सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि नोएडा में भूमि अधिग्रहण के मामले में किसानों को तय सीमा से अधिक मुआवजा देने के आरोपों की जांच कर रही स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) अब पिछले 10 से 15 वर्षों के दौरान नोएडा प्राधिकरण में तैनात रहे मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (CEO) और शीर्ष पदों पर रहे अधिकारियों की भूमिका की भी जांच करेगी।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने SIT को जांच पूरी करने के लिए दो माह का अतिरिक्त समय दिया। पीठ ने SIT द्वारा दाखिल स्थिति रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया, जिसमें जांच पूरी करने के लिए तीन माह का समय मांगा गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि जिन किसानों को अधिक भुगतान मिला है, उनके खिलाफ कोई दंडात्मक या जबरन कार्रवाई नहीं की जाएगी।
सीनियर अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने एक किसान की ओर से कहा कि SIT बयान दर्ज कराने के लिए नोटिस भेज रही है, जबकि इसमें किसानों का कोई दोष नहीं है। इस पर पीठ ने कहा कि पहले भी स्पष्ट किया गया है कि जांच का उद्देश्य किसानों को परेशान करना नहीं, बल्कि उन अधिकारियों की साठगांठ और मिलीभगत सामने लाना है, जिनके कारण तय सीमा से अधिक भुगतान किया गया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने नोएडा की ओर से पेश होकर कहा कि प्राधिकरण की स्थिति स्पष्ट करने के लिए वह एक हलफनामा दाखिल करना चाहते हैं।
13 अगस्त को शीर्ष अदालत ने नोएडा अधिकारियों और बिल्डरों की कथित मिलीभगत से किसानों को तय सीमा से अधिक मुआवजा देने के आरोपों पर SIT जांच के आदेश दिए थे। कोर्ट ने पहले SIT की रिपोर्ट में किए गए निष्कर्षों को स्वीकार किया था और उनकी सिफारिशों को उत्तर प्रदेश सरकार के समक्ष रखने को कहा था, जिसमें नोएडा को “मेट्रोपॉलिटन काउंसिल” बनाने पर भी विचार शामिल था।
इसके बाद कोर्ट ने एक नई SIT गठित कर तीन वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को बैंक खातों, संपत्तियों और लाभार्थियों की वित्तीय जानकारी की जांच करने का निर्देश दिया था, जिसमें फोरेंसिक ऑडिटर्स और आर्थिक अपराध विशेषज्ञों की मदद लेने को भी कहा गया था।
23 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने SIT के लिए चार प्रमुख प्रश्न तय किए:
- क्या किसानों को अदालत के आदेशों के अनुरूप निर्धारित सीमा से अधिक मुआवजा दिया गया?
- यदि हां, तो इसके लिए कौन से अधिकारी जिम्मेदार थे?
- क्या मुआवजा प्राप्तकर्ताओं और अधिकारियों के बीच मिलीभगत या साठगांठ थी?
- क्या नोएडा प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पारदर्शिता और सार्वजनिक हित के मानकों पर खरी उतरती है?
कोर्ट ने कहा था कि यदि प्रारंभिक जांच में संज्ञेय अपराध सामने आता है, तो SIT एफआईआर दर्ज कर आगे की कार्रवाई करे।
शीर्ष अदालत ने शासन और जांच में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कई निर्देश दिए:
- नोएडा में मुख्य सतर्कता अधिकारी की नियुक्ति (IPS या CAG से प्रतिनियुक्त)।
- नोएडा में सिटीजन एडवाइजरी बोर्ड का गठन।
- बिना पर्यावरण प्रभाव आकलन और सुप्रीम कोर्ट की ग्रीन बेंच से मंजूरी के कोई परियोजना लागू न की जाए।
- भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम के तहत अभियोजन स्वीकृति की आवश्यकता होने पर दो सप्ताह में निर्णय किया जाए।
यह अदालत द्वारा नियुक्त SIT तब गठित की गई थी जब कोर्ट राज्य सरकार की जांच समिति की प्रगति से संतुष्ट नहीं था। यह मुद्दा उस समय उठा था जब नोएडा प्राधिकरण के विधि सलाहकार और एक कानून अधिकारी ने अग्रिम जमानत याचिका दायर की थी, जिन पर कथित रूप से अपात्र लाभार्थियों को भारी मुआवजा दिलाने में भूमिका निभाने के आरोप हैं।
SIT अब विस्तृत दायरे में जांच करेगी और पिछले एक दशक से अधिक समय के शीर्ष अधिकारियों की भूमिका भी परखेगी।

