वेटिंग लिस्ट में नाम होने से प्रमोशन का अधिकार नहीं मिल जाता, रिक्तियां भरने के बाद दावा समाप्त: दिल्ली हाईकोर्ट

दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी आरक्षित पैनल या वेटिंग लिस्ट (प्रतीक्षा सूची) में उम्मीदवार का नाम शामिल होना उसे नियुक्ति या पदोन्नति का कोई निहित अधिकार (Vested Right) नहीं देता है। कोर्ट ने कहा कि विचार किए जाने का अधिकार केवल तभी उत्पन्न होता है जब कोई चयनित उम्मीदवार पदभार ग्रहण करने में विफल रहता है, और ऐसी सूची एक सीमित अवधि के लिए ही प्रभावी होती है।

न्यायमूर्ति अवनीश झिंगन ने पंजाब नेशनल बैंक की पदोन्नति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया। कोर्ट ने कहा कि पिछले वित्तीय वर्ष के लिए निर्धारित रिक्तियां पहले ही भरी जा चुकी थीं, इसलिए बैंक को अगले वर्ष के लिए चयन प्रक्रिया शुरू करने का पूर्ण अधिकार था।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता, श्री विजय जोशी, 17 अप्रैल 1985 को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया (अब पंजाब नेशनल बैंक में विलय) में प्रोबेशनरी ऑफिसर के रूप में शामिल हुए थे। अगस्त 2017 से जुलाई 2019 तक, उन्होंने मुख्य क्षेत्रीय प्रबंधक (Chief Regional Manager) के पद पर कार्य किया।

वित्तीय वर्ष (F.Y.) 2019-20 के लिए एसएमजी स्केल-V से स्केल-VI में पदोन्नति के लिए पैनल तैयार करने हेतु 6 अप्रैल 2019 को साक्षात्कार आयोजित किए गए थे। इस प्रक्रिया के बाद, चयनित उम्मीदवारों द्वारा बारह रिक्तियां भरी गईं। याचिकाकर्ता वेटिंग लिस्ट में दूसरे क्रम (सीरियल नंबर 2) पर थे।

इसके बाद, 26 फरवरी 2020 को बैंक ने अगले वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए पदोन्नति पैनल के गठन हेतु साक्षात्कार पत्र जारी किया। याचिकाकर्ता ने इस साक्षात्कार प्रक्रिया में भाग नहीं लेने का विकल्प चुना और बाद में 15 सितंबर 2020 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली।

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याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए 25 फरवरी 2020 को शुरू की गई साक्षात्कार प्रक्रिया को रद्द करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि पिछले वर्ष की वेटिंग लिस्ट अभी भी वैध थी।

पक्षों की दलीलें

याचिकाकर्ता के वकील ने यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की पदोन्नति नीति (31 मई 2019 तक संशोधित) का हवाला दिया। यह तर्क दिया गया कि नीति के तहत, पूरक वेटिंग लिस्ट/पैनल 31 मार्च 2020 तक वैध था। याचिकाकर्ता ने कहा कि बैंक ने इस तारीख से पहले नई प्रक्रिया शुरू करके गलती की है। इसके समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के ए.पी. अग्रवाल बनाम जीएनसीटी ऑफ दिल्ली (2000) और आर.एस. मित्तल बनाम भारत संघ (1995) के फैसलों का हवाला दिया गया।

इसके विपरीत, बैंक (प्रतिवादी) के वकील ने तर्क दिया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 का पैनल 31 मार्च 2020 को समाप्त हो गया था। यह दलील दी गई कि 2019-20 के लिए निर्धारित बारह पद याचिकाकर्ता से उच्च योग्यता वाले उम्मीदवारों द्वारा भरे जा चुके थे। बैंक ने जोर देकर कहा कि केवल वेटिंग लिस्ट में होने के आधार पर याचिकाकर्ता का पदोन्नति का दावा करने का कोई निहित अधिकार नहीं है। इसके अलावा, चूंकि याचिकाकर्ता ने 2020-21 के साक्षात्कार के लिए उपस्थित नहीं होने का विकल्प चुना और स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, इसलिए अब कोई वाद का कारण (Cause of Action) शेष नहीं है।

