सुप्रीम कोर्ट ने शादी का झांसा देकर रेप करने के मामले में दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति की सजा और दोषसिद्धि (Conviction) को रद्द कर दिया है। अपील के दौरान आरोपी और पीड़िता द्वारा विवाह कर लेने के बाद कोर्ट ने यह निर्णय लिया। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए “पूर्ण न्याय” (Complete Justice) करने के उद्देश्य से यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने माना कि यह मामला सहमति से बनाए गए संबंधों में गलतफहमी का परिणाम था।
यह मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आपराधिक अपील के माध्यम से आया था। अपीलकर्ता ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसकी सजा को निलंबित करने (Suspension of Sentence) के आवेदन को खारिज कर दिया गया था। अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(n) (बार-बार बलात्कार) और धारा 417 (धोखाधड़ी) के तहत दोषी ठहराया गया था।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ को जब यह सूचित किया गया कि पक्षों ने 22 जुलाई 2025 को विवाह कर लिया है और वे साथ रह रहे हैं, तो पीठ ने एफआईआर (FIR), दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने अपीलकर्ता की नौकरी से जुड़ी सेवा के लाभों को बहाल करने का भी आदेश दिया।
मामले की पृष्ठभूमि
फैसले के अनुसार, अपीलकर्ता और पीड़िता (दूसरी प्रतिवादी) की मुलाकात 2015 में एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर हुई थी। दोनों के बीच एक-दूसरे के लिए पसंद विकसित हुई और उन्होंने “सहमति से शारीरिक संबंध” बनाए। पीड़िता का आरोप था कि उसने अपीलकर्ता द्वारा दिए गए “शादी के कथित झूठे वादे” पर भरोसा करके सहमति दी थी।
शादी का वादा पूरा न होने से नाराज होकर, पीड़िता ने 2 नवंबर 2021 को महिला पुलिस थाना, जिला सागर, मध्य प्रदेश में एफआईआर संख्या 29/2021 दर्ज कराई। इसके बाद 8 फरवरी 2022 को आरोप पत्र (Charge-sheet) दाखिल किया गया।
इस मामले का ट्रायल अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (Additional Sessions Judge) द्वारा सत्र परीक्षण संख्या 191/2022 में किया गया। 12 अप्रैल 2024 को ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराया और धारा 376(2)(n) IPC के अपराध के लिए 10 साल के कठोर कारावास और 50,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई। साथ ही, धारा 417 IPC के तहत 2 साल के कठोर कारावास और 5,000 रुपये के जुर्माने की सजा दी गई।
अपीलकर्ता ने इस दोषसिद्धि के खिलाफ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट (जबलपुर) में अपील (CRA No. 4869 of 2024) दायर की और I.A. No. 9352 of 2024 के माध्यम से अपनी जेल की सजा को निलंबित करने की मांग की। हाईकोर्ट ने 5 सितंबर 2024 को इस आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।
सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप और विवाह
सुप्रीम कोर्ट ने नोट किया कि यह उन “दुर्लभ मामलों” में से एक है जहां उसके हस्तक्षेप से दोषसिद्धि रद्द हुई है। पीठ ने तथ्यों पर विचार करते हुए महसूस किया कि सुलह की संभावना हो सकती है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“हमें एक ‘सिक्सथ सेंस’ (अंतर्ज्ञान) हुआ कि यदि अपीलकर्ता और प्रतिवादी पीड़िता एक-दूसरे से शादी करने का फैसला करते हैं, तो उन्हें फिर से एक साथ लाया जा सकता है।”
इस आधार पर, कोर्ट ने पक्षों को निर्देश लेने का सुझाव दिया। जजों के चैंबर में अपने माता-पिता की उपस्थिति में बातचीत के बाद, दोनों पक्षों ने शादी करने की इच्छा व्यक्त की। कोर्ट ने शादी को सुविधाजनक बनाने के लिए 15 मई 2025 को अपीलकर्ता को अंतरिम जमानत दे दी।
25 जुलाई 2025 को सुनवाई के दौरान, पक्षों के वकीलों ने कोर्ट को सूचित किया कि 22 जुलाई 2025 को विवाह संपन्न हो गया है और दंपति तब से साथ रह रहे हैं। पीड़िता ने कहा कि वह आपराधिक कार्यवाही जारी नहीं रखना चाहती है।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि आपराधिक कार्यवाही उन पक्षों के बीच एक गलतफहमी का परिणाम थी जो शादी करना चाहते थे लेकिन उसमें देरी हो रही थी।
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“हमारा मानना है कि गलतफहमी के कारण पार्टियों के बीच सहमति से बने संबंधों को आपराधिक रंग दिया गया और इसे शादी के झूठे वादे के अपराध में बदल दिया गया, जबकि वास्तव में पक्ष एक-दूसरे से शादी करना चाहते थे। यह केवल अपीलकर्ता द्वारा शादी की तारीख आगे बढ़ाने की मांग के कारण हुआ, जिससे प्रतिवादी पीड़िता के मन में असुरक्षा पैदा हुई और उसने आपराधिक शिकायत दर्ज कराई।”
परिणाम से संतुष्टि व्यक्त करते हुए, कोर्ट ने “न्याय के हित में और पूर्ण न्याय करने के लिए” भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया।
सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश दिए:
- महिला पुलिस थाना, जिला सागर में दर्ज एफआईआर संख्या 29/2021 को रद्द किया जाता है।
- प्रथम अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, सागर द्वारा पारित 12 अप्रैल 2024 के फैसले और दोषसिद्धि व सजा के आदेश को रद्द किया जाता है।
- मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में लंबित अपील (CRA No. 4869 of 2024) अब निष्प्रभावी (Infructuous) हो गई है।
सेवा बहाली के निर्देश
अपीलकर्ता के वकील ने दलील दी कि आपराधिक मामले और दोषसिद्धि के कारण अपीलकर्ता को उसकी सेवा से निलंबित कर दिया गया था। उन्होंने निलंबन को रद्द करने और बकाया वेतन के भुगतान के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया।
सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO), सागर, मध्य प्रदेश को निर्देश दिया कि वे निलंबन आदेश को रद्द करें और दो महीने के भीतर अपीलकर्ता को वेतन का बकाया भुगतान करें, क्योंकि निलंबन रद्द होने के बाद अपीलकर्ता ने ड्यूटी ज्वाइन कर ली है।
केस डीटेल्स:
- केस टाइटल: संदीप सिंह ठाकुर बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 5256 ऑफ 2025
- कोरम: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा

