सेक्शन 44C की सीमा अनिवासी करदाताओं के ‘कॉमन’ और ‘एक्सक्लूसिव’ दोनों प्रकार के हेड ऑफिस खर्चों पर लागू होगी: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 44C के तहत निर्धारित अधिकतम सीमा (सीलिंग लिमिट) अनिवासी करदाता (Non-resident Assessee) द्वारा किए गए “हेड ऑफिस खर्च” पर लागू होती है, चाहे वह खर्च कई शाखाओं के लिए “कॉमन” हो या विशेष रूप से केवल भारतीय शाखा के लिए “एक्सक्लूसिव” रूप से किया गया हो।

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने बॉम्बे हाईकोर्ट के कमिश्नर ऑफ इनकम टैक्स बनाम एमिरेट्स कमर्शियल बैंक लिमिटेड मामले में दिए गए उस दृष्टिकोण को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि भारतीय शाखा के लिए हेड ऑफिस द्वारा किया गया ‘एक्सक्लूसिव’ खर्च धारा 44C के दायरे से बाहर है।

कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या किसी अनिवासी करदाता के हेड ऑफिस द्वारा विशेष रूप से उसकी भारतीय शाखाओं के लिए किए गए खर्च की कटौती (deduction) धारा 44C की सीमा के अधीन होगी या धारा 37(1) के तहत पूरी तरह से स्वीकार्य होगी। कोर्ट ने राजस्व विभाग (Revenue) के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा कि धारा 44C ‘कॉमन’ और ‘एक्सक्लूसिव’ खर्च के बीच कोई भेदभाव नहीं करती है। हालांकि, कोर्ट ने मामले को सीमित उद्देश्य के लिए आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT), मुंबई को वापस भेज दिया है ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि विवादित खर्च तकनीकी रूप से कानून के तहत “हेड ऑफिस खर्च” की परिभाषा में आते हैं या नहीं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह फैसला दो दीवानी अपीलों (Civil Appeals) से संबंधित है, जिनमें मैसर्स अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक लिमिटेड और मैसर्स ओमान इंटरनेशनल बैंक शामिल हैं।

अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक के मामले में, निर्धारिती (एक अनिवासी बैंकिंग कंपनी) ने निर्धारण वर्ष (Assessment Year) 1997-1998 के लिए अपनी भारतीय शाखाओं के संबंध में हेड ऑफिस द्वारा किए गए खर्चों के लिए धारा 37(1) के तहत कटौती का दावा किया था। असेसिंग ऑफिसर (AO) ने धारा 44C लागू करते हुए कटौती को सकल कुल आय के 5% तक सीमित कर दिया। बाद में ITAT ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एमिरेट्स कमर्शियल बैंक फैसले का हवाला देते हुए निर्धारिती की अपील स्वीकार कर ली और तर्क दिया कि ‘एक्सक्लूसिव’ खर्च धारा 44C के दायरे से बाहर हैं। हाईकोर्ट ने भी राजस्व की अपील खारिज कर दी थी।

READ ALSO  जस्टिस विभु बखरू ने कर्नाटक हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में ली शपथ

इसी तरह, ओमान इंटरनेशनल बैंक ने निर्धारण वर्ष 2003-04 के लिए अपनी भारतीय शाखाओं के लिए विशेष रूप से किए गए यात्रा खर्च और प्रमाणन शुल्क के लिए कटौती का दावा किया। AO ने धारा 44C की सीमा लागू की। CIT(A) और ITAT ने निर्धारिती के पक्ष में फैसला सुनाया और बॉम्बे हाईकोर्ट ने एमिरेट्स कमर्शियल बैंक का हवाला देते हुए राजस्व की अपील खारिज कर दी थी।

