पूर्व केंद्रीय मंत्री एमजे अकबर द्वारा पत्रकार प्रिया रमानी के बरी होने को चुनौती देने वाली याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण प्रक्रियात्मक आदेश जारी किया। अदालत ने इस हाई-प्रोफाइल आपराधिक मानहानि मामले की सुनवाई की तारीख को आगे बढ़ाते हुए इसे ‘प्रीपोन’ (prepone) कर दिया है। अब इस मामले की सुनवाई मई 2026 के बजाय 16 मार्च को होगी।
न्यायमूर्ति रविंदर डुडेजा की पीठ ने एमजे अकबर की ओर से दायर उस आवेदन को स्वीकार कर लिया, जिसमें सुनवाई की तारीख जल्दी निर्धारित करने की मांग की गई थी। पूर्व में यह मामला 7 मई, 2026 के लिए सूचीबद्ध था।
सुनवाई के दौरान एमजे अकबर के वकील ने अदालत से आग्रह किया कि मामले की सुनवाई में तेजी लाते हुए इसे फरवरी में सूचीबद्ध किया जाए। दूसरी ओर, प्रिया रमानी की ओर से पेश वकील ने तारीख बदलने के आवेदन पर कोई आपत्ति नहीं जताई। हालांकि, उन्होंने तर्क दिया कि मामले में ऐसी कोई तत्काल तात्कालिकता (urgency) नहीं है, इसलिए मार्च की कोई भी तारीख तय की जा सकती है।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, न्यायमूर्ति डुडेजा ने मामले को 7 मई, 2026 की लंबी तारीख से हटाकर आगामी 16 मार्च के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया।
अपील का आधार और पृष्ठभूमि
यह कानूनी लड़ाई 2018 के #MeToo आंदोलन से जुड़ी है। एमजे अकबर ने ट्रायल कोर्ट के 17 फरवरी, 2021 के उस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें प्रिया रमानी को आपराधिक मानहानि के मामले में बरी कर दिया गया था।
दिल्ली हाईकोर्ट ने 13 जनवरी, 2022 को अकबर की अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार (Admit) किया था। इससे पहले अगस्त 2021 में रमानी को नोटिस जारी किया गया था।
अपनी अपील में पूर्व मंत्री ने तर्क दिया है कि ट्रायल कोर्ट का फैसला सबूतों के बजाय “कयासों और अनुमानों” (surmises and conjecture) पर आधारित था। अकबर का कहना है कि निचली अदालत रिकॉर्ड पर मौजूद तर्कों और सबूतों की सही सराहना करने में विफल रही, जिसके परिणामस्वरूप गलत फैसला सुनाया गया।
इस मामले की शुरुआत 15 अक्टूबर, 2018 को हुई थी, जब एमजे अकबर ने प्रिया रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि की शिकायत दर्ज कराई थी। यह कदम तब उठाया गया जब रमानी ने उन पर दशकों पहले यौन दुराचार करने का आरोप लगाया था। इन आरोपों और उसके बाद सोशल मीडिया पर मचे बवाल के चलते अकबर को 17 अक्टूबर, 2018 को केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था।
फरवरी 2021 में ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाया गया फैसला महिला अधिकारों के लिहाज से काफी चर्चा में रहा था। अदालत ने एमजे अकबर की शिकायत को खारिज करते हुए कहा था कि एक महिला को दशकों बाद भी अपनी बात किसी भी मंच पर रखने का अधिकार है।
निचली अदालत ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह “शर्मनाक” है कि जिस देश में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्य महिलाओं के सम्मान के लिए लिखे गए, वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध हो रहे हैं। कोर्ट ने माना था कि रमानी के खिलाफ कोई भी आरोप साबित नहीं हुआ।
अब दिल्ली हाईकोर्ट मार्च में इस बरी किए जाने के फैसले की वैधता पर सुनवाई करेगा।

