इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश नगरीय परिसर किरायेदारी विनियमन अधिनियम, 2021 (2021 का अधिनियम) के तहत गठित ‘किराया प्राधिकरण’ (Rent Authority) को उन मामलों में भी मकान मालिकों द्वारा दायर बेदखली की अर्जी सुनने का क्षेत्राधिकार है, जहां किरायेदारी का कोई लिखित समझौता (Rent Agreement) नहीं हुआ है या जहां मकान मालिक ने प्राधिकरण को किरायेदारी का विवरण नहीं सौंपा है।
न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने छह संबंधित याचिकाओं का निस्तारण करते हुए कहा कि 2021 के अधिनियम की धारा 4 के तहत किराया प्राधिकरण को किरायेदारी की सूचना देना एक ‘निर्देशात्मक’ (Directory) प्रक्रिया है, न कि ऐसी बाध्यकारी शर्त जिसके पूरा न होने पर मकान मालिक अपने कानूनी अधिकारों से वंचित हो जाए।
कानूनी मुद्दा और पृष्ठभूमि
कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था: “क्या 2021 के अधिनियम के तहत गठित किराया प्राधिकरण के पास उन मामलों में मकान मालिक की अर्जी सुनने का क्षेत्राधिकार है जहां किरायेदारी समझौता निष्पादित नहीं किया गया है, या यदि निष्पादित नहीं है, तो मकान मालिक किराया प्राधिकरण के पास किरायेदारी का विवरण दाखिल करने में विफल रहा है?”
यह विवाद उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराये पर देने, किराया तथा बेदखली का विनियमन) अधिनियम, 1972 के निरस्त होने और 2021 के नए अधिनियम के लागू होने के बाद उत्पन्न हुआ था। राज्य भर में विभिन्न किराया प्राधिकरणों और अधिकरणों ने इस पर अलग-अलग राय अपनाई थी कि क्या लिखित समझौते या प्राधिकरण द्वारा जारी विशिष्ट पहचान संख्या (Unique ID) के बिना 2021 के अधिनियम के तहत कार्यवाही पोषणीय (maintainable) है या नहीं।
पक्षों की दलीलें
प्रमुख याचिका (केनरा बैंक शाखा कार्यालय बनाम श्री अशोक कुमार) में, याचिकाकर्ता-किरायेदार ने मकान मालिक द्वारा दायर लघुवाद न्यायालय (SCC) के मुकदमे की पोषणीयता को चुनौती दी थी। उनका तर्क था कि 2021 का अधिनियम लागू होने के बाद, धारा 38 के तहत यह मुकदमा बाधित है।
वहीं, अन्य याचिकाओं (जैसे मेसर्स टिफ्को एंड एसोसिएट्स बनाम रचना रस्तोगी) में, मकान मालिकों ने रेंट ट्रिब्यूनल के आदेशों को चुनौती दी थी, जिसने रेंट अथॉरिटी के बेदखली आदेशों को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि धारा 4(3) के अनुसार कोई लिखित समझौता मौजूद नहीं था, इसलिए कार्यवाही नहीं चल सकती।
इसके विपरीत, किरायेदारों का तर्क था कि लिखित समझौते के बिना और किरायेदारी नियमावली, 2021 के नियम 7 (जिसमें यूनिक आईडी आवश्यक है) का पालन किए बिना, किराया प्राधिकरण के पास मामले की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है।
कोर्ट का विश्लेषण
कोर्ट ने मॉडल टेनेंसी एक्ट (केंद्र) और यूपी एक्ट 2021 का विस्तृत तुलनात्मक विश्लेषण किया।
मॉडल एक्ट से जानबूझकर विचलन न्यायमूर्ति अग्रवाल ने पाया कि राज्य के कानून में मॉडल एक्ट से स्पष्ट अंतर है। जबकि मॉडल टेनेंसी एक्ट की धारा 4(6) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि यदि किरायेदारी समझौते की सूचना नहीं दी गई तो मकान मालिक और किरायेदार किसी भी राहत का दावा नहीं कर सकेंगे, उत्तर प्रदेश विधायिका ने “जानबूझकर ऐसे परिणामों को शामिल नहीं करने का विकल्प चुना।”
कोर्ट ने कहा:
“यह स्थापित कानून है कि जहां किसी क़ानून में लोप (omissions) सचेत रूप से किया गया है, वहां विधायी मंशा आकस्मिक नहीं होती, विधायिका द्वारा अपनी बुद्धिमत्ता में किए गए लोप का सम्मान किया जाना चाहिए और उसे न्यायिक व्याख्या प्रक्रिया द्वारा नहीं भरा जा सकता।”
धारा 4 निर्देशात्मक है, अनिवार्य नहीं कोर्ट ने माना कि यद्यपि धारा 4(3) में किरायेदारी का विवरण जमा करने के संबंध में “shall” (होगा/करना होगा) शब्द का प्रयोग किया गया है, लेकिन इसके अनुपालन न करने पर किसी दंडात्मक परिणाम की परिकल्पना नहीं की गई है। इसलिए, यह आवश्यकता निर्देशात्मक (directory) है।
