छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि किसी वैधानिक शर्त (Statutory Condition) को वहां अनिवार्य रूप से लागू नहीं किया जा सकता, जहां उसका पालन करना तथ्यात्मक रूप से असंभव हो या जहां उस शर्त का आधार ही मौजूद न हो। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि राजकोषीय प्रावधानों (Fiscal Provisions) की व्याख्या, जहां तक संभव हो, संवैधानिक गारंटी के अनुरूप की जानी चाहिए।
इन सिद्धांतों को लागू करते हुए, हाईकोर्ट ने माना कि निर्यात शुल्क छूट के लिए ‘इरेवोकेबल लेटर ऑफ क्रेडिट’ (LoC) की शर्त उन निर्यातकों पर नहीं थोपी जा सकती, जो कानूनी रूप से भुगतान के अन्य मान्य तरीकों से व्यापार करते हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल तकनीकी आधार पर छूट देने से इनकार करना “तथ्य से ऊपर रूप को महत्व देना” (Elevate form over substance) होगा। परिणामस्वरूप, कोर्ट ने केंद्र सरकार और कस्टम विभाग को याचिकाकर्ता द्वारा जमा किए गए 2,01,28,295 रुपये के निर्यात शुल्क को ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, मैसर्स ईस्टमैन इंटरनेशनल (M/s Eastman International), जो एक मान्यता प्राप्त “3-स्टार एक्सपोर्ट हाउस” है, चावल के निर्यात का कारोबार करती है। 14 अगस्त 2023 से 25 अगस्त 2023 के बीच, याचिकाकर्ता के ‘पारबॉयल्ड राइस’ (Parboiled Rice) की खेप निर्यात के लिए आईसीडी कॉनकोर (ICD CONCOR), नया रायपुर के कस्टम स्टेशन में पहुंची थी।
25 अगस्त 2023 को, केंद्र सरकार ने नोटिफिकेशन नंबर 49/2023-कस्टम जारी किया, जिसके तहत पारबॉयल्ड चावल पर 20% निर्यात शुल्क लगाया गया। उसी समय, नोटिफिकेशन नंबर 50/2023-कस्टम भी जारी किया गया, जिसमें कुछ शर्तों के अधीन इस शुल्क से छूट दी गई थी। विशेष रूप से, छूट की शर्त संख्या 6 में दो आवश्यकताएं निर्धारित की गई थीं:
- (i) माल 25 अगस्त 2023 से पहले कस्टम स्टेशन में प्रवेश कर चुका हो और निकासी आदेश जारी न हुआ हो।
- (ii) निर्यात के लिए माल ‘इरेवोकेबल लेटर ऑफ क्रेडिट’ (LoC) द्वारा समर्थित होना चाहिए, जो 25 अगस्त 2023 से पहले खोला गया हो।
याचिकाकर्ता, जो LoC के बजाय “कैश ऑन डिलीवरी” (Cash upon delivery) के माध्यम से निर्यात आय प्राप्त करता है, ने पहली शर्त पूरी कर ली थी, लेकिन दूसरी शर्त पूरी नहीं कर सका क्योंकि उसके लेनदेन के तरीके में LoC का अस्तित्व ही नहीं था। नतीजतन, कस्टम अधिकारियों ने छूट देने से इनकार कर दिया। देरी से बचने के लिए, याचिकाकर्ता ने “विरोध दर्ज करते हुए” (Under Protest) 2 करोड़ रुपये से अधिक का 20% निर्यात शुल्क जमा किया और हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्री अजय अग्रवाल ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता 2012 से “कैश ऑन डिलीवरी” पद्धति का उपयोग करके चावल का निर्यात कर रहा है, जो निर्यात आय प्राप्ति का एक वैध तरीका है। उन्होंने कहा कि शर्त संख्या 6 की दूसरी उप-शर्त याचिकाकर्ता पर लागू नहीं होनी चाहिए, क्योंकि बिना LoC वाले लेनदेन के लिए इसका पालन करना तथ्यात्मक रूप से असंभव था।
श्री अग्रवाल ने दलील दी कि एक ऐसे निर्यातक के लिए LoC पर जोर देना, जो उस तंत्र के माध्यम से व्यापार नहीं करता है, मनमाना है और संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मैंगलोर केमिकल्स एंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड बनाम डिप्टी कमिश्नर (1992) के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि जब मुख्य उद्देश्य (निर्यात आय की प्राप्ति) पूरा हो जाता है, तो तकनीकी शर्तों को मूल अधिकारों को हराने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
