सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: नोएडा में महिला वकील से हिरासत में ‘यौन उत्पीड़न’ के आरोपों पर केंद्र और यूपी सरकार से जवाब तलब, सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित रखने का आदेश

कानूनी पेशे से जुड़े लोगों की सुरक्षा और पुलिस हिरासत में होने वाले दुर्व्यवहार के एक गंभीर मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महत्वपूर्ण हस्तक्षेप किया। शीर्ष अदालत ने नोएडा के एक पुलिस थाने में महिला वकील के साथ अवैध हिरासत और हिरासत में यौन उत्पीड़न (Custodial Sexual Assault) के सनसनीखेज आरोपों पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए सबूतों के साथ छेड़छाड़ की आशंका पर तत्काल कदम उठाए हैं। पीठ ने गौतम बुद्ध नगर के पुलिस आयुक्त (Commissioner of Police) को निर्देश दिया है कि संबंधित पुलिस थाने के सीसीटीवी फुटेज को न तो नष्ट किया जाए और न ही डिलीट किया जाए। कोर्ट ने आदेश दिया कि घटना की अवधि के फुटेज को ‘सीलबंद लिफाफे’ (Sealed Cover) में सुरक्षित रखा जाए।

क्या है पूरा मामला?

याचिका में 3 दिसंबर की देर रात हुई एक भयावह घटना का विवरण दिया गया है। पीड़िता, जो पेशे से एक वकील हैं, ने आरोप लगाया है कि जब वह अपने मुवक्किल के लिए पेशेवर कर्तव्य निभा रही थीं, तब नोएडा के सेक्टर 126 पुलिस थाने में पुलिसकर्मियों ने उन्हें 14 घंटे तक “अवैध हिरासत” में रखा।

याचिकाकर्ता के अनुसार, इस दौरान उन्हें “हिरासत में यौन उत्पीड़न, यातना और जबरदस्ती” का शिकार होना पड़ा। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने अदालत को बताया कि यह एक “अत्यंत घृणित मामला” है, जहां एक महिला वकील को पुलिस थाने के अंदर “यौन रूप से प्रताड़ित किया गया” (Sexually Mauled)।

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हाईकोर्ट जाने की बजाय सुप्रीम कोर्ट क्यों?

सुनवाई की शुरुआत में, पीठ ने अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने पर सवाल उठाए। पीठ का विचार था कि याचिकाकर्ता को अपनी शिकायत के साथ क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर्ट, यानी इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए था।

पीठ ने टिप्पणी की, “हमें पूरी सहानुभूति है, लेकिन हाईकोर्ट को उचित कार्रवाई करने दें।” जजों ने चिंता जताई कि अगर सुप्रीम कोर्ट सीधे ऐसी याचिकाओं पर सुनवाई शुरू कर देगा, तो “दिल्ली और आसपास के सभी मामले केवल सुप्रीम कोर्ट में ही आने लगेंगे।”

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हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने पीठ से अनुरोध किया कि इसे एक “टेस्ट केस” (Test Case) के रूप में देखा जाए। उन्होंने दलील दी, “यदि नोएडा (NCR) में ऐसा हो रहा है, तो पूरे देश की स्थिति की कल्पना करें।”

सीसीटीवी कैमरों को बंद करने का गंभीर मुद्दा

मामले में मोड़ तब आया जब अधिवक्ता सिंह ने बताया कि घटना के दौरान पुलिस थाने के सीसीटीवी कैमरों को कथित तौर पर ब्लॉक कर दिया गया था और यहां तक कि मूल शिकायतकर्ता को अपनी शिकायत वापस लेने के लिए मजबूर किया गया।

इस दलील ने पीठ का ध्यान खींचा। चूंकि यही पीठ राजस्थान की एक घटना में पुलिस थानों में सीसीटीवी कैमरों की स्थापना और कामकाज की निगरानी कर रही है, इसलिए उन्होंने इस याचिका पर विचार करने का निर्णय लिया।

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पीठ ने कहा, “याचिका में लगाए गए गंभीर आरोपों और इस तथ्य को देखते हुए कि यह मुद्दा पुलिस थाने में घटना की अवधि के दौरान सीसीटीवी कैमरों को ब्लॉक करने से भी संबंधित है… हम इस याचिका पर विचार कर रहे हैं।”

“वे अब हाथ लगाने की जुर्रत नहीं करेंगे”

आदेश पारित होने के बाद, जब वरिष्ठ अधिवक्ता सिंह ने याचिकाकर्ता की सुरक्षा का मुद्दा उठाया, तो पीठ ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “इस आदेश के पारित होने के बाद वे उन्हें हाथ लगाने की जुर्रत नहीं करेंगे।”

मामले की अगली सुनवाई 7 जनवरी को होने की संभावना है।

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