मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि तलाक की डिक्री ‘क्रूरता’ (Cruelty) के आधार पर पारित की गई है, तो पति ‘एडल्ट्री’ (व्यभिचार) का आरोप लगाकर पत्नी को भरण-पोषण देने से इनकार नहीं कर सकता। कोर्ट ने पति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पत्नी और नाबालिग बेटी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार किया और बेटी की भरण-पोषण राशि 5,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये प्रतिमाह कर दी।
जस्टिस गजेंद्र सिंह ने मामले की सुनवाई करते हुए एक अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि मां अपना कीमती समय बेटी की देखभाल में लगा रही है, जबकि पिता “वह समय अपने निजी जीवन के आनंद (pleasure of his personal life) के लिए निवेश कर रहा है।” इसलिए, बेटी की शिक्षा और पालन-पोषण के लिए आर्थिक खर्च उठाना पिता का कर्तव्य है।
मामले की पृष्ठभूमि
दंपति का विवाह 14 दिसंबर 2008 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था और 27 जुलाई 2010 को उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ। 10 जुलाई 2021 को पत्नी ने दंड प्रक्रिया संहिता (Cr.P.C.) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए आवेदन दायर किया। उसने आरोप लगाया कि पति ने उनका भरण-पोषण करने से इनकार कर दिया है और वे अपना खर्च चलाने में असमर्थ हैं। पत्नी ने 30,000 रुपये प्रतिमाह की मांग करते हुए बताया कि पति ग्राफिक्स डिजाइनिंग में क्रिएटिव डायरेक्टर के रूप में कार्य करता है और 60,000 रुपये वेतन व 7,000 रुपये किराये से कमाता है।
पति ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि फैमिली कोर्ट, इंदौर द्वारा 16 जून 2021 को तलाक की डिक्री पारित की जा चुकी है। उसने आरोप लगाया कि पत्नी किसी अन्य व्यक्ति के साथ एडल्ट्री में रह रही है और ब्यूटी पार्लर में काम करके 15,000 रुपये प्रतिमाह कमाती है। पति ने अपनी आय 46,000 रुपये बताते हुए अपने वृद्ध माता-पिता की जिम्मेदारी का हवाला दिया।
24 जून 2025 को फैमिली कोर्ट ने पत्नी को 7,000 रुपये और नाबालिग बेटी को 5,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश दिया। इस आदेश के खिलाफ दोनों पक्षों ने हाईकोर्ट में आपराधिक पुनरीक्षण याचिकाएं दायर कीं।
पक्षों की दलीलें
पति ने अपनी याचिका (CRR No. 3343/2025) में फैमिली कोर्ट के आदेश को चुनौती दी। उसका तर्क था कि पत्नी अपने कथित एडल्ट्री वाले जीवन के कारण भरण-पोषण की हकदार नहीं है। उसने दावा किया कि फैमिली कोर्ट ने तलाक की कार्यवाही में पत्नी के “एडल्ट्री कृत्य” के निष्कर्षों को नजरअंदाज किया है। वहीं, बेटी के संबंध में उसने राशि घटाकर 4,000 रुपये करने की मांग की।
दूसरी ओर, पत्नी और बेटी ने अपनी याचिका (CRR No. 4160/2025) में भरण-पोषण राशि को बढ़ाकर 30,000 रुपये करने की मांग की। उनका तर्क था कि बेटी वर्तमान में 9वीं कक्षा में पढ़ रही है और दी गई राशि उसकी शिक्षा और अन्य खर्चों के लिए अपर्याप्त है।
कोर्ट का विश्लेषण
जस्टिस गजेंद्र सिंह ने पत्नी की एडल्ट्री के संबंध में पति की दलील को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने तलाक की डिक्री का परीक्षण किया और पाया कि विवाह हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(1-a) के तहत ‘क्रूरता’ के आधार पर विघटित किया गया था, न कि एडल्ट्री के आधार पर।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
“तलाक की डिक्री एडल्ट्री के आधार पर नहीं दी गई है। तदनुसार, फैमिली कोर्ट, इंदौर ने इस संबंध में पति की दलील को खारिज करके कोई अवैधता नहीं की है।”
नतीजतन, कोर्ट ने माना कि पति उन नजीरों (precedents) का लाभ नहीं ले सकता जो एडल्ट्री के आधार पर भरण-पोषण को रोकते हैं। पत्नी के भरण-पोषण की राशि के संबंध में कोर्ट ने कोई बदलाव नहीं किया, लेकिन इसे रद्द करने से भी इनकार कर दिया।
हालांकि, नाबालिग बेटी के भरण-पोषण को लेकर कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया। कोर्ट ने noted किया कि 2010 में जन्मी बेटी इंदौर के एक पब्लिक स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ रही है। कोर्ट ने कहा कि बेटी अपनी मां के साथ रह रही है और उसे उचित शिक्षा पाने का अधिकार है। रिकॉर्ड से यह भी सामने आया कि पति ने कभी भी बच्चे की कस्टडी लेने की कोशिश नहीं की।
माता-पिता की जिम्मेदारियों के बंटवारे पर टिप्पणी करते हुए जस्टिस सिंह ने कहा:
“मां अपना कीमती समय बेटी की देखभाल के लिए निवेश कर रही है और प्रतिवादी (पिता) वह समय अपने निजी जीवन के आनंद के लिए निवेश कर रहा है। तदनुसार, पिता का कर्तव्य है कि वह बेटी की आवश्यकता के अनुसार आर्थिक खर्च वहन करे और इंदौर शहर के तुलनात्मक रूप से उच्च खर्चों को देखते हुए 5,000 रुपये की राशि उद्देश्य को पूरा नहीं करती है।”
फैसला
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पति की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने पत्नी और बेटी की याचिका को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए नाबालिग बेटी की भरण-पोषण राशि को 5,000 रुपये से बढ़ाकर 15,000 रुपये प्रतिमाह कर दिया।
कोर्ट ने निर्देश दिया कि बढ़ाई गई राशि आवेदन की तिथि, यानी 10 जून 2021 से देय होगी।

