दिल्ली हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि कोई किराएदार मकान मालिक की लिखित सहमति के बिना किराए के परिसर का उपयोग बदल देता है और वहां ज्वलनशील पदार्थ जमा करता है, तो यह कानूनन ‘दुरुपयोग’ माना जाएगा। कोर्ट ने बिजली के सामान की दुकान को पेंट और रसायनों के गोदाम में बदलने वाले एक किराएदार की बेदखली (eviction) के आदेश को बरकरार रखा है।
न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया की पीठ ने कहा कि किराएदार द्वारा बिना सहमति और बिना म्युनिसिपल लाइसेंस के खतरनाक सामान का भंडारण करना ‘सार्वजनिक न्यूसेंस’ (Public Nuisance) की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि इस मामले में बेदखली की कार्यवाही एक दशक से अधिक समय से रुकी हुई थी, इसलिए निष्पादन न्यायालय (Execution Court) को आदेश दिया गया है कि वह दुकान खाली कराने की प्रक्रिया में तेजी लाए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद नई दिल्ली के मादीपुर गांव स्थित संपत्ति संख्या डब्ल्यूजेड-297सी की दुकान नंबर 6 से जुड़ा है। मकान मालिक राम नारायण ने दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 14(1)(c) के तहत किराएदार मुन्ना उर्फ मनोज कुमार के खिलाफ बेदखली याचिका दायर की थी।
मकान मालिक का आरोप था कि दुकान मूल रूप से बिजली के सामान (electrical goods) के व्यवसाय के लिए किराए पर दी गई थी। हालांकि, बाद में किराएदार ने परिसर का उपयोग बदल दिया और वहां पेंट, थिनर, तारपीन और रसायन जैसी ज्वलनशील सामग्री जमा करना शुरू कर दिया। मकान मालिक ने तर्क दिया कि एमसीडी से कोई लाइसेंस लिए बिना इस तरह के खतरनाक सामान का भंडारण इमारत के अन्य किराएदारों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए खतरा है।
किराएदार को 11 अप्रैल 2007 को दुरुपयोग रोकने के लिए नोटिस दिया गया था, लेकिन उसने इसका पालन नहीं किया। इसके बाद, अतिरिक्त किराया नियंत्रक ने 20 दिसंबर 2012 को बेदखली का आदेश दिया। किराएदार ने इसके खिलाफ अपील की, जिसे 12 जनवरी 2015 को ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया। अंततः, किराएदार ने राहत के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षों की दलीलें
याचिकाकर्ता (किराएदार) का पक्ष: किराएदार के वकील ने तर्क दिया कि निचली अदालत का आदेश कानूनन गलत है। उनकी मुख्य दलीलें थीं:
- रिकॉर्ड पर ऐसा कोई सबूत नहीं है जो यह साबित करे कि दुकान में रखा सामान ज्वलनशील या खतरनाक था।
- मकान मालिक ने 16 अगस्त 1999 का एक पुराना नोटिस छिपाया, जिसमें उल्लेख था कि परिसर हार्डवेयर और पेंट के काम के लिए दिया गया था। इससे साबित होता है कि उपयोग में कोई बदलाव नहीं हुआ।
- पेंट के भंडारण के लिए म्युनिसिपल लाइसेंस की आवश्यकता केवल तब होती है जब मात्रा एक निर्धारित सीमा से अधिक हो।
- धारा 14(5) के तहत अनिवार्य वैधानिक नोटिस सीधे किराएदार को नहीं, बल्कि उसके भाई को दिया गया था, जो मान्य नहीं है।
प्रतिवादी (मकान मालिक) का पक्ष: मकान मालिक के वकील ने निचली अदालतों के फैसलों का समर्थन करते हुए कहा:
- संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र सीमित है और वह सबूतों का पुनर्मूल्यांकन (reappreciation) नहीं कर सकता।
- 1999 का नोटिस किराए के भुगतान न करने के संबंध में था और इसका वर्तमान मामले (दुरुपयोग) से कोई लेना-देना नहीं है।
- किराएदार को दुरुपयोग रोकने के लिए दिया गया नोटिस कानून के अनुसार सही ढंग से तामील कराया गया था और ट्रायल कोर्ट में साबित भी हो चुका है।
कोर्ट का विश्लेषण और निष्कर्ष
अधिकार क्षेत्र की सीमा: न्यायमूर्ति कठपालिया ने कहा कि अनुच्छेद 227 के तहत हाईकोर्ट केवल तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब निचली अदालत के आदेश में कोई घोर अवैधता या विकृति (perversity) हो। कोर्ट सबूतों की फिर से जांच नहीं करेगा।
परिसर का दुरुपयोग और न्यूसेंस: हाईकोर्ट ने पाया कि पक्षों के बीच पहले चले एक दीवानी मुकदमे (Civil Suit) में 2013 में फैसला आ चुका था, जिसमें किराएदार को खतरनाक वस्तुएं जमा करने से रोका गया था। कोर्ट ने कहा कि चूंकि उस फैसले को चुनौती नहीं दी गई, इसलिए यह स्थापित हो चुका है कि किराएदार ने बिना सहमति के परिसर का उपयोग बदला था।
कोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद तस्वीरों का हवाला देते हुए कहा कि किराएदार ने दुकान के बाहर ड्रम और सैनिटरी हार्डवेयर का सामान जमा कर रखा था, जिससे अन्य दुकानदारों को परेशानी हो रही थी। इसके अलावा, बिना लाइसेंस सामान रखने के लिए किराएदार का चालान भी काटा गया था।
नोटिस की तामील पर फैसला: किराएदार की इस दलील को कोर्ट ने खारिज कर दिया कि नोटिस उसके भाई को मिला था, उसे नहीं। कोर्ट ने कहा:
“उक्त नोटिस किराएदार के भाई द्वारा प्राप्त किया गया था… ऐसा किसी का कहना नहीं है कि किराएदार के अपने भाई के साथ संबंध सौहार्दपूर्ण नहीं थे या किसी अन्य कारण से उसने वह नोटिस नहीं देखा।”
फैसला
हाईकोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किराया नियंत्रक और ट्रिब्यूनल के आदेशों में कोई त्रुटि नहीं है। कोर्ट ने माना कि किराएदार यह साबित करने में विफल रहा कि उसने बिजली की दुकान को पेंट की दुकान में बदलने के लिए मकान मालिक से लिखित सहमति ली थी।
याचिका को “आधारहीन” और “तुच्छ” बताते हुए खारिज कर दिया गया। जस्टिस कठपालिया ने आदेश दिया कि चूंकि पूर्व पीठ के 2015 के आदेश के कारण निष्पादन कार्यवाही (execution proceedings) एक दशक से रुकी हुई थी, इसलिए संबंधित कोर्ट को अब बेदखली आदेश का पालन तेजी से सुनिश्चित करना चाहिए।
केस डिटेल्स
- केस टाइटल: मुन्ना उर्फ मनोज कुमार बनाम राम नारायण
- केस नंबर: CM(M) 76/2015
- कोरम: न्यायमूर्ति गिरीश कठपालिया

