पति-पत्नी सोशल मीडिया से हटाएं एक-दूसरे की फोटो: सुप्रीम कोर्ट ने 30 लाख के सेटलमेंट पर खत्म की शादी

सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए एक विवाह को भंग कर दिया है। जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि यह विवाह “पूरी तरह से टूट चुका है” (Irretrievably broken down)। कोर्ट ने पति और पत्नी के बीच हुए समझौते के आधार पर विवाह विच्छेद का आदेश दिया और उनके बीच चल रही कई आपराधिक और दीवानी कार्यवाही को रद्द कर दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला बाबूराम गौतम और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य के रूप में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया। यह अपील हाईकोर्ट द्वारा दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत दायर आवेदन को खारिज करने के आदेश के खिलाफ दायर की गई थी।

अपीलकर्ताओं ने महिला थाना, जिला मथुरा में दर्ज केस क्राइम नंबर 177 ऑफ 2023 से उत्पन्न आपराधिक केस नंबर IX ऑफ 2024 की कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। 9 सितंबर, 2025 को सुनवाई के दौरान, पति (तीसरा अपीलकर्ता) और पत्नी (दूसरा प्रतिवादी) ने कोर्ट को सूचित किया कि उनके बीच समझौते की बातचीत चल रही है। इसके बाद, विवाह को भंग करने की मांग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत एक संयुक्त आवेदन दायर किया गया।

समझौते की शर्तें और सोशल मीडिया अंडरटेकिंग

18 दिसंबर, 2025 को जब मामले की सुनवाई हुई, तो पति और पत्नी दोनों कोर्ट के समक्ष उपस्थित थे। उन्होंने पीठ को सूचित किया कि वे 30,00,000 रुपये (तीस लाख रुपये) के अंतिम समझौते (Full and Final Settlement) के आधार पर अलग होने के लिए सहमत हो गए हैं। पति ने पत्नी के वकील को 15-15 लाख रुपये के दो डिमांड ड्राफ्ट सौंपे।

समझौते का एक बेहद महत्वपूर्ण और आधुनिक पहलू सोशल मीडिया पर पार्टियों के आचरण से संबंधित था। कोर्ट ने डिजिटल सामग्री के संबंध में दोनों पक्षों द्वारा दी गई अंडरटेकिंग (वचन) को विशेष रूप से रिकॉर्ड किया:

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“पार्टियां यहां अंडरटेकिंग देती हैं कि वे सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से एक-दूसरे और उनके परिवार के सदस्यों से संबंधित सभी फोटो/वीडियो हटा देंगी और यह भी वचन देती हैं कि वे भविष्य में किसी भी सोशल मीडिया पोर्टल पर एक-दूसरे या एक-दूसरे के परिवार के सदस्य का कोई भी फोटो/वीडियो अपलोड नहीं करेंगी।”

कोर्ट का आदेश और निष्कर्ष

पीठ ने संयुक्त आवेदन और पार्टियों के बीच लंबित मुकदमों की सूची का संज्ञान लिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 380, 323, 504, 506 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 379 के तहत कार्यवाही शामिल थी। इसके अलावा हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत भी एक याचिका लंबित थी।

समझौते को स्वीकार करते हुए, कोर्ट ने निर्देश दिया कि संयुक्त आवेदन में सूचीबद्ध मामलों को “संबंधित कोर्ट/प्राधिकरण के समक्ष इस आदेश की प्रमाणित प्रति पेश किए जाने पर बंद कर दिया जाएगा।”

विवाह विच्छेद के संबंध में, कोर्ट ने कहा:

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“इस तथ्य को देखते हुए कि विवाह पूरी तरह से टूट चुका है (Irretrievably broken down), हम तीसरे अपीलकर्ता और दूसरे प्रतिवादी के बीच हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13बी के तहत विवाह को भंग करने के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत शक्ति का आह्वान करते हैं।”

रजिस्ट्री को विवाह विच्छेद की डिक्री तैयार करने का निर्देश दिया गया। नतीजतन, अपील को स्वीकार कर लिया गया और सभी लंबित आवेदनों का निपटारा कर दिया गया।

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केस डिटेल:

  • केस टाइटल: बाबूराम गौतम और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील ऑफ 2025 (@ स्पेशल लीव पिटीशन (क्रिमिनल) नंबर 6653 ऑफ 2025)
  • साइटेशन: 2025 INSC 1493
  • कोरम: जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस के. विनोद चंद्रन

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