धारा 498A | बिना किसी विशिष्ट भूमिका के केवल पति के रिश्तेदारों का नाम लेना अभियोजन के लिए पर्याप्त नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में शिकायतकर्ता के सास-ससुर के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप “अस्पष्ट और सामान्य” (vague and omnibus) थे और क्रूरता या दहेज की मांग का कोई विशिष्ट उदाहरण नहीं दिया गया था।

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने अपील को स्वीकार करते हुए तेलंगाना हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला एक वैवाहिक विवाद से जुड़ा है। शिकायतकर्ता (प्रतिवादी संख्या 2) और अपीलकर्ताओं (सास-ससुर) के बेटे का विवाह 12 अगस्त 2012 को हुआ था और 1 नवंबर 2013 को उनकी एक बेटी हुई।

शादी के लगभग एक दशक बाद, 4 मार्च 2023 को शिकायतकर्ता ने महिला पुलिस थाना, नलगोंडा में शिकायत दर्ज कराई। उसने आरोप लगाया कि शादी के समय उसके परिवार ने 4,50,000 रुपये नकद, 90 ग्राम सोना और घरेलू सामान दिया था। शिकायत में कहा गया कि वे आठ साल तक खुशी से रहे, लेकिन बेटी के जन्म के बाद उसके पति का व्यवहार बदल गया।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि उसके पति ने “अपीलकर्ताओं (सास-ससुर), ननद और ननद के पति की बातों से प्रभावित होकर” उसे अभद्र भाषा में गाली देना और पीटना शुरू कर दिया, तथा 4 लाख रुपये अतिरिक्त दहेज की मांग की। इस शिकायत के बाद, आईपीसी की धारा 498A (क्रूरता), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 504 (जानबूझकर अपमान करना) सहपठित धारा 34 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत अपीलकर्ताओं सहित छह लोगों के खिलाफ एफआईआर (सं. 28/2023) दर्ज की गई।

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इसके बाद आरोप पत्र (चार्जशीट) दाखिल किया गया और नलगोंडा के विशेष न्यायिक मजिस्ट्रेट ने अपराधों का संज्ञान लिया। अपीलकर्ताओं ने कार्यवाही को रद्द करने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 482 के तहत तेलंगाना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हालांकि, 20 फरवरी 2025 के आदेश द्वारा हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा कर दिया और उन्हें ट्रायल कोर्ट के समक्ष डिस्चार्ज (आरोप मुक्त) के लिए आवेदन करने की स्वतंत्रता दी। इससे असंतुष्ट होकर अपीलकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया।

दलीलें और कोर्ट की टिप्पणियां

अपीलकर्ताओं का तर्क था कि उनके खिलाफ आरोप निराधार हैं। 10 जून 2025 को नोटिस तामील होने के बावजूद, शिकायतकर्ता सुप्रीम कोर्ट में उपस्थित नहीं हुई।

सामग्री की समीक्षा करने पर, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि एफआईआर में लगाए गए आरोप “अस्पष्ट और सामान्य” थे। कोर्ट ने नोट किया कि “किसी भी विशिष्ट उदाहरण या अवसर का विवरण नहीं दिया गया है जहां अपीलकर्ताओं ने शिकायतकर्ता से दहेज की मांग की हो और ऐसा न करने पर उसे मानसिक और शारीरिक क्रूरता का शिकार बनाया हो।”

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पीठ ने पाया कि मुख्य आरोप यह था कि पति का आचरण “ससुराल वालों, जिसमें अपीलकर्ता भी शामिल हैं, द्वारा कथित उकसावे” के कारण बदल गया था। कोर्ट ने कहा:

“इसलिए हम पाते हैं कि अपीलकर्ताओं के खिलाफ लगाए गए उपरोक्त आरोप, भले ही उन्हें उनके अंकित मूल्य (face value) पर लिया जाए, प्रथम दृष्टया कथित अपराधों का गठन नहीं करते हैं, जिससे आपराधिक कार्यवाही शुरू की जा सके।”

कोर्ट का विश्लेषण और पूर्व निर्णय

कोर्ट ने दारा लक्ष्मी नारायण बनाम तेलंगाना राज्य, (2025) 3 SCC 735 में अपने हालिया फैसले पर भरोसा किया, जो जस्टिस बी.वी. नागरत्ना द्वारा दिया गया था। पीठ ने उस फैसले से निम्नलिखित टिप्पणी को उद्धृत किया:

“वैवाहिक विवाद से उत्पन्न आपराधिक मामले में परिवार के सदस्यों के नामों का केवल उल्लेख करना, बिना उनकी सक्रिय भागीदारी का संकेत देने वाले विशिष्ट आरोपों के, शुरू में ही रोक दिया जाना चाहिए। यह न्यायिक अनुभव से उपजा एक सर्वविदित तथ्य है कि जब वैवाहिक कलह से घरेलू विवाद उत्पन्न होते हैं तो अक्सर पति के परिवार के सभी सदस्यों को इसमें घसीटने की प्रवृत्ति होती है।”

कोर्ट ने दोहराया कि ठोस सबूतों के बिना सामान्य और व्यापक आरोप आपराधिक अभियोजन का आधार नहीं बन सकते। दारा लक्ष्मी नारायण मामले का हवाला देते हुए, फैसले में आईपीसी की धारा 498A के दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया:

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“हालांकि, हाल के वर्षों में, जैसा कि देश भर में वैवाहिक विवादों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है… पत्नी द्वारा पति और उसके परिवार के खिलाफ व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के लिए धारा 498-A आईपीसी जैसे प्रावधानों का दुरुपयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।”

फैसला

दारा लक्ष्मी नारायण मामले में निर्धारित सिद्धांतों को लागू करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग न करके गलती की।

कोर्ट ने आदेश दिया:

“अपीलकर्ताओं के संबंध में नलगोंडा के न्यायिक प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट (निषेध और उत्पाद शुल्क अपराध) की फाइल पर लंबित सी.सी. संख्या 338/2023 में शुरू की गई कार्यवाही रद्द की जाती है।”

अपील स्वीकार कर ली गई।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: मरम निर्मला एवं अन्य बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील संख्या 2025 (SLP (Crl.) No. 7597/2025 से उद्भूत)
  • साइटेशन: 2025 INSC 1496
  • कोरम: जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन

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