीय सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण और अपील) नियम, 1965 के नियम 10 की व्याख्या का था, विशेष रूप से यह कि यदि कोई कर्मचारी 90 दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले हिरासत से रिहा हो जाता है, तो उसके निलंबन की समीक्षा कब तक की जानी चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि
प्रतिवादी, गली श्रीधर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने 21 अप्रैल, 2019 को 27 लाख रुपये की रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। उनके खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018 की धारा 7 और 8 तथा भारतीय दंड संहिता की धारा 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया था। गिरफ्तारी के बाद उन्हें ‘डीम्ड सस्पेंशन’ (माना गया निलंबन) के तहत रखा गया था।
प्रतिवादी को 3 जून, 2019 को जमानत मिल गई और 6 जून, 2019 को उन्हें न्यायिक हिरासत से रिहा कर दिया गया। उन्होंने उसी दिन अपने विभाग को अपनी रिहाई की सूचना दी।
कोर्ट द्वारा नोट किए गए तथ्यों के अनुसार, ‘डीम्ड सस्पेंशन’ की 90 दिनों की प्रारंभिक अवधि 19 जुलाई, 2019 को समाप्त हो गई थी। हालांकि, याचिकाकर्ता (केंद्र सरकार) ने नियम 10(2) के तहत निलंबन का आदेश 30 अगस्त, 2019 को पारित किया, जो कि 90 दिनों की अवधि बीत जाने के काफी बाद था। इसके बाद निलंबन विस्तार के अन्य आदेश भी पारित किए गए, जिन्हें प्रतिवादी ने ट्रिब्यूनल में चुनौती दी थी।
पक्षों की दलीलें
केंद्र सरकार (याचिकाकर्ता) का तर्क: केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील श्री सिद्धार्थ शंकर रे ने तर्क दिया कि ट्रिब्यूनल नियम 10(2) की बारीकियों को समझने में विफल रहा है। उन्होंने कहा कि चूंकि प्रतिवादी को 48 घंटे से अधिक समय तक हिरासत में रहने के कारण निलंबित माना गया था, इसलिए नियम 10(7) के तहत निलंबन बढ़ाने के प्रयोजनों के लिए 90 दिनों की अवधि उनकी रिहाई और उसकी सूचना देने की तारीख से शुरू होनी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने गवर्नमेंट ऑफ एनसीटी ऑफ दिल्ली बनाम डॉ. ऋषि आनंद (2017) के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि निलंबन तब तक जारी रहता है जब तक कि उसे संशोधित या रद्द नहीं किया जाता।
प्रतिवादी का पक्ष: प्रतिवादी की ओर से पेश डॉ. बी. टी. कौल ने ट्रिब्यूनल के फैसले का समर्थन किया। उन्होंने जोर देकर कहा कि चूंकि उन्हें प्रारंभिक 90 दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले ही हिरासत से रिहा कर दिया गया था, इसलिए अधिकारियों के लिए यह अनिवार्य था कि वे उस 90 दिनों की समय सीमा के भीतर निलंबन की समीक्षा करें।
कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार की दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि अधिकारी वैधानिक समय सीमा का पालन करने में विफल रहे।
नियम 10(7) की व्याख्या: पीठ ने अपने पिछले फैसले यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम अकील अहमद (2025:DHC:1901-DB) का हवाला दिया। कोर्ट ने कहा:
“उपरोक्त प्रावधान को पढ़ने से यह स्पष्ट होता है कि केवल उन मामलों में जहां सरकारी कर्मचारी 90 दिनों की अवधि समाप्त होने पर भी हिरासत में है, वहां 90 दिनों की अवधि समाप्त होने से पहले निलंबन विस्तार का आदेश पारित करने की आवश्यकता नहीं होती है। ऐसे मामलों में यह माना जाता है कि 90 दिनों की अवधि उस तारीख से शुरू होगी जब सरकारी कर्मचारी को हिरासत से रिहा किया जाता है या उसकी रिहाई का तथ्य नियुक्ति प्राधिकारी को सूचित किया जाता है, जो भी बाद में हो।”
वर्तमान मामले में लागू: कोर्ट ने नोट किया कि गली श्रीधर को 6 जून, 2019 को रिहा कर दिया गया था और विभाग को तुरंत सूचित भी कर दिया गया था। चूंकि यह रिहाई प्रारंभिक 90 दिनों (जो 19 जुलाई, 2019 को समाप्त हो रहे थे) से पहले हुई थी, इसलिए नियम 10(7) का वह प्रावधान (Proviso) यहां लागू नहीं होगा जो निरंतर हिरासत के मामलों में विलंबित समीक्षा की अनुमति देता है।
कोर्ट ने कहा:
“इसलिए, याचिकाकर्ता नियम 10(7) के प्रावधान (Proviso) का लाभ लेने का हकदार नहीं था और नियम 10(2) के तहत प्रतिवादी के डीम्ड सस्पेंशन के 90 दिनों के भीतर समीक्षा की जानी चाहिए थी।”
कोर्ट ने याचिकाकर्ता द्वारा पारित आदेश पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा:
“वास्तव में, 30.08.2019 का आदेश नियम 10(7) के तहत नहीं, बल्कि नियमों के नियम 10(2) के तहत पारित किया गया है। हम यह समझने में असमर्थ हैं कि याचिकाकर्ता उस स्तर पर नियम 10(2) का आह्वान कैसे कर सकता था।”
पूर्व निर्णयों में अंतर: याचिकाकर्ता द्वारा डॉ. ऋषि आनंद मामले के संदर्भ पर, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उस फैसले का आधार वर्तमान मामले पर लागू नहीं होता है। डॉ. ऋषि आनंद का मामला “अनुशासनात्मक कार्यवाही के चिंतन” में किए गए निलंबन से संबंधित था, जबकि वर्तमान मामला हिरासत से रिहाई के बाद “डीम्ड सस्पेंशन” का है।
पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य बनाम दीपक माली ((2010) 2 SCC 222) का भी उल्लेख किया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि यदि 90 दिनों की अवधि के भीतर समीक्षा नहीं की जाती है, तो निलंबन आदेश अमान्य हो जाता है।
निर्णय
हाईकोर्ट ने पाया कि केंद्र सरकार की दलीलों में कोई दम नहीं है और याचिका को खारिज कर दिया। यह निर्णय प्रभावी रूप से ट्रिब्यूनल के उस आदेश की पुष्टि करता है जिसने निलंबन और उसके बाद के विस्तारों को रद्द कर दिया था।
केस विवरण:
- केस टाइटल: यूनियन ऑफ इंडिया बनाम गली श्रीधर
- केस नंबर: W.P.(C) 19586/2025 और CM APPL. 81890/2025
- कोरम: जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस मधु जैन
- याचिकाकर्ता के वकील: श्री सिद्धार्थ शंकर रे (सीजीएससी), साथ में श्री अतिशय जैन (एडवोकेट)
- प्रतिवादी के वकील: डॉ. बी. टी. कौल, श्री यू. डी. भार्गव, और श्री प्रांजल जायसवाल (एडवोकेट)

