सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिवादी की अनुपस्थिति पर एमिकस क्यूरी नियुक्त किया; न्याय सुनिश्चित करने के लिए दिए अहम निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने एक आपराधिक अपील से जुड़ी विशेष अनुमति याचिका (SLP) में प्रतिवादी के उपस्थित न होने पर कड़ा संज्ञान लेते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। नोटिस तामील होने के बावजूद प्रतिवादी के कोर्ट में पेश न होने पर, शीर्ष अदालत ने न्यायहित में एक एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) की नियुक्ति की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि प्रतिवादी को उचित कानूनी प्रतिनिधित्व मिल सके।

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति नोंगमीकापम कोटेश्वर सिंह की पीठ ने भारत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में 5 दिसंबर, 2025 को यह आदेश पारित किया।

मामले की पृष्ठभूमि और प्रक्रियात्मक स्थिति

यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा क्रिमिनल अपील संख्या 683/2024 में दिए गए 8 अक्टूबर, 2025 के अंतिम निर्णय और आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। इसके साथ एक अन्य याचिका (SLP(Crl) No. 17767/2025) भी संलग्न थी।

सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने 4 दिसंबर, 2025 की ऑफिस रिपोर्ट का अवलोकन किया। रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिवादी संख्या 2 (सुभाष) को नोटिस की तामील (service of notice) पूरी हो चुकी थी, लेकिन उनकी ओर से कोई भी वकील कोर्ट में पेश नहीं हुआ।

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कोर्ट के निर्देश और एमिकस क्यूरी की नियुक्ति

प्रतिवादी का कोई प्रतिनिधित्व न होने की स्थिति को देखते हुए, पीठ ने हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, “न्याय के हित में, हम सुश्री ज्योति… विद्वान वकील, जो कोर्ट में उपस्थित हैं, को कोर्ट की सहायता के लिए एमिकस क्यूरी (प्रो बोनो) के रूप में अनुरोध और नियुक्त करते हैं।”

कोर्ट ने एमिकस क्यूरी और रजिस्ट्री को प्रतिवादी के अधिकारों की रक्षा के लिए निम्नलिखित विस्तृत निर्देश दिए:

  1. दस्तावेजों की आपूर्ति: रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि वह तीन कार्य दिवसों के भीतर एमिकस क्यूरी को डिजिटल प्रारूप में पूर्ण ‘पेपर बुक’ उपलब्ध कराए।
  2. प्रतिवादी से सीधा संपर्क: कोर्ट ने निर्देश दिया कि “विद्वान एमिकस क्यूरी लिखित रूप में सीधे प्रतिवादी से संपर्क करने का प्रयास करेंगी और उन्हें वर्तमान याचिका के लंबित होने, इस आदेश के पारित होने, अपनी पसंद का वकील नियुक्त करने के उनके अधिकार, और यदि पात्र हों तो विधिक सहायता (legal aid) वकील के माध्यम से प्रतिनिधित्व प्राप्त करने के उनके अधिकार के बारे में सूचित करेंगी।”
  3. विधिक सेवा प्राधिकरण की भूमिका: प्रतिवादी के हितों को सुनिश्चित करने के लिए, पीठ ने एमिकस क्यूरी को संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (District Legal Services Authority) के अध्यक्ष से संपर्क करने का भी निर्देश दिया, जो प्रतिवादी को उनके अधिकारों से अवगत कराएंगे।
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सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में प्रतिवादी अपना निजी वकील भी नियुक्त कर लेते हैं, तब भी सुश्री ज्योति कोर्ट की सहायता करना जारी रखेंगी।

निष्कर्ष और अगली सुनवाई

कोर्ट ने रजिस्ट्री को इस आदेश की सूचना सभी संबंधित पक्षों को तत्काल भेजने और वाद सूची (cause list) में एमिकस क्यूरी का नाम शामिल करने का निर्देश दिया है।

दलीलों के संबंध में, कोर्ट ने नोट किया कि जवाबी हलफनामा (counter affidavit) दाखिल किया जा चुका है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि यदि कोई प्रत्युत्तर हलफनामा (rejoinder affidavit) दाखिल करना है, तो उसे अगली सुनवाई से पहले दाखिल किया जाए। कोर्ट ने कड़ी चेतावनी देते हुए कहा, “हम स्पष्ट करते हैं कि इस उद्देश्य के लिए कोई और अवसर नहीं दिया जाएगा।”

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मामले की अगली सुनवाई 30 जनवरी, 2026 को निर्धारित की गई है।

केस विवरण:

  • केस शीर्षक: भारत बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य
  • केस नंबर: Petition(s) for Special Leave to Appeal (Crl.) No(s). 17254/2025 (संलग्न SLP(Crl) No. 17767/2025 के साथ)
  • कोरम: न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति नोंगमीकापम कोटेश्वर सिंह

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