दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में पटियाला हाउस स्थित फैमिली कोर्ट द्वारा पारित तलाक की डिक्री को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट द्वारा वैवाहिक विवाद का निपटारा करने के तरीके पर “कड़ी नाराजगी” व्यक्त की है।
जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और जस्टिस हरीश वैद्यनाथन शंकर की खंडपीठ ने पाया कि फैमिली कोर्ट के जज ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (SMA) के प्रावधानों को आपस में मिला दिया (conflate) और एक ऐसे वैधानिक प्रावधान का सहारा लिया जो कानून की किताबों में मौजूद ही नहीं है।
नतीजतन, हाईकोर्ट ने संबंधित न्यायिक अधिकारी, श्री हरीश कुमार को निर्देश दिया है कि वे भविष्य में किसी भी वैवाहिक मामले की सुनवाई करने से पहले दिल्ली ज्यूडिशियल एकेडमी की देखरेख में वैवाहिक कानूनों (Matrimonial Laws) पर एक “उपयुक्त और व्यापक रिफ्रेशर ट्रेनिंग प्रोग्राम” पूरा करें।
यह अपील फैमिली कोर्ट्स एक्ट, 1984 की धारा 19 और HMA की धारा 28 के तहत दायर की गई थी, जिसमें फैमिली कोर्ट के 28 मार्च 2024 के फैसले को चुनौती दी गई थी। फैमिली कोर्ट ने क्रूरता (Cruelty) के आधार पर शादी को भंग कर दिया था। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस फैसले को कानूनन अस्थिर पाया क्योंकि इसमें विशेष विवाह अधिनियम की “धारा 28A” का हवाला दिया गया था—जो कि एक अस्तित्वहीन प्रावधान है—और पार्टियों को गवाही देने का उचित अवसर दिए बिना ही उनका साक्ष्य का अधिकार (right to lead evidence) बंद कर दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
अपीलकर्ता (पति) और प्रतिवादी (पत्नी) के बीच विवाह संपन्न होने पर कोई विवाद नहीं था, लेकिन विवाह के स्वरूप और तारीख को लेकर मतभेद थे। पति का दावा था कि विवाह 26 सितंबर 2011 को विशेष विवाह अधिनियम (SMA) के तहत संपन्न हुआ था, जिसके बाद एक सामाजिक समारोह हुआ। वहीं, पत्नी का कहना था कि विवाह 11 दिसंबर 2011 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था।
वैवाहिक कलह के कारण दोनों पक्षों के बीच क्रूरता के आरोपों और नाबालिग बच्चे की कस्टडी को लेकर कई कानूनी मुकदमे चले। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, तलाक की याचिका—जो मूल रूप से पत्नी द्वारा सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल में HMA की धारा 13(1)(ia) के तहत दायर की गई थी—को दिल्ली की पटियाला हाउस फैमिली कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया।
फैमिली कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, 18 जनवरी 2024 को पत्नी के गवाही (evidence) का अधिकार बंद कर दिया गया, जबकि वह जिरह (cross-examination) के लिए निर्धारित पहली तारीख थी और वह अनुपस्थित थी। इसके बाद, पति के गवाही के अधिकार को भी बंद कर दिया गया। बिना किसी मौखिक साक्ष्य (oral evidence) को रिकॉर्ड किए, फैमिली कोर्ट ने तलाक का फैसला सुना दिया।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता (पति) की दलीलें: अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि चुनौती दिया गया फैसला विचारणीय नहीं है क्योंकि मूल याचिका HMA के तहत दायर की गई थी, जो इस मामले में लागू नहीं होती क्योंकि विवाह SMA की धारा 13(2) के तहत पंजीकृत था। उन्होंने कहा कि HMA के प्रावधानों के तहत न्यायनिर्णयन (adjudication) दूषित है।
इसके अलावा, अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट ने शादी के “अपरिवर्तनीय रूप से टूटने” (irretrievable breakdown) के आधार पर विवाह को भंग करने के लिए “प्रस्तावित संशोधन जो कभी अधिसूचित नहीं हुआ” का सहारा लिया। विशेष रूप से, वकील ने बताया कि फैमिली कोर्ट ने अपने निष्कर्ष के समर्थन में SMA की “धारा 28A” का उल्लेख किया, जो कानून में मौजूद ही नहीं है।