पक्षकारों की दलीलें

राजस्व विभाग की ओर से उपस्थित अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि धारा 44C एक ‘नॉन-ऑब्स्टंटे’ क्लॉज (“धारा 28 से 43A में इसके विपरीत कुछ भी होते हुए भी…”) से शुरू होती है, जो इसे धारा 37 पर प्रभावी बनाती है। राजस्व का कहना था कि इस प्रावधान का विधायी उद्देश्य विदेशी कंपनियों द्वारा बढ़ा-चढ़ाकर किए गए दावों पर अंकुश लगाना था, क्योंकि उनके खाते विदेश में रखे जाते हैं जिससे उनका सत्यापन मुश्किल होता है। यह तर्क दिया गया कि “हेड ऑफिस खर्च” की परिभाषा स्पष्ट है और इसमें भारत के बाहर किए गए सभी कार्यकारी और सामान्य प्रशासनिक खर्च शामिल हैं, बिना ‘कॉमन’ और ‘एक्सक्लूसिव’ के भेद के।

प्रतिवादी (बैंकों) ने तर्क दिया कि धारा 44C केवल ‘कॉमन’ हेड ऑफिस खर्चों पर लागू होती है जिन्हें भारतीय व्यवसाय के लिए आवंटित (allocate) करने की आवश्यकता होती है। उन्होंने कहा कि भारतीय परिचालन के लिए ‘विशेष रूप से’ (exclusively) किया गया खर्च धारा 37(1) के तहत पूरी तरह से कटौती योग्य है क्योंकि यह सीधे भारतीय व्यवसाय से जुड़ा है और इसके लिए धारा 44C के आनुपातिक फार्मूले की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के एमिरेट्स कमर्शियल बैंक और कलकत्ता हाईकोर्ट के रूपनजुली टी कंपनी लिमिटेड के फैसलों का हवाला दिया।

कोर्ट का विश्लेषण

सुप्रीम कोर्ट ने कर कानून की सख्त व्याख्या (Strict Interpretation) का सिद्धांत अपनाया। पीठ ने कहा कि धारा 44C तब लागू होती है जब दो शर्तें पूरी होती हैं: निर्धारिती अनिवासी हो, और खर्च धारा के स्पष्टीकरण (Explanation) में परिभाषित “हेड ऑफिस खर्च” की प्रकृति का हो।

READ ALSO  आपराधिक अपील को निष्फल के रूप में खारिज नहीं किया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

“हेड ऑफिस खर्च” की व्याख्या कोर्ट ने ‘कॉमन’ और ‘एक्सक्लूसिव’ खर्च के बीच के अंतर को खारिज कर दिया। जस्टिस पारदीवाला ने पीठ के लिए निर्णय लिखते हुए कहा:

“कानून का पाठ (text) ऐसा कोई संकेत नहीं देता है कि खर्च ‘कॉमन’ या साझा प्रकृति का होना चाहिए। इसलिए, स्पष्टीकरण का अर्थ साफ, सीधा और स्पष्ट है। यदि हम प्रतिवादियों के तर्क को स्वीकार करते हैं, तो हमें कानून में ऐसे शब्द जोड़ने होंगे जो वास्तव में वहां मौजूद ही नहीं हैं।”

“Attributable to” (से संबंधित/का कारणभूत) की व्याख्या धारा 44C के क्लॉज (c) के संबंध में प्रतिवादियों के तर्क को संबोधित करते हुए, जो “भारत में व्यवसाय… के लिए एट्रिब्यूटेबल (attributable)” खर्च को संदर्भित करता है, कोर्ट ने कहा कि ‘एट्रिब्यूटेबिलिटी’ (attributability) एक व्यापक वर्ग (genus) है और ‘एक्सक्लूसिविटी’ (exclusivity) उसकी एक प्रजाति (species) है। कोर्ट ने कहा:

“जो खर्च विशेष रूप से भारत में व्यवसाय के लिए किया जाता है, वह अपनी प्रकृति से ही भारत में व्यवसाय के लिए ‘एट्रिब्यूटेबल’ है। वास्तव में, ‘एक्सक्लूसिव’ खर्च एट्रिब्यूशन का सबसे मजबूत रूप है, क्योंकि खर्च और भारतीय परिचालन के बीच सीधा और अविभाजित संबंध होता है।”

