सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान नगर निगम अधिकारियों द्वारा महामारी रोग अधिनियम, 1897 के तहत निजी क्लीनिकों को खुला रखने के लिए जारी किए गए नोटिस को सेवाओं का ‘अधिग्रहण’ (Requisition) माना जाएगा। शीर्ष अदालत ने बॉम्बे हाईकोर्ट के उस निष्कर्ष को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि ऐसे नोटिस केवल “प्रोत्साहन” थे। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ये कार्यकारी आदेश ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज’ (PMGKY) बीमा योजना के लिए पात्रता की शर्त को पूरा करते हैं।
जस्टिस पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने एक मृतक डॉक्टर के परिवार द्वारा दायर अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया। पीठ ने घोषित किया कि डॉक्टरों की सेवाओं का वास्तव में राज्य द्वारा अधिग्रहण किया गया था। हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि व्यक्तिगत दावेदारों को यह साबित करना होगा कि मृतक ने “कोविड-19 से संबंधित ड्यूटी” करते हुए अपनी जान गंवाई।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला नवी मुंबई के एक निजी चिकित्सक डॉ. बी.एस. सुरगाड़े की मृत्यु से जुड़ा है, जिनका 10 जून, 2020 को कोविड-19 के कारण निधन हो गया था। उनकी पत्नी (अपीलकर्ता संख्या 3) ने PMGKY के तहत 50 लाख रुपये के बीमा कवर का दावा किया था, जिसे केंद्र सरकार ने महामारी से लड़ने वाले स्वास्थ्य कर्मियों की सुरक्षा के लिए घोषित किया था।
संयुक्त निदेशक, स्वास्थ्य सेवा ने तीन आधारों पर दावे को खारिज कर दिया था:
- डॉ. सुरगाड़े एक निजी चिकित्सक थे।
- उनकी डिस्पेंसरी कोई निर्दिष्ट कोविड-19 सुविधा केंद्र नहीं थी।
- उनकी सेवाओं को राज्य द्वारा स्पष्ट रूप से “अधिग्रहित” (Requisitioned) नहीं किया गया था।
यह अस्वीकृति PMGKY योजना की व्याख्या पर आधारित थी, जिसमें “राज्यों/केंद्रीय अस्पतालों द्वारा अधिग्रहित” निजी अस्पताल के कर्मचारियों को कवर करने का प्रावधान था। इसके बाद बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट का कहना था कि नवी मुंबई नगर निगम (NMMC) द्वारा 31 मार्च, 2020 को जारी नोटिस, जिसमें डॉ. सुरगाड़े को अपनी डिस्पेंसरी खुली रखने का निर्देश दिया गया था, कोविड-19 कर्तव्यों के लिए “अधिग्रहण” नहीं था, बल्कि केवल नियमित चिकित्सा सेवाओं को बंद होने से रोकने का एक आदेश था।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ताओं ने तर्क दिया कि NMMC के 31 मार्च, 2020 के नोटिस द्वारा डॉ. सुरगाड़े को अपना क्लीनिक खुला रखने के लिए अनिवार्य किया गया था और ऐसा न करने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 188 के तहत आपराधिक मुकदमे की धमकी दी गई थी। उनका कहना था कि यह उनकी सेवाओं का अधिग्रहण करने के बराबर है।
दूसरी ओर, उत्तरदाताओं (सरकार) की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि NMMC नोटिस का उद्देश्य केवल “आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं की निरंतरता सुनिश्चित करना और नियमित चिकित्सा देखभाल में व्यवधान को रोकना” था। उन्होंने कहा कि कोविड-19 उपचार के लिए कोई विशिष्ट अधिग्रहण नहीं किया गया था।
सुप्रीम कोर्ट का विश्लेषण और अवलोकन