प्रतिवादी (पत्नी) की दलीलें: इसके विपरीत, प्रतिवादी की वकील ने तर्क दिया कि फैमिली कोर्ट के जज ने केवल “व्यावहारिक वास्तविकता” को ध्यान में रखा कि पार्टियों का वैवाहिक संबंध प्रभावी रूप से समाप्त हो चुका है। उन्होंने दलील दी कि जज ने विवाह भंग करने के अपने अधिकार क्षेत्र का सही प्रयोग किया है और वैवाहिक कानूनों को “प्रक्रियात्मक लालफीताशाही” (procedural red-tapism) में नहीं उलझाना चाहिए।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
रिकॉर्ड का अवलोकन करने के बाद, हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के दृष्टिकोण पर गंभीर चिंता व्यक्त की। बेंच ने कहा कि जज ने “विशिष्ट और स्वतंत्र कानूनों के प्रावधानों को उनके उद्देश्यों और प्रक्रियाओं को दरकिनार करते हुए आपस में मिला दिया है।”
अस्तित्वहीन कानून का सहारा: हाईकोर्ट ने पाया कि यद्यपि याचिका HMA के तहत दायर की गई थी, फैमिली कोर्ट ने SMA के प्रावधानों, विशेष रूप से “तथाकथित धारा 28A” को लागू किया। बेंच ने टिप्पणी की:
“हम यह देखकर हैरान रह गए कि विद्वान जज ने आक्षेपित निर्णय में SMA की धारा 28A का सहारा लिया, जो क़ानून की किताब में मौजूद ही नहीं है… यह समझ से परे है कि फैमिली कोर्ट जज के पद का एक न्यायिक अधिकारी तलाक की डिक्री देने के लिए एक अस्तित्वहीन वैधानिक प्रावधान पर भरोसा कैसे कर सकता है।”
SMA के तहत विवाह की पवित्रता: हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट की इस टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई कि SMA के तहत विवाह को “पवित्र मिलन” (holy union) नहीं कहा जा सकता। खंडपीठ ने कहा:
“विद्वान जज का यह निष्कर्ष कि SMA के तहत संपन्न विवाहों को ‘पवित्र मिलन’ नहीं माना जा सकता, एक अनुचित व्याख्या है… SMA एक धर्मनिरपेक्ष कोड है… और यह किसी भी तरह से ऐसे विवाहों की गरिमा, गंभीरता या संजीदगी को कम नहीं करता है।”
प्रक्रियात्मक अनियमितता: कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट ने गवाही के लिए निर्धारित पहली ही तारीख पर पत्नी का साक्ष्य का अधिकार बंद करके “अनुचित” (unreasonably) कार्य किया है। बेंच ने कहा:
“पहले ही अवसर पर पत्नी के मौखिक गवाही देने के अधिकार को बंद करना, बिना कोई और प्रभावी मौका दिए, प्रथम दृष्टया अनुचित और अतार्किक है और यह स्थापित प्रक्रियात्मक मानदंडों और प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांतों के खिलाफ है।”
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि उक्त फैमिली कोर्ट जज ने अन्य मामलों (उपिंदर कौर मल्होत्रा, लवली शर्मा, आदि) में भी इसी तरह का पैटर्न अपनाया था, जहां अनिवार्य वैधानिक आवश्यकताओं को दरकिनार करने के लिए प्रक्रियात्मक लचीलेपन का हवाला दिया गया।
फैसला
हाईकोर्ट ने माना कि चुनौती दिया गया फैसला “कानूनन अस्थिर” (unsustainable in law) है क्योंकि यह अस्तित्वहीन प्रावधानों पर आधारित था और इसमें उचित साक्ष्य का अभाव था।
- अपील स्वीकार: 28 मार्च 2024 के फैसले को रद्द (set aside) कर दिया गया।
- रिमांड: मामले को नए सिरे से न्यायनिर्णयन (de novo adjudication) के लिए प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, पटियाला हाउस कोर्ट्स के पास वापस भेजा गया।
- साक्ष्य के लिए निर्देश: फैमिली कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह दोनों पक्षों को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति दे।
- ट्रेनिंग का निर्देश: कोर्ट ने निर्देश दिया कि संबंधित न्यायिक अधिकारी “भविष्य में किसी भी वैवाहिक मामले का फैसला करने से पहले… वैवाहिक कानूनों में एक उपयुक्त और व्यापक रिफ्रेशर ट्रेनिंग प्रोग्राम से गुजरेंगे।”
पक्षकारों को 5 दिसंबर 2025 को प्रधान न्यायाधीश, फैमिली कोर्ट, पटियाला हाउस कोर्ट्स के समक्ष उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है।

