सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 1 दिसंबर को उन विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई के लिए सहमति दे दी जिनमें वक्फ संपत्तियों—जिसमें वक्फ बाय यूज़र भी शामिल है—को UMEED पोर्टल पर अनिवार्य रूप से पंजीकृत करने की समय-सीमा बढ़ाने की मांग की गई है। इनमें ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और AIMIM नेता असदुद्दीन ओवैसी द्वारा दायर याचिकाएँ भी शामिल हैं।
जस्टिस दीपांकर दत्त और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अधिवक्ता फ़ुज़ैल अहमद अय्यूबी की जल्द सुनवाई की प्रार्थना पर मामले को सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई।
बेंच ने आदेश दिया, “इन आवेदनों को I.A. No … के साथ 1 दिसंबर 2025 को सूचीबद्ध किया जाए।”
15 सितंबर के अंतरिम आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को पूरी तरह स्थगित करने से इनकार कर दिया था, लेकिन कुछ प्रमुख प्रावधानों—जैसे कि केवल वे व्यक्ति वक्फ बना सकेंगे जो पिछले पाँच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हों—को रोक दिया था।
साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा था कि संशोधित कानून से वक्फ बाय यूज़र प्रावधान हटाने का केंद्र का फैसला prima facie मनमाना नहीं है और यह आशंका कि सरकार वक्फ भूमि पर कब्ज़ा कर लेगी, “टिकाऊ नहीं” है।
वक्फ बाय यूज़र उस स्थिति को कहा जाता है जहाँ संपत्ति को लंबे समय तक धार्मिक या परोपकारी उपयोग के आधार पर वक्फ माना जाता है, भले ही मालिक द्वारा औपचारिक घोषणा न की गई हो।
केंद्र ने 6 जून को Unified Waqf Management, Empowerment, Efficiency and Development (UMEED) पोर्टल लॉन्च किया था, जिसके तहत देशभर की वक्फ संपत्तियों का जियो-टैग्ड डिजिटल रिकॉर्ड तैयार किया जा रहा है। सभी पंजीकृत वक्फ संपत्तियों को छह महीने के भीतर पोर्टल पर अपलोड करना अनिवार्य है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि हजारों संपत्तियों का रिकॉर्ड जुटाना और अपलोड करना समय-साध्य प्रक्रिया है, इसलिए समय-सीमा बढ़ाई जानी चाहिए।
अब मामला 1 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में सुना जाएगा।