एमिरेट्स कमर्शियल बैंक के फैसले से असहमति कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा कि एमिरेट्स कमर्शियल बैंक मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का यह दृष्टिकोण गलत था कि धारा 44C केवल ‘कॉमन’ खर्च को कवर करती है।

रूपनजुली टी मामले में अंतर कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के रूपनजुली टी के फैसले को वर्तमान मामले से अलग बताया। कोर्ट ने नोट किया कि उस मामले में निर्धारिती का भारत के बाहर कोई व्यावसायिक परिचालन नहीं था। इसलिए, क्लॉज (c) के तहत एट्रिब्यूशन की अवधारणा लागू नहीं हो सकती थी। यह वर्तमान मामलों से तथ्यात्मक रूप से अलग था जहां बैंकों का वैश्विक परिचालन था।

विधायी मंशा कोर्ट ने कहा कि वित्त विधेयक, 1976 के ज्ञापन सहित विधायी इतिहास राजस्व के मामले का समर्थन करता है। इसका उद्देश्य विदेशी हेड ऑफिस द्वारा किए गए दावों के सत्यापन में आने वाली कठिनाई को दूर करना था। प्रतिवादियों के दृष्टिकोण को स्वीकार करने से यह उद्देश्य विफल हो जाएगा।

READ ALSO  You Have 24 hours to tackle the pollution problem in Delhi or We form a task force- SC to Centre

हेड ऑफिस खर्च के लिए ‘त्रिपक्षीय परीक्षण’ (Tripartite Test) कानूनी सिद्धांत पर राजस्व के पक्ष में फैसला सुनाते हुए, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्पष्टीकरण में “हेड ऑफिस खर्च” की परिभाषा केवल उदाहरणात्मक नहीं है, बल्कि “कार्यकारी और सामान्य प्रशासन” खर्चों के प्रकारों के संबंध में विस्तृत है। कोर्ट ने किसी खर्च को योग्य बनाने के लिए एक “त्रिपक्षीय परीक्षण” निर्धारित किया:

  1. खर्च भारत के बाहर किया गया होना चाहिए।
  2. खर्च “कार्यकारी और सामान्य प्रशासन” (व्यापक वर्ग) की प्रकृति का होना चाहिए।
  3. खर्च को स्पष्टीकरण के क्लॉज (a), (b), और (c) में enumerated विशिष्ट श्रेणियों के भीतर आना चाहिए, या क्लॉज (d) के तहत स्पष्ट रूप से निर्धारित होना चाहिए।

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने अपीलों को स्वीकार करते हुए कहा कि धारा 44C हेड ऑफिस खर्च पर लागू होती है, चाहे वह कॉमन हो या एक्सक्लूसिव।

हालांकि, यह देखते हुए कि निचले अधिकारियों ने तथ्यात्मक रूप से यह सत्यापित नहीं किया था कि दावा किए गए विशिष्ट खर्च तकनीकी रूप से हेड ऑफिस खर्च के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए “त्रिपक्षीय परीक्षण” को पूरा करते हैं या नहीं, कोर्ट ने मामलों को आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण (ITAT), मुंबई को वापस (remand) भेज दिया।

कोर्ट ने निर्देश दिया:

“परिणामस्वरूप, हम मामलों को सीमित उद्देश्य के लिए आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, मुंबई को रिमांड करते हैं ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि विवादित व्यय आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 44C के स्पष्टीकरण के तहत ‘हेड ऑफिस खर्च’ के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए आवश्यक त्रिपक्षीय परीक्षण को पूरा करते हैं या नहीं।”

केस विवरण:

  • केस टाइटल: डायरेक्टर ऑफ इनकम टैक्स (आईटी)-I, मुंबई बनाम मैसर्स अमेरिकन एक्सप्रेस बैंक लिमिटेड (संबद्ध मामले के साथ)
  • साइटेशन: 2025 INSC 1431
  • पीठ: जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन
  • अपील संख्या: सिविल अपील संख्या 8291/2015 और सिविल अपील संख्या 4451/2016

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles