चेक पर हस्ताक्षर करने वाला निदेशक केवल विवादित इस्तीफे का हवाला देकर धारा 138 की कार्यवाही रद्द नहीं करा सकता: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने परक्राम्य लिखत अधिनियम (NI Act) की धारा 138 के तहत अपने खिलाफ दायर आपराधिक शिकायतों को रद्द करने की मांग करने वाले एक पूर्व निदेशक की याचिकाओं को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहां एक निदेशक ने बाउंस हुए चेक पर हस्ताक्षर किए हैं और उसके इस्तीफे की वास्तविकता या प्रभाव विवादित है, वहां भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 528 के तहत कार्यवाही को प्रारंभिक चरण में नहीं रोका जा सकता है।

न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड (एक गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) द्वारा दो कर्जदार कंपनियों और उनके निदेशकों के खिलाफ दायर शिकायतों के मामले में यह फैसला सुनाया। याचिकाकर्ता दिनेश कुमार पांडे ने समन आदेशों को रद्द करने की मांग करते हुए तर्क दिया था कि चेक बाउंस होने से पहले ही उन्होंने निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। हाईकोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता चेक का हस्ताक्षरकर्ता (Signatory) था और ऋण चूक (loan default) के समय उसके इस्तीफे का समय विवादास्पद तथ्यों को जन्म देता है, जिनका परीक्षण ट्रायल के दौरान ही किया जा सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि

प्रतिवादी, मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड ने दो कंपनियों – साउथ सेंटर ऑफ एकेडमी प्रा. लि. और संपूर्ण एकेडमी प्रा. लि. को ऋण सुविधाएं प्रदान की थीं। ऋण का भुगतान समान मासिक किस्तों (EMI) में किया जाना था। प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि इन दायित्वों के निर्वहन के लिए जारी किए गए चेक मार्च 2024 में “अपर्याप्त धनराशि” की टिप्पणी के साथ बाउंस हो गए।

इसके परिणामस्वरूप, प्रतिवादी ने वैधानिक मांग नोटिस जारी किए और बाद में एनआई एक्ट की धारा 141 के साथ पठित धारा 138 के तहत शिकायतें दर्ज कराईं। याचिकाकर्ता, जो ऋण की स्वीकृति और दस्तावेजों के निष्पादन के समय निदेशक था, को भी आरोपी बनाया गया था।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि शिकायतें प्रक्रिया का दुरुपयोग हैं क्योंकि चेक उनके निदेशक मंडल से इस्तीफा देने के बहुत बाद बाउंस हुए थे। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने 1 अप्रैल, 2023 को साउथ सेंटर ऑफ एकेडमी प्रा. लि. से और 1 जनवरी, 2024 को संपूर्ण एकेडमी प्रा. लि. से इस्तीफा दे दिया था। फॉर्म DIR-12 और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) के रिकॉर्ड का हवाला देते हुए, उन्होंने तर्क दिया कि चूंकि उन्होंने मार्च 2024 में चेक बाउंस होने से पहले ही पद छोड़ दिया था, इसलिए उन्हें एनआई एक्ट की धारा 141 के तहत प्रतिनिधि रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

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इसके विपरीत, प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता एक प्रमुख निदेशक था जिसने सुविधाओं पर बातचीत की और ऋण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए। महत्वपूर्ण रूप से, यह बताया गया कि याचिकाकर्ता ही विवादित चेक का हस्ताक्षरकर्ता था। प्रतिवादी ने इस बात पर जोर दिया कि कथित इस्तीफे 2023 की शुरुआत में ऋण खातों के डिफॉल्ट होने के तुरंत बाद हुए, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस्तीफे वास्तविक नहीं थे, बल्कि दायित्व से बचने का एक प्रयास थे, जबकि वह “पर्दे के पीछे से” कंपनियों को नियंत्रित करना जारी रखे हुए था।

कोर्ट का विश्लेषण

हाईकोर्ट ने एनआई एक्ट की धारा 141 के दायरे की जांच की, जो कंपनी के कारोबार के संचालन के लिए प्रभारी और जिम्मेदार व्यक्तियों पर प्रतिनिधि दायित्व (Vicarious Liability) डालती है। न्यायमूर्ति नरूला ने कहा कि हालांकि केवल निदेशक होने का दावा अक्सर पर्याप्त नहीं होता है, लेकिन कंपनी की ओर से चेक पर हस्ताक्षर करने वाला व्यक्ति एक “विशिष्ट स्थिति” रखता है।

