इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जमानत मामलों में आवश्यक जानकारी अदालत को उपलब्ध कराने में पुलिस अधिकारियों की लापरवाही के कारण किसी आरोपी की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। अदालत ने उत्तर प्रदेश पुलिस महानिदेशक को ऐसे मामलों पर सख्ती से कार्रवाई करने का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति अरुण कुमार सिंह देशवाल ने यह टिप्पणी अपहरण के एक मामले में आरोपी विनोद राम की जमानत याचिका मंजूर करते हुए की। अदालत ने पाया कि संबंधित पुलिस अधिकारी की देरी के कारण आरोपी को एक महीने से अधिक समय तक अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ा।
याचिका पर सुनवाई के दौरान 17 नवंबर को अदालत को अवगत कराया गया था कि लिखित पत्राचार के बावजूद बलिया के पुलिस अधीक्षक से कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई। इस पर कोर्ट ने गंभीर रुख अपनाते हुए इस चूक को “न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप” और “अदालत की अवमानना” करार दिया था तथा SP को व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया था।
इसके अनुपालन में, बलिया के पुलिस अधीक्षक ओमवीर सिंह ने व्यक्तिगत हलफनामा दायर कर बताया कि संबंधित उपनिरीक्षक के खिलाफ प्रारंभिक जांच शुरू कर दी गई है और जांच लंबित रहने तक उसे निलंबित किया गया है।
न्यायमूर्ति देशवाल ने कहा कि इस लापरवाही की वजह से आवेदक की स्वतंत्रता प्रभावित हुई और उसे अनावश्यक रूप से जेल में रहना पड़ा।
हाइकोर्ट ने यूपी DGP को निर्देश दिया कि सभी जिला पुलिस प्रमुखों को परिपत्र जारी किया जाए कि जमानत वादों में जानकारी उपलब्ध कराने में कोई भी लापरवाही पाए जाने पर उसे सख्ती से निपटाया जाए, क्योंकि यह जमानत आवेदक की स्वतंत्रता के हनन के बराबर है।
जमानत मंजूर
जमानत देते हुए अदालत ने दर्ज किया कि—
- आरोपपत्र दाखिल हो चुका है,
- अभियुक्त का नाम सह-अभियुक्त के बयान के आधार पर सामने आया है,
- उसे अपहृत व्यक्ति के साथ “लास्ट सीन” होने का कोई साक्ष्य नहीं है, और
- उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है।
इन परिस्थितियों को देखते हुए अदालत ने विनोद राम को जमानत प्रदान कर दी।