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कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

न्यायमूर्ति झिंगन ने पदोन्नति नीति के प्रासंगिक नियमों की जांच की। विनियमन 2.1 में यह प्रावधान है कि प्रबंधन प्रत्येक अवसर पर भरी जाने वाली रिक्तियों की संख्या निर्धारित करता है, जिसमें वित्तीय वर्ष में उत्पन्न होने वाली सभी संभावित रिक्तियों को ध्यान में रखा जाता है। विनियमन 7(vi) पूरक वेटिंग लिस्ट/पैनल तैयार करने का प्रावधान करता है, जो 31 मार्च तक वैध होता है।

कोर्ट ने इस स्वीकृत तथ्य को नोट किया कि वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए निर्धारित बारह रिक्तियां चयनित उम्मीदवारों द्वारा भरी गई थीं और कोई भी पद खाली नहीं रहा था।

कोर्ट ने स्थापित कानूनी सिद्धांत को दोहराया कि वेटिंग लिस्ट एक विशिष्ट आकस्मिकता (contingency) के लिए होती है। न्यायमूर्ति झिंगन ने कहा:

“कानून अच्छी तरह से स्थापित है कि रिजर्व पैनल में उम्मीदवार का स्थान कोई निहित अधिकार नहीं बनाता है। विचार किए जाने का अधिकार केवल चयनित उम्मीदवारों के पदों पर शामिल न होने की आकस्मिकता में उत्पन्न होता है और वेटिंग लिस्ट एक सीमित अवधि के लिए संचालित होती है।”

हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले भारत संघ और अन्य बनाम सुमित कुमार दास (2025 INSC 1235) पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था:

“उपर्युक्त से, यह स्पष्ट है कि वेटिंग लिस्ट उम्मीदवार के रूप में प्रतिवादी जो भी अधिकार का दावा कर सकता था, वह तब समाप्त हो गया जब सभी चयनित उम्मीदवार अपने संबंधित पदों पर शामिल हो गए।”

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नई साक्षात्कार प्रक्रिया के समय के संबंध में याचिकाकर्ता की शिकायत को संबोधित करते हुए, कोर्ट ने कहा कि भले ही 2019-20 के लिए वेटिंग लिस्ट 31 मार्च 2020 तक वैध थी, लेकिन बैंक द्वारा आयोजित साक्षात्कार अगले वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए थे। कोर्ट ने स्पष्ट किया:

“बैंक द्वारा वित्तीय वर्ष यानी 2020-21 के लिए आयोजित साक्षात्कार विनियमन 2 के अनुरूप थे, इसका वित्तीय वर्ष 2019-20 के लिए पूरक वेटिंग लिस्ट/पैनल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, बावजूद इसके कि वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए पैनल बनाने के साक्षात्कार 31.03.2020 से पहले आयोजित किए गए थे।”

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा उद्धृत निर्णय वर्तमान मामले में लागू नहीं होते क्योंकि यहाँ ऐसा कोई मामला नहीं था जहाँ चयनित उम्मीदवार पदभार ग्रहण करने में विफल रहे हों, न ही उसी वर्ष की रिक्तियों के लिए वेटिंग लिस्ट को मनमाने ढंग से दरकिनार किया गया हो।

निर्णय

कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता की शिकायत निराधार थी। चूंकि नए साक्षात्कार वित्तीय वर्ष 2020-21 के लिए थे और याचिकाकर्ता ने स्वयं नई प्रक्रिया में भाग नहीं लेने का फैसला किया था, इसलिए हस्तक्षेप का कोई आधार नहीं बनता।

तदनुसार, रिट याचिका खारिज कर दी गई।

केस विवरण:

  • केस टाइटल: श्री विजय जोशी बनाम पंजाब नेशनल बैंक
  • केस नंबर: W.P.(C) 2478/2020 & CM APPL. 8642/2020
  • कोरम: न्यायमूर्ति अवनीश झिंगन
  • साइटेशन: 2025:DHC:11226

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