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सुप्रीम कोर्ट के फैसले एसएमएस फार्मास्यूटिकल्स लि. बनाम नीता भल्ला का हवाला देते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि एक हस्ताक्षरकर्ता “स्पष्ट रूप से आपत्तिजनक कृत्य के लिए जिम्मेदार है” और उस पर दिन-प्रतिदिन के नियंत्रण के विस्तृत विवरण के बिना भी मुकदमा चलाया जा सकता है।

कोर्ट ने वर्तमान मामले को राजेश विरेन शाह बनाम रेडिंगटन (इंडिया) लिमिटेड और अधिराज सिंह बनाम योगराज सिंह जैसे उदाहरणों से अलग किया, जहां कार्यवाही रद्द कर दी गई थी क्योंकि इस्तीफे निर्विवाद थे और निदेशक हस्ताक्षरकर्ता नहीं थे।

न्यायमूर्ति नरूला ने कहा:

“ऋण पर बातचीत करने, दस्तावेजों को निष्पादित करने और चेक पर हस्ताक्षर करने में याचिकाकर्ता की स्वीकृत भूमिका, उसके इस्तीफे की विवादित प्रकृति और समय के साथ मिलकर, मामले को उन मामलों के संकीर्ण वर्ग से बाहर ले जाती है जहां अकाट्य दोषमुक्त सामग्री के आधार पर रद्द करने की अनुमति दी गई है।”

कोर्ट ने पाया कि इस्तीफे का समय – जो शुरुआती डिफॉल्ट के ठीक बाद का था – उनकी प्रमाणिकता पर सवाल उठाता है। फैसले में कहा गया है कि क्या इस्तीफे वास्तविक थे या “याचिकाकर्ता को बचाने के लिए एक स्वार्थी प्रयास”, यह एक ज्वलंत तथ्यात्मक मुद्दा है।

कोर्ट ने आगे कहा:

“एक निदेशक जो चेक का हस्ताक्षरकर्ता है, एक विशिष्ट स्थिति रखता है और जब अंतर्निहित लेनदेन किए गए थे तो कंपनी के कारोबार के साथ उसका निरंतर जुड़ाव किस हद तक था, यह साक्ष्य का विषय है। उन मुद्दों का फैसला कोर्ट के रद्द करने के अधिकार क्षेत्र (Quashing Jurisdiction) का आह्वान करने वाली कार्यवाही में नहीं किया जा सकता है।”

फैसला

हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि शिकायतें याचिकाकर्ता के खिलाफ अपराध के बुनियादी तत्वों का खुलासा करती हैं, दोनों चेक के हस्ताक्षरकर्ता के रूप में और प्रथम दृष्टया (prima facie) एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जो प्रासंगिक समय पर कंपनियों के मामलों का प्रभारी था।

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याचिकाओं को खारिज करते हुए, कोर्ट ने फैसला सुनाया:

“याचिकाकर्ता द्वारा भरोसा की गई सामग्री अभियोजन को शुरू में ही रोकने के लिए बीएनएसएस की धारा 528 के तहत असाधारण अधिकार क्षेत्र को लागू करने के लिए आवश्यक कठोर सीमा को पूरा नहीं करती है।”

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता ट्रायल के दौरान अपने इस्तीफे और कंपनी पर नियंत्रण की कमी के बारे में अपने बचाव पेश करने के लिए स्वतंत्र है, जहां साक्ष्यों के आधार पर उनका परीक्षण किया जा सकता है।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: दिनेश कुमार पांडे बनाम मेसर्स सिंह फिनलीज प्राइवेट लिमिटेड और अन्य (तथा अन्य संबंधित मामले)
  • केस नंबर: CRL.M.C. 8175/2025, 8176/2025, 8177/2025 और 8178/2025
  • कोरम: न्यायमूर्ति संजीव नरूला
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री सुमित चौहान, श्री सुशांत कुमार, एडवोकेट्स।
  • प्रतिवादियों के वकील: श्री विराट के. आनंद, श्री कुमार शशांक, श्री हरीश नड्डा, श्री विकल्प सिंह, सुश्री सृष्टि कौल, सुश्री स्वाति क्वात्रा, एडवोकेट्स।

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