पटना: बिहार न्यायिक सेवा संघ (BJSA) ने बिहार सरकार के कैबिनेट मंत्री श्री विजय कुमार सिन्हा द्वारा न्यायपालिका के खिलाफ की गई “अत्यधिक आपत्तिजनक” टिप्पणियों पर कड़ा विरोध दर्ज कराया है। संघ ने बिहार के राज्यपाल और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर मंत्री के उस बयान की निंदा की है, जिसमें उन्होंने केवल मामले के शीघ्र निपटारे के आधार पर एक न्यायिक अधिकारी की निष्ठा पर सवाल उठाए थे।
यह विवाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए एक वीडियो क्लिप के बाद खड़ा हुआ है, जिसमें राजस्व एवं भूमि सुधार, खान एवं भूविज्ञान और नगर विकास एवं आवास विभागों का प्रभार संभाल रहे मंत्री विजय कुमार सिन्हा कथित तौर पर एक न्यायाधीश की निष्पक्षता पर सवाल उठाते नजर आ रहे हैं।
क्या है पूरा मामला?
बिहार न्यायिक सेवा संघ के सचिव और गया के जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, अजीत कुमार सिंह द्वारा हस्ताक्षरित पत्र के अनुसार, मंत्री ने वायरल वीडियो में सुझाव दिया कि “संबंधित न्यायाधीश, जिन्होंने मामले का फैसला शीघ्रता से किया, वे किसी ‘हित’ (interest) के साथ कार्य कर रहे हो सकते हैं और ऐसे आचरण की रिपोर्ट माननीय मुख्य न्यायाधीश को की जानी चाहिए।”
संघ ने इन टिप्पणियों को “पूरी तरह से गैर-जिम्मेदाराना और अस्वीकार्य” करार दिया है, विशेष रूप से तब जब ये एक उच्च संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की ओर से आई हैं। पत्र में कहा गया है कि मंत्री ने बिना किसी रिकॉर्ड या तथ्यात्मक आधार के लापरवाही से ये आरोप लगाए हैं।
“त्वरित न्याय को प्रोत्साहित किया जाता है, संदेह की दृष्टि से नहीं देखा जाता”
BJSA ने मंत्री के इस तर्क का पुरजोर खंडन किया है कि न्यायिक दक्षता का अर्थ किसी प्रकार की बदनीयती है। पत्र में स्पष्ट किया गया है:
“यह एक सुस्थापित सिद्धांत है कि जिस दक्षता के साथ कोई न्यायिक अधिकारी मामलों का निपटारा करता है, वह अपने आप में गलत उद्देश्यों या पूर्वाग्रह का आरोप लगाने का आधार नहीं हो सकता। इसके विपरीत, मामलों का समय पर निपटारा प्रभावी न्याय का एक अनिवार्य घटक है और लंबित मामलों को कम करने के लिए संवैधानिक न्यायालयों द्वारा इसे लगातार प्रोत्साहित किया जाता है।”
संघ का तर्क है कि शीघ्र निर्णय को किसी प्रकार के “हित” का संकेत बताना “न्यायिक कामकाज की मौलिक गलतफहमी” को दर्शाता है और यह उन न्यायाधीशों को गलत तरीके से बदनाम करता है जो अपने कर्तव्यों का पालन निष्ठापूर्वक कर रहे हैं।
न्यायिक स्वतंत्रता पर हमला
राज्यपाल को दिए गए अभ्यावेदन में इस बात पर जोर दिया गया है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारत के संवैधानिक लोकतंत्र की आधारशिला है। BJSA ने कहा कि इस तरह के “सार्वजनिक बयान” न्यायिक अधिकारियों को डराने और न्याय वितरण प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने का जोखिम पैदा करते हैं।
पत्र में शक्तियों के पृथक्करण और न्यायपालिका की गरिमा के संबंध में महत्वपूर्ण संवैधानिक बिंदु भी उठाए गए हैं:
- हाईकोर्ट का विशेष क्षेत्राधिकार: संघ ने जोर देकर कहा कि न्यायिक अधिकारियों पर विशेष संवैधानिक पर्यवेक्षण और प्रशासनिक नियंत्रण केवल हाईकोर्ट का है। किसी न्यायाधीश के आचरण के संबंध में कोई भी शिकायत केवल इस स्थापित न्यायिक ढांचे के माध्यम से ही संबोधित की जानी चाहिए, और “राज्य के किसी अन्य अंग का इस संबंध में कोई क्षेत्राधिकार नहीं है।”
- अनुच्छेद 261 का उल्लंघन: पत्र में कहा गया है कि मंत्री की टिप्पणियां भारत के संविधान के अनुच्छेद 261 के जनादेश का उल्लंघन करती हैं, जिसके लिए आवश्यक है कि पूरे भारत में न्यायिक कार्यवाही और अदालतों के कृत्यों को पूर्ण विश्वास और श्रेय (full faith and credit) दिया जाए।
- शपथ का उल्लंघन: संघ ने आरोप लगाया है कि मंत्री का आचरण तीसरी अनुसूची के तहत ली गई उनकी पद की शपथ का उल्लंघन करता है, जो उन्हें संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने और न्यायिक संस्था की गरिमा, स्वतंत्रता और अधिकार की रक्षा करने के लिए बाध्य करती है।
माफी की मांग
मंत्री के कार्यों को “अनुचित” और “पूर्णतः अनावश्यक” बताते हुए, बिहार न्यायिक सेवा संघ ने मांग की है कि श्री विजय कुमार सिन्हा अपने बयानों के परिणामों पर विचार करें और माफी मांगें।
पत्र के अंत में कहा गया है, “संवैधानिक संस्थाओं के बीच आपसी सम्मान बनाए रखना लोकतांत्रिक शासन और कानून के शासन को संरक्षित करने के लिए आवश्यक है।” संघ ने साक्ष्य के रूप में उक्त वीडियो क्लिप भी संलग्न की है।