राजस्व (Revenue) की ओर से सुश्री अनमोल शर्मा और श्री अनुमेह श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि छूट अधिसूचनाओं की व्याख्या सख्ती से की जानी चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि शर्त संख्या 6 के खंड (i) और (ii) “और” (and) शब्द से जुड़े हैं, जिसका अर्थ है कि दोनों को एक साथ पूरा किया जाना चाहिए।
प्रतिवादियों ने तर्क दिया कि यदि याचिकाकर्ता छूट के मानदंडों को पूरा नहीं करता था, तो उसके पास शुल्क का भुगतान करके निर्यात करने का विकल्प था। उन्होंने यह भी कहा कि यह लेवी घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिए कस्टम टैरिफ अधिनियम के तहत आपातकालीन शक्तियों के प्रयोग में लिया गया एक नीतिगत निर्णय था, और नीतिगत निर्णय आम तौर पर न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर होते हैं।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने राजस्व की सख्त व्याख्या को खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि राजकोषीय प्रावधानों की व्याख्या संवैधानिक गारंटी के अनुरूप होनी चाहिए। बेंच ने नोट किया कि निर्यात लेनदेन कानूनी रूप से कई तरीकों से किए जा सकते हैं, जैसे ओपन अकाउंट, वायर ट्रांसफर और कैश-ऑन-डिलीवरी, और LoC के माध्यम से निर्यात “न तो अनिवार्य है और न ही वैधानिक रूप से आवश्यक है।”
अनुपालन की असंभवता (Impossibility of Compliance) कोर्ट ने कहा कि शर्त संख्या 6 का खंड (ii) “इरेवोकेबल LoC के अस्तित्व पर आधारित है।” जजों ने स्पष्ट किया कि एक वैधानिक शर्त को वहां लागू नहीं किया जा सकता जहां वह आधार ही गायब हो जिस पर वह संचालित होती है।
“कानून किसी निर्यातक को केवल एक ऐसी शर्त को पूरा करने के लिए पहले LoC बनाने के लिए बाध्य नहीं करता है, जो उन लोगों को विनियमित करने के लिए है जो पहले से ही उस तंत्र के तहत काम करते हैं। इसके विपरीत मानना अधिसूचना को फिर से लिखने और एक ऐसी आवश्यकता को आयात करने के समान होगा जिसे अधिसूचना स्वयं अनिवार्य नहीं करती है।”
“और” (And) शब्द का उपयोग प्रतिवादियों के इस तर्क पर कि शर्तों को संयुक्त रूप से पढ़ा जाना चाहिए, कोर्ट ने कहा:
“संयोजक ‘और’ के उपयोग का मतलब यह नहीं है कि कोई शर्त वहां भी लागू हो जाएगी जहां उसका तथ्यात्मक आधार ही अनुपस्थित है। सख्त व्याख्या का अर्थ विधायी मंशा से अलग यांत्रिक व्याख्या नहीं है।”
कानूनी सिद्धांत और संवैधानिक वैधता कोर्ट ने लेक्स नॉन कोगिट एड इम्पॉसिबिलिया (कानून किसी व्यक्ति को वह करने के लिए बाध्य नहीं करता जो असंभव है) के सिद्धांत का आह्वान किया। बेंच ने टिप्पणी की कि 25 अगस्त 2023 से पहले पूर्वव्यापी रूप से LoC खोलने के लिए निर्यातक को मजबूर करना छूट को भ्रामक बना देगा।
कोर्ट ने यह भी माना कि प्रतिवादियों की व्याख्या LoC का उपयोग करने वाले निर्यातकों और अन्य वैध तरीकों का उपयोग करने वाले निर्यातकों के बीच एक “शत्रुतापूर्ण वर्गीकरण” (Hostile Classification) पैदा करती है, जबकि दोनों ही निर्यात आय की प्राप्ति के संबंध में समान स्थिति में हैं।
“इस तरह के वर्गीकरण में कोई सुगम अंतर (Intelligible Differentia) नहीं है और इसका घोषित उद्देश्य के साथ कोई तर्कसंगत संबंध नहीं है, जिससे यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है।”
फैसला
हाईकोर्ट ने रिट याचिका स्वीकार करते हुए फैसला सुनाया कि अधिसूचना की दूसरी शर्त केवल उन निर्यातकों पर लागू होती है जो लेटर ऑफ क्रेडिट के माध्यम से व्यापार करते हैं और उन पर लागू नहीं होती जो ऐसा नहीं करते हैं।
कोर्ट ने आदेश दिया:
“याचिकाकर्ता द्वारा खंड (i) को पूरा करने और निर्यात आय प्राप्त करने के बाद, वह नोटिफिकेशन नंबर 50/2023-कस्टम के तहत छूट का लाभ पाने का हकदार है।”
प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया है कि वे आठ सप्ताह की अवधि के भीतर कानून के अनुसार ब्याज सहित 2,01,28,295 रुपये की राशि वापस करें।

