न्यायिक सुधार, “ईज़ ऑफ़ लिविंग” और औपनिवेशिक कानूनों से मुक्ति की दिशा में एक बड़ा कदम उठाते हुए, संसद ने Repealing and Amending Act, 2025 के ज़रिये Indian Succession Act, 1925 में अहम बदलाव किए हैं। यह कानून दिसंबर 2025 में संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ।
इन संशोधनों का मकसद उन पुराने, अंग्रेज़ी दौर के नियमों को हटाना है जिनकी वजह से वसीयत (Will) के आधार पर संपत्ति पाना महंगा, लंबा और कुछ खास शहरों तक सीमित हो गया था। आम परिवारों को छोटी-मोटी संपत्ति के लिए भी अदालतों के चक्कर काटने पड़ते थे।
उत्तराधिकार में मौजूद पुराने अवरोध हटाए गए
2025 के सुधार का साफ उद्देश्य है—
वसीयत के ज़रिये अधिकार साबित करने की प्रक्रिया को सरल बनाना और
जगह व समुदाय के आधार पर होने वाले भेदभाव को खत्म करना।
कई सालों से ऐसा हो रहा था कि बिना किसी विवाद के भी लोगों को प्रोबेट के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती थी। नए बदलाव इसी असंतुलन को ठीक करने के लिए लाए गए हैं।
धारा 213 हटाई गई: अब प्रोबेट अनिवार्य नहीं
पहले क्या नियम था?
धारा 213 के तहत यह ज़रूरी था कि वसीयत के आधार पर कोई भी अधिकार तब तक साबित नहीं किया जा सकता था, जब तक अदालत से प्रोबेट या लेटर्स ऑफ़ एडमिनिस्ट्रेशन न मिल जाए।
इससे तीन बड़ी समस्याएं पैदा होती थीं:
- प्रोबेट अनिवार्य था – चाहे वसीयत पर कोई विवाद न हो।
- भौगोलिक भेदभाव – यह नियम सिर्फ़ तब लागू होता था जब:
- वसीयत कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) या बॉम्बे (मुंबई) हाईकोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र में बनी हो, या
- संपत्ति उन क्षेत्रों में स्थित हो।
- वसीयत कोलकाता, मद्रास (चेन्नई) या बॉम्बे (मुंबई) हाईकोर्ट के मूल अधिकार क्षेत्र में बनी हो, या
- कुछ समुदायों पर ज़्यादा असर – यह प्रावधान मुख्य रूप से हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदायों पर लागू होता था।
2025 में क्या बदला?
- प्रोबेट लेने की बाध्यता हटा दी गई।
- वसीयत के आधार पर अधिकार साबित करने के लिए अब प्रोबेट कानूनी शर्त नहीं है।
- “प्रेसिडेंसी टाउन” वाला पुराना ढांचा ख़त्म कर दिया गया है।
संसद में चर्चा के दौरान कानून मंत्री ने माना कि धारा 213 औपनिवेशिक सोच पर आधारित थी और असमान रूप से लागू होती थी। नए संशोधन से पूरे देश में एक-सा और न्यायपूर्ण नियम लागू होगा।
धारा 370 में बदलाव: उत्तराधिकार प्रमाणपत्र अब आसानी से
पहले की स्थिति
धारा 370 के कारण अदालतें बैंक बैलेंस, एफडी, शेयर जैसी संपत्तियों के लिए Succession Certificate नहीं देती थीं, अगर प्रोबेट लेना ज़रूरी माना जाता था।
इसका नतीजा यह हुआ कि परिवारों को छोटी वित्तीय संपत्ति के लिए भी पहले प्रोबेट की लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था।
अब क्या असर होगा?
- प्रोबेट की अनिवार्यता हटने से धारा 370 की रुकावट लगभग खत्म हो गई।
- कानूनी वारिस अब बिना प्रोबेट के भी उत्तराधिकार प्रमाणपत्र ले सकेंगे।
- यह धारा अब सिर्फ़ कुछ खास मामलों में ही लागू होगी।
इससे मुकदमों की संख्या घटेगी, खर्च कम होगा और समय की भी बचत होगी—खासतौर पर छोटे मामलों में।
अनिवार्य से वैकल्पिक अदालत की भूमिका
2025 का सुधार उत्तराधिकार कानून की सोच ही बदल देता है:
- पहले: प्रोबेट लेना अक्सर ज़रूरी था।
- अब: प्रोबेट लेना एक विकल्प है, मजबूरी नहीं।
अगर कोई व्यक्ति पूरी कानूनी सुरक्षा, साफ़ टाइटल या भविष्य के विवाद से बचाव चाहता है, तो वह प्रोबेट ले सकता है।
लेकिन आम लोगों के लिए अदालत जाना अब अपने-आप में ज़रूरी नहीं रह गया है।
“ईज़ ऑफ़ लिविंग” की ओर एक ठोस कदम
पुराने और बेकार नियम हटाकर, Repealing and Amending Act, 2025 ने उत्तराधिकार कानून को आज की ज़रूरतों के हिसाब से ढाला है। इससे:
- अनावश्यक मुकदमे कम होंगे,
- कानून पूरे देश में समान रूप से लागू होगा,
- और विरासत पाना अब कानूनी बोझ नहीं रहेगा।
सरल शब्दों में, संसद ने यह साफ संदेश दिया है कि
विरासत का रास्ता सहमति और स्पष्टता से तय होना चाहिए, न कि जटिलता और मजबूरी से।

