सुप्रीम कोर्ट ने 3 करोड़ के गबन मामले में हाईकोर्ट द्वारा दी गई अग्रिम जमानत रद्द की, जांच रिपोर्ट की अनदेखी पर जताई नाराजगी

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसके तहत 3 करोड़ रुपये से अधिक के गबन के आरोपी को अग्रिम जमानत दी गई थी। जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट का निर्णय “आवश्यक तथ्यों पर विचार न करने” (non-consideration of essential facts) से दूषित है। शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी की उस रिपोर्ट को नजरअंदाज किया जिसमें हिरासत में पूछताछ (custodial interrogation) की आवश्यकता बताई गई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता सलिल महाजन की अपील को स्वीकार करते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के 2 अप्रैल 2025 के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 316(4), 344 और 61(2) के तहत दर्ज एफआईआर में आरोपी अविनाश कुमार को गिरफ्तारी से पहले जमानत (anticipatory bail) दे दी थी। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि हाईकोर्ट ने राहत देने में एक “यांत्रिक रास्ता” (mechanical route) अपनाया है और आरोपी को दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने का निर्देश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

यह विवाद 25 नवंबर 2024 को दर्ज एक एफआईआर से उत्पन्न हुआ, जो अमनदीप हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड के चार्टर्ड अकाउंटेंट द्वारा दर्ज कराई गई थी। आरोपी अविनाश कुमार अमनदीप अस्पताल में सीनियर अकाउंटेंट के पद पर कार्यरत था। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि आंतरिक जांच के दौरान यह पाया गया कि आरोपी ने अस्पताल की विभिन्न इकाइयों के खातों से 3,00,00,000 रुपये (तीन करोड़ रुपये) से अधिक का गबन किया और उन्हें अपने तथा अपने परिवार के सदस्यों के खातों में ट्रांसफर कर दिया।

आरोपी ने पहले सेशंस कोर्ट से अग्रिम जमानत मांगी थी, जिसे 21 फरवरी 2025 को खारिज कर दिया गया था। इसके बाद, उसने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसने उसे जमानत दे दी। इस मामले में 22 मई 2025 को चार्जशीट भी दाखिल की जा चुकी है।

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पक्षों की दलीलें

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष, अपीलकर्ता (शिकायतकर्ता) के वकील ने तर्क दिया कि हाईकोर्ट का आदेश “बिना सोच-विचार” (non-application of mind) के पारित किया गया है और इसमें हिरासत में पूछताछ की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर विचार नहीं किया गया। राज्य सरकार ने भी इस रुख का समर्थन किया और कहा कि मामले के तथ्यों को देखते हुए कस्टोडियल इंटेरोगेशन आवश्यक है।

इसके विपरीत, आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि चूंकि जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, इसलिए अब हिरासत में पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं है।

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां

सुप्रीम कोर्ट ने जमानत के खिलाफ अपील को नियंत्रित करने वाले कानूनी सिद्धांतों का उल्लेख करते हुए अपने हालिया फैसले अशोक धनकड़ बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2025 SCC Online SC 1690) का हवाला दिया। कोर्ट ने दोहराया कि “जमानत देने वाले आदेश में प्रासंगिक कारकों के मूल्यांकन और सोच-विचार की झलक मिलनी चाहिए” और यदि प्रासंगिक कारकों पर विचार नहीं किया गया है, तो उच्च न्यायालय उसमें हस्तक्षेप कर सकता है।

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पीठ ने विपन कुमार धीर बनाम पंजाब राज्य के फैसले पर भी भरोसा जताया और कहा कि यदि कोर्ट ने रिकॉर्ड पर उपलब्ध प्रासंगिक सामग्री की अनदेखी की है, तो जमानत रद्द की जा सकती है।

हाईकोर्ट के आदेश की जांच करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि “इस स्तर पर हिरासत में पूछताछ या प्री-ट्रायल जेल की कोई आवश्यकता नहीं है” और आरोपी ने गबन की आधी राशि वापस कर दी है। हालांकि, शीर्ष अदालत ने पाया कि यह तर्क जांच की स्टेटस रिपोर्ट की पूरी तरह से अवहेलना करता है।

स्टेटस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था:

“मौजूदा याचिकाकर्ता अविनाश कुमार ने अमनदीप अस्पताल के खातों से 2.7 करोड़ रुपये से अधिक का गबन किया है और वह फरार है। मामले की निष्पक्ष और उचित जांच के लिए, गबन की गई राशि की वसूली और अपराध में शामिल अन्य व्यक्तियों की पहचान करने के लिए याचिकाकर्ता से हिरासत में पूछताछ अत्यंत आवश्यक है।”

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि हाईकोर्ट ने इस रिपोर्ट को रिकॉर्ड पर लिया, लेकिन अपने तर्क में इसका कोई संदर्भ नहीं दिया और यह समझाने में विफल रहा कि आरोपी के “फरार” होने के आरोप को क्यों नजरअंदाज किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने अग्रिम जमानत की असाधारण राहत देने में “यांत्रिक रास्ता” अपनाया है।

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निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि आवश्यक तथ्यों, विशेष रूप से जांच एजेंसी की रिपोर्ट पर विचार न करने के कारण हाईकोर्ट का फैसला रद्द किए जाने योग्य है।

कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश दिए:

  1. अपील स्वीकार की जाती है और पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का 2 अप्रैल 2025 का आदेश रद्द किया जाता है।
  2. आरोपी को इस फैसले की तारीख से दो सप्ताह के भीतर ट्रायल कोर्ट के समक्ष सरेंडर करने का निर्देश दिया जाता है।
  3. आरोपी नियमित जमानत (regular bail) के लिए आवेदन करने के लिए स्वतंत्र है, जिस पर इस आदेश की टिप्पणियों से प्रभावित हुए बिना उसके गुणों (merits) के आधार पर विचार किया जाएगा।

केस की जानकारी

  • केस टाइटल: सलिल महाजन बनाम अविनाश कुमार और अन्य
  • केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 5313/2025 (SLP (Crl.) No. 7275/2025 से उत्पन्न)
  • कोरम: जस्टिस संजय करोल और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा

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