बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ ने दहेज हत्या और क्रूरता के मामले में दोषी ठहराए गए पति और सास को बरी कर दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपों को साबित करने में विफल रहा है। अदालत ने पाया कि मृतक पत्नी “चिड़चिड़े स्वभाव” (Short-tempered) की थी और उसने “गुस्से के आवेश” (Fit of anger) में आकर आत्महत्या की थी। जस्टिस नीरज पी. धोटे ने स्पष्ट किया कि “हर तरह का उत्पीड़न या बुरा व्यवहार आईपीसी की धारा 498-A के तहत ‘क्रूरता’ (Cruelty) की श्रेणी में नहीं आता है।”
मामले की पृष्ठभूमि
यह अपील राजकुमार रामदास भगत (32) और उनकी मां सुरतबाई उर्फ सरस्वती रामदास भगत (58) द्वारा दायर की गई थी। उन्होंने श्रीगोंडा के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा 30 अगस्त, 2023 को दिए गए फैसले को चुनौती दी थी। निचली अदालत ने उन्हें आईपीसी की धारा 498-A (क्रूरता), 304-B(2) (दहेज हत्या), 323, 504 और 506 के तहत दोषी ठहराया था और धारा 304-B के तहत दस साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई थी।
अभियोजन पक्ष का मामला था कि मृतका सुदेशना की शादी 10 दिसंबर 2010 को राजकुमार से हुई थी। आरोप था कि शादी के पांच-छह महीने बाद ही ससुराल वालों ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया। यह भी आरोप लगाया गया कि सितंबर 2012 में दुर्व्यवहार के कारण उसका गर्भपात हो गया। अभियोजन का दावा था कि उसे घर बनाने और पोल्ट्री व्यवसाय शुरू करने के लिए 2 लाख रुपये की मांग के साथ मायके भेज दिया गया था। 12 नवंबर, 2014 को सुदेशना ने चलती ट्रेन के सामने कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
पक्षों की दलीलें
अपीलकर्ताओं (आरोपियों) की ओर से तर्क दिया गया कि रिकॉर्ड पर मौजूद सबूत धारा 498-A को आकर्षित करने के लिए आवश्यक दुर्व्यवहार को स्थापित नहीं करते हैं। उनके वकील ने दलील दी कि मृतका “गुस्सैल स्वभाव की महिला थी और उसने गुस्से में आत्महत्या की थी।” यह भी तर्क दिया गया कि पति और ससुराल वाले आर्थिक रूप से संपन्न थे, इसलिए 2 लाख रुपये की मांग का कोई सवाल ही नहीं उठता। बचाव पक्ष ने यह भी कहा कि सुसाइड नोट बाद में रखा गया (Planted) था और हस्तलेखन विशेषज्ञ (Handwriting Expert) की रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका मिलान करने के लिए मृतका की नेचुरल लिखावट का कोई सबूत नहीं था।
वहीं, राज्य सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त लोक अभियोजक (APP) ने तर्क दिया कि दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। उन्होंने मृतका की सहेली (PW-5) की गवाही और हस्तलेखन विशेषज्ञ की रिपोर्ट का हवाला दिया और दावा किया कि सुसाइड नोट मृतका द्वारा ही लिखा गया था।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और फैसला
जस्टिस नीरज पी. धोटे ने सबूतों का विश्लेषण किया और अभियोजन पक्ष के मामले में महत्वपूर्ण खामियां पाईं।
क्रूरता और मृतका के स्वभाव पर: कोर्ट ने मृतका के भाई (PW-1) और एक पड़ोसी (PW-4) के बयानों पर गौर किया। PW-1 ने जिरह में स्वीकार किया कि “मृतका का स्वभाव चिड़चिड़ा (Irritative) था” और अक्सर विवाद होते थे जिसमें “दोनों पक्षों की कुछ न कुछ गलती होती थी।”
कोर्ट ने टिप्पणी की:
“अभियोजन पक्ष के मुख्य गवाहों के साक्ष्यों के मूल्यांकन से यह स्पष्ट हो जाता है कि मृतका चिड़चिड़े स्वभाव की महिला थी… झगड़े अपने आप में तब तक अपराध नहीं माने जाएंगे जब तक कि वे ‘क्रूरता’ के दायरे में न आएं, जो पीड़ित को आत्महत्या के लिए मजबूर कर दें। रिकॉर्ड पर मौजूद स्पष्ट सबूत दिखाते हैं कि मृतका गुस्सैल स्वभाव की थी और उसने गुस्से में आकर अपनी जीवन लीला समाप्त की।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि कानून के तहत यह एक स्थापित स्थिति है कि हर उत्पीड़न या बुरा व्यवहार आईपीसी की धारा 498-A के तहत क्रूरता नहीं कहलाता है।”
दहेज की मांग पर: मृतका की सहेली (PW-5) की गवाही की भी जांच की गई। कोर्ट ने पाया कि घटना से एक साल पहले तक उसका मृतका से कोई संपर्क नहीं था। कोर्ट ने पैसे की मांग के बारे में उसकी गवाही को बढ़ा-चढ़ाकर बताया गया और सुधार (Improvement) माना। कोर्ट ने यह भी बताया कि घटना से पहले मृतका और उसके पति द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित समझौते (Undertaking) में पैसे की मांग या उससे संबंधित किसी दुर्व्यवहार का कोई उल्लेख नहीं था।
सुसाइड नोट पर: हाईकोर्ट ने सुसाइड नोट की बरामदगी पर गंभीर संदेह व्यक्त किया। पंच गवाह (PW-2) ने कहा कि घटना स्थल पर कोई कागज नहीं मिला था, जबकि इनक्वेस्ट पंचनामा में मृतका के हाथ में एक चिट होने की बात कही गई थी। कोर्ट ने कहा कि नोट की बरामदगी “अत्यधिक संदिग्ध” है और यह एक “रहस्य” बना हुआ है।
जस्टिस धोटे ने कहा:
“ऐसी स्थिति में, सुसाइड चिट के संबंध में अभियोजन पक्ष के मामले को गंभीर संदेह की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। नतीजतन, हस्तलेखन विशेषज्ञ का यह साक्ष्य कि चिट और दो कागजों की लिखावट का मिलान हुआ, अभियोजन पक्ष के लिए किसी काम का नहीं है।”
निष्कर्ष
हाईकोर्ट ने माना कि अभियोजन पक्ष अपीलकर्ताओं द्वारा पैसे की मांग या क्रूरता को स्थापित करने में “बुरी तरह विफल” रहा है। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि सबूत आत्महत्या के लिए उकसाने या दहेज हत्या को साबित करने के लिए अपर्याप्त हैं।
“सबूत स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि मृतका चिड़चिड़े स्वभाव की थी और अक्सर उसके और ससुराल वालों के बीच झगड़े होते थे और उसने गुस्से के आवेश में आत्महत्या की।”
अदालत ने अपील स्वीकार कर ली, निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को रद्द कर दिया और राजकुमार रामदास भगत तथा सुरतबाई उर्फ सरस्वती रामदास भगत को सभी आरोपों से बरी कर दिया। उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया।
केस डीटेल्स:
- केस टाइटल: राजकुमार पुत्र रामदास भगत और अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य
- केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 828 ऑफ 2023
- कोरम: जस्टिस नीरज पी. धोटे
- अपीलकर्ताओं के वकील: श्री राजेंद्र के. टेमकर (श्री माधव एन. कल्याणे की ओर से)
- प्रतिवादी के वकील: सुश्री ए. एस. देशमुख, एपीपी