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए “संकीर्ण दृष्टिकोण” को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि “अधिग्रहण को उस समय की स्थिति के संदर्भ में देखा और आंका जाना चाहिए,” जो वैश्विक संकट और महामारी रोग अधिनियम, 1897 के लागू होने से उत्पन्न हुई थी।
महाराष्ट्र सरकार द्वारा 14 मार्च, 2020 को जारी कोविड-19 रोकथाम और नियंत्रण विनियमों का उल्लेख करते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि विनियमन 10 ने नगर आयुक्त को किसी भी व्यक्ति की सेवाओं को अधिग्रहित करने का अधिकार दिया था।
कोर्ट ने 31 मार्च, 2020 के NMMC नोटिस का विश्लेषण किया, जिसमें विशेष रूप से महामारी रोग अधिनियम का आह्वान किया गया था और अनुपालन न करने पर धारा 188 IPC के तहत FIR की चेतावनी दी गई थी। पीठ ने कहा:
“मार्च 2020 में मौजूद विकट स्थिति और महामारी रोग अधिनियम, 1897 व विनियम 2020 के लागू होने को ध्यान में रखते हुए, इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता कि सरकारों और उनके तंत्र ने तेजी से फैलते संक्रमण को रोकने के लिए डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य पेशेवरों की सेवाओं को अधिग्रहित किया था।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“उस स्थिति की कल्पना करना कठिन नहीं है, जिसमें व्यक्तिगत नियुक्ति पत्र या अधिग्रहण आदेश जारी करना संभव नहीं होता, और यही कारण था कि तत्काल उपायों को लागू करने के लिए महामारी रोग अधिनियम का सहारा लिया गया।”
उत्तरदाताओं की दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा:
“हम इस सरलीकृत दलील को स्वीकार करने के इच्छुक नहीं हैं कि कोई विशिष्ट अधिग्रहण नहीं था और इसलिए केवल इस आधार पर बीमा का दावा विफल हो जाना चाहिए।”
फैसले में कहा गया कि PMGKY पैकेज के तहत बीमा कवर उन सभी लोगों के लिए बढ़ाया गया था जिन्हें कानून और कार्यकारी कार्यों द्वारा मजबूर परिस्थितियों में अधिग्रहित किया गया था।
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में आंशिक संशोधन करते हुए अपील का निपटारा किया। कोर्ट ने निम्नलिखित घोषणाएं कीं:
- अधिग्रहण स्थापित: कोर्ट ने घोषित किया कि “डॉक्टरों की सेवाओं का अधिग्रहण किया गया है, और यह अधिनियम के प्रावधानों, महाराष्ट्र कोविड-19 विनियम 2020, NMMC के 31.03.2020 के आदेश, PMGKY पैकेज योजना और जारी किए गए FAQs के संयुक्त अध्ययन से स्पष्ट है।”
- साबित करने का दायित्व (Onus of Proof): जबकि सामान्य अधिग्रहण स्थापित हो गया है, कोर्ट ने फैसला सुनाया कि “बीमा के लिए व्यक्तिगत दावों पर कानून के अनुसार और सबूतों के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।” दावेदार पर यह साबित करने की जिम्मेदारी बनी रहेगी कि मृतक ने “कोविड-19 से संबंधित ड्यूटी करते हुए अपनी जान गंवाई।”
सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित एजेंसियों को निर्देश दिया कि वे दावों को केवल गैर-अधिग्रहण के आधार पर खारिज न करें, बल्कि विश्वसनीय सबूतों के आधार पर निर्णय लें।
केस डिटेल्स:
- केस टाइटल: प्रदीप अरोड़ा और अन्य बनाम निदेशक, स्वास्थ्य विभाग, महाराष्ट्र सरकार और अन्य
- केस नंबर: सिविल अपील संख्या ____ / 2025 (SLP (C) संख्या 16860 / 2021 से उत्पन्न)
- साइटेशन: 2025 INSC 1420
- पीठ: जस्टिस पामिदिघंटम श्री नरसिम्हा और जस्टिस आर. महादेवन

