सुप्रीम कोर्ट ने ‘परित्याग’ के आधार पर दी गई तलाक की डिक्री को ‘आपसी सहमति’ में बदला, अनुच्छेद 142 के तहत 25 लाख रुपये का सेटलमेंट तय किया

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में परित्याग (Desertion) के आधार पर दी गई तलाक की डिक्री को रद्द करते हुए, संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग कर विवाह को ‘आपसी सहमति’ से भंग कर दिया है। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने माना कि विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है (Irretrievably broken down) और पति को पूर्ण और अंतिम निपटान (Full and final settlement) के रूप में पत्नी को 25 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह अपील उड़ीसा हाईकोर्ट (कटक) के 8 अगस्त, 2024 के उस आदेश के खिलाफ दायर की गई थी, जिसमें हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा परित्याग के आधार पर दी गई तलाक की डिक्री को बरकरार रखा था।

मामले के तथ्यों के अनुसार, दोनों पक्ष कामकाजी पेशेवर हैं और उनका विवाह 14 दिसंबर, 2014 को संबलपुर, ओडिशा में हुआ था। विवाह के समय अपीलकर्ता-पत्नी इंफोसिस में कार्यरत थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में रहती थीं। वह फरवरी 2017 में भारत लौटीं और बैंगलोर में पति के साथ रहने लगीं, लेकिन जल्द ही उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए। वर्ष 2021 में, पत्नी को उनके नियोक्ता द्वारा प्रतिनियुक्ति (Deputation) पर वापस अमेरिका भेज दिया गया।

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9 मई, 2022 को प्रतिवादी-पति ने फैमिली कोर्ट, संबलपुर में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 के तहत परित्याग के आधार पर तलाक के लिए याचिका दायर की। पति का आरोप था कि पत्नी 24-25 जनवरी, 2020 की मध्यरात्रि को वैवाहिक घर छोड़कर चली गई थी और दो साल से अधिक समय तक वापस नहीं लौटी।

पत्नी ने इन आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वह 19 जनवरी, 2020 को अपने भाई से मिलने गई थीं क्योंकि पति द्वारा पैसों की मांग और प्रतिकूल माहौल बनाया गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने 20 जनवरी, 2020 को पति के खाते में 3,00,000 रुपये ट्रांसफर किए थे, जो यह दर्शाता है कि उन्होंने पति का त्याग नहीं किया था। हालांकि, फैमिली कोर्ट ने 5 अगस्त, 2023 को पति के पक्ष में फैसला सुनाते हुए परित्याग के आधार पर तलाक दे दिया, जिसे बाद में हाईकोर्ट ने भी सही ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट में दलीलें

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान, अपीलकर्ता-पत्नी की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता निखिल गोयल ने कहा कि पत्नी आपसी सहमति से तलाक के लिए तैयार है, लेकिन तलाक की डिक्री ‘परित्याग’ के आधार पर नहीं होनी चाहिए। उनका तर्क था कि पत्नी ने अपनी पेशेवर जिम्मेदारियों के कारण विदेश यात्रा की थी और पति को छोड़ा नहीं था।

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प्रतिवादी-पति की ओर से पेश अधिवक्ता राजीव कुमार चौधरी ने सहमति व्यक्त की कि पति भी आपसी सहमति से विवाह भंग करने के लिए तैयार है और यदि न्यायालय अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।

कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय

पीठ ने मामले के रिकॉर्ड पर गौर करते हुए कहा कि दोनों पक्ष काफी समय से अलग रह रहे हैं और सुलह के प्रयास विफल रहे हैं। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:

“रिकॉर्ड से यह स्पष्ट है कि पक्षकार काफी समय से अलग रह रहे हैं। सुलह के प्रयासों का कोई सकारात्मक परिणाम नहीं निकला है और दोनों पक्षों ने वैवाहिक संबंधों को समाप्त करने की अपनी स्पष्ट इच्छा व्यक्त की है। ऐसी परिस्थितियों में, विवाह अपरिवर्तनीय रूप से टूट चुका है और वैवाहिक बंधन की बहाली की कोई गुंजाइश नहीं बची है।”

पूर्ण न्याय करने के उद्देश्य से, सुप्रीम कोर्ट ने परित्याग के आधार पर दी गई डिक्री को रद्द कर दिया और पक्षकारों की सहमति से विवाह को भंग करने का आदेश दिया।

स्थायी गुजारा भत्ता (Permanent Alimony)

स्थायी गुजारा भत्ता के मुद्दे पर विचार करते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि दोनों पक्ष कमा रहे हैं और अपने लिए अच्छी आय अर्जित कर रहे हैं। हालांकि, वैवाहिक संबंधों से उत्पन्न सभी दावों को अंतिम रूप देने के लिए, कोर्ट ने एकमुश्त राशि का भुगतान करना उचित समझा।

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कोर्ट ने कहा:

“मामले के समग्र तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जिसमें दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति (जो दोनों कामकाजी पेशेवर हैं) और अन्य प्रासंगिक कारक शामिल हैं, हमारा विचार है कि 25 लाख रुपये की राशि पूर्ण और अंतिम निपटान के लिए एक उचित और न्यायसंगत राशि होगी।”

कोर्ट ने निर्देश दिया कि यह राशि दो महीने के भीतर रजिस्ट्री में जमा की जाए, जिसे पत्नी निकाल सकेगी। इसके अनुपालन पर, वैवाहिक विवाद से उत्पन्न पक्षकारों के बीच किसी भी लंबित दीवानी या आपराधिक कार्यवाही को बंद कर दिया जाएगा।

मामले का विवरण:

  • केस टाइटल: भाग्यश्री बिसी बनाम अनिमेष पाधी
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या … 2025 (एस.एल.पी. (सिविल) संख्या 25584/2024 से उत्पन्न)
  • साइटेशन: 2025 आईएनएससी 1464
  • कोरम: जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता
  • अपीलकर्ता के वकील: श्री निखिल गोयल, वरिष्ठ अधिवक्ता
  • प्रतिवादी के वकील: श्री राजीव कुमार चौधरी, अधिवक्ता

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