बॉम्बे हाईकोर्ट (नागपुर बेंच) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति यौन मंशा (Sexual Intent) के साथ किसी नाबालिग का हाथ पकड़ता है और उसे यौन संबंधों के लिए पैसे देने की पेशकश करता है, तो यह कृत्य यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम के तहत ‘यौन हमले’ की श्रेणी में आएगा।
न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता की पीठ ने यवतमाल की एक विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई सजा को बरकरार रखते हुए आरोपी की अपील खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि 13 वर्षीय पीड़िता का हाथ पकड़ना और उसे “गेम करने” (यौन कृत्य) के लिए पैसे ऑफर करना स्पष्ट रूप से आरोपी के गलत इरादों को दर्शाता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला अक्टूबर 2015 का है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, 23 अक्टूबर 2015 को जब पीड़िता के माता-पिता काम पर गए थे, तब आरोपी शेख रफीक शेख गुलाब पानी मांगने के बहाने उसके घर में घुस आया। उसने पीड़िता को 50 रुपये देने की बात कही यदि वह उसे यौन संबंध बनाने दे। पीड़िता ने चुप्पी साध ली।
अगले दिन, 24 अक्टूबर को आरोपी ने फिर वही हरकत दोहराई। इस बार उसने पीड़िता का दाहिना हाथ पकड़ लिया और वही प्रस्ताव रखा। पीड़िता ने अपना हाथ छुड़ाया और अपने मामा को घटना की जानकारी दी, जिसके बाद पुलिस में एफआईआर (FIR) दर्ज कराई गई।
निचली अदालत ने पॉक्सो एक्ट की धारा 42 का हवाला देते हुए आरोपी को धारा 8 के तहत दोषी ठहराया था और तीन साल के सश्रम कारावास की सजा सुनाई थी।
पक्षकारों की दलीलें
बचाव पक्ष का तर्क अपीलकर्ता की ओर से नियुक्त वकील श्याम आर. जायसवाल ने तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा है कि आरोपी ने “यौन मंशा” से हाथ पकड़ा था। उन्होंने कहा कि घटना एक घनी आबादी वाली झुग्गी बस्ती में हुई थी, जहां ऐसी हरकत का किसी के द्वारा न देखा जाना असंभव है। बचाव पक्ष ने एफआईआर दर्ज करने में देरी और घटनाओं के समय में विरोधाभास का भी हवाला दिया। बचाव में मनोज सूर्यकांत दलवी बनाम महाराष्ट्र राज्य और संतोष बनाम महाराष्ट्र राज्य जैसे फैसलों का संदर्भ दिया गया।
राज्य सरकार का पक्ष अतिरिक्त लोक अभियोजक अमित छुटके ने दलील दी कि सबूतों से आरोपी की यौन मंशा स्पष्ट रूप से साबित होती है। उन्होंने कहा कि पीड़िता के बयान में मामूली विसंगतियां तुच्छ हैं और वे मामले के मुख्य तथ्यों को प्रभावित नहीं करतीं।
कोर्ट का विश्लेषण और निर्णय
पीड़िता की गवाही सर्वोपरि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में दोहराया कि पॉक्सो मामलों में बाल पीड़िता की गवाही “अत्यधिक महत्वपूर्ण” होती है। सबूतों का मूल्यांकन करने के बाद, न्यायमूर्ति मेहता ने कहा:
“पीड़िता का वर्णन स्वाभाविक और बनावटीपन से मुक्त है… जिरह (Cross-examination) में भी उसकी गवाही अडिग रही।”
यौन हमला और मंशा आरोपी के इस तर्क को खारिज करते हुए कि हाथ पकड़ना यौन हमला नहीं है, कोर्ट ने कहा कि शारीरिक स्पर्श के साथ पैसे का प्रस्ताव देना यौन मंशा को पुख्ता करता है। फैसले में कहा गया:
“नाबालिग बच्चे का हाथ पकड़ना, साथ में पैसे की पेशकश करना और यौन गतिविधियों के लिए आमंत्रित करना, स्पष्ट रूप से यौन मंशा को दर्शाता है। यह पॉक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत अपराध के सभी तत्वों को पूरा करता है।”
सजा में राहत से इनकार कोर्ट ने श्री नरशिव उसपकर बनाम गोवा राज्य के फैसले का हवाला देते हुए आरोपी को ‘प्रोबेशन ऑफ ऑफेंडर्स एक्ट’ का लाभ देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने टिप्पणी की:
“भले ही अपीलकर्ता का कोई पिछला आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है, लेकिन अपराध की गंभीरता, जिसमें एक नाबालिग पर यौन हमला शामिल है, यह मांग करती है कि आरोपी और समाज के हितों के बीच संतुलन बनाया जाए।”
निष्कर्ष बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरोपी की तीन साल के सश्रम कारावास की सजा को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया। कोर्ट ने माना कि निचली अदालत द्वारा दी गई सजा पॉक्सो एक्ट की धारा 8 के तहत निर्धारित वैधानिक न्यूनतम सजा के अनुरूप है।
केस टाइटल: शेख रफीक शेख गुलाब बनाम महाराष्ट्र राज्य
केस नंबर: क्रिमिनल अपील नंबर 772/2019
कोरम: न्यायमूर्ति निवेदिता पी. मेहता