“ऐसे मामलों में जहां मकान मालिक-किरायेदार के संबंध पर कोई विवाद नहीं है, धारा 4 की उप-धारा (3) में प्रयुक्त ‘shall’ शब्द का अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता कि मकान मालिक द्वारा सूचना न देने पर वह 2021 के अधिनियम के तहत अपने सभी अधिकारों से वंचित हो जाएगा।”
धारा 38(2) के तहत क्षेत्राधिकार कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि धारा 38(2) किराया प्राधिकरण के क्षेत्राधिकार को केवल लिखित समझौते वाले मामलों तक सीमित करती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह धारा प्राधिकरण की शक्ति को सीमित करती है—उसे स्वामित्व (Title) के विवादों का फैसला करने से रोकती है—लेकिन यह क्षेत्राधिकार को केवल लिखित समझौते के अस्तित्व पर आधारित नहीं करती।
पूर्व नजीरों में कोई विरोधाभास नहीं कोर्ट ने अमित गुप्ता बनाम गुलाब चंद्र, आलोक गुप्ता बनाम जिला न्यायाधीश, अमरजीत सिंह बनाम श्रीमती शिव कुमारी यादव और विशाल रस्तोगी बनाम रेंट कंट्रोलर सहित पिछली समन्वय पीठ के फैसलों की जांच की। न्यायमूर्ति अग्रवाल ने निष्कर्ष निकाला कि इन फैसलों के बीच कोई विरोधाभास नहीं है क्योंकि वे अलग-अलग क्षेत्रों में संचालित होते हैं, और इस प्रकार, मामले को बड़ी पीठ (Larger Bench) को भेजने की आवश्यकता नहीं है।
निर्णय
हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि लिखित किरायेदारी समझौते या विवरण की सूचना के बिना भी किराया प्राधिकरण के पास बेदखली आवेदनों पर विचार करने का क्षेत्राधिकार है।
कोर्ट ने संबंधित मामलों में निम्नलिखित आदेश पारित किए:
- अनुच्छेद 227 संख्या 626/2024 (केनरा बैंक): किरायेदार की याचिका खारिज कर दी गई। कोर्ट ने आदेश VII नियम 11(d) सीपीसी के तहत आवेदन को खारिज करने वाले निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा और कहा कि एससीसी मुकदमा (SCC Suit) 2021 के अधिनियम द्वारा बाधित नहीं है।
- रिट याचिका संख्या 5714/2024 और 6623/2024: मकान मालिकों द्वारा दायर इन याचिकाओं को आंशिक रूप से स्वीकार किया गया। कोर्ट ने रेंट ट्रिब्यूनल के उन आदेशों को रद्द कर दिया जिनमें लिखित समझौते के अभाव में बेदखली की कार्यवाही को गैर-पोषणीय माना गया था। मामलों को दो महीने के भीतर निर्णय के लिए रेंट ट्रिब्यूनल को वापस भेज दिया गया (remand)।
- रिट याचिका संख्या 5411/2024 और 5413/2024: बेदखली आदेशों के खिलाफ किरायेदारों द्वारा दायर याचिकाएं खारिज कर दी गईं। कोर्ट ने लिखित समझौते के अभाव के बावजूद धारा 21(2)(m) के तहत कार्यवाही की पोषणीयता को बरकरार रखा। किरायेदारों को शपथ पत्र दाखिल करने और डिक्री की राशि का भुगतान करने की शर्त पर परिसर खाली करने के लिए 30 जून, 2026 तक का समय दिया गया।
- एससीसी रिवीजन संख्या 44/2024: किरायेदार द्वारा दायर रिवीजन खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने कहा कि एससीसी मुकदमा 2021 के अधिनियम की धारा 38 के तहत बाधित नहीं है। ट्रायल कोर्ट को छह महीने के भीतर मुकदमे का फैसला करने का निर्देश दिया गया।
केस विवरण
केस टाइटल: केनरा बैंक शाखा कार्यालय व अन्य बनाम श्री अशोक कुमार @ हीरा सिंह (तथा अन्य संबद्ध मामले)
केस नंबर: मैटर्स अंडर आर्टिकल 227 नंबर 626 ऑफ 2024; रिट-ए नंबर 5714, 6623, 5411, 5413 ऑफ 2024; एससीसी रिवीजन नंबर 44 ऑफ 2024
कोरम: न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल
याचिकाकर्ताओं के वकील: कृष्ण मोहन अस्थाना, रवि आनंद अग्रवाल, श्रेया गुप्ता, आकृति चतुर्वेदी, नरेंद्र कुमार चतुर्वेदी, राकेश कुमार सिंह (वरिष्ठ अधिवक्ता), विष्णु गुप्ता (वरिष्ठ अधिवक्ता)
प्रतिवादियों के वकील: हिमांशु मिश्रा, कुणाल शाह, पी.के. जैन (वरिष्ठ अधिवक्ता), अतिप्रिया गौतम, सौरभ पटेल, प्रशांत पांडेय
साइटेशन: 2025:AHC:225540

