सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग (SEC) को लंबित स्थानीय निकाय चुनाव कराने की अनुमति दे दी, लेकिन यह स्पष्ट कर दिया कि सभी निकायों के चुनाव परिणाम — उन निकायों सहित जहाँ कुल आरक्षण 50% की सीमा से अधिक है — उसके अंतिम निर्णय पर निर्भर रहेंगे।
मुख्य न्यायाधीश सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने SEC की यह जानकारी दर्ज की कि 246 नगरपालिका परिषदों में से केवल 40 में और 42 नगर पंचायतों में से केवल 17 में आरक्षण सीमा का उल्लंघन हुआ है। इस बयान को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया आगे बढ़ सकती है, लेकिन नतीजे अभी “अस्थायी” रहेंगे और अंतिम फैसला आने के बाद ही मान्य माने जा सकेंगे।
पीठ ने यह भी कहा कि जहाँ आरक्षण सीमा का विवाद नहीं है, वहाँ जिला परिषद, पंचायत समिति और नगर परिषद के चुनाव भी जारी रह सकते हैं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “आज हम सिर्फ एक अस्थायी व्यवस्था कर रहे हैं। 21 जनवरी को तीन-जजों की पीठ सुनवाई करेगी। दोनों पक्षों को इससे कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”
अदालत ने बताया कि ओबीसी आरक्षण से जुड़ी कुल 27 याचिकाएँ 21 जनवरी 2026 को तीन-जज पीठ के समक्ष अंतिम सुनवाई के लिए रखी जाएँगी।
ये मामले दिसंबर 2021 के उस आदेश के बाद लंबित हैं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि स्थानीय निकायों में ओबीसी आरक्षण तभी लागू हो सकता है जब ट्रिपल-टेस्ट पूरा हो। ट्रिपल-टेस्ट में शामिल है:
- ओबीसी की सामाजिक-शैक्षिक पिछड़ेपन पर समर्पित आयोग द्वारा आँकड़ों का संग्रह,
- उस आँकड़ों के आधार पर आरक्षण का अनुपात तय करना, और
- कुल आरक्षण (SC/ST/OBC) को 50% से अधिक न होने देना।
मार्च 2022 में राज्य ने जयंत कुमार बंथिया आयोग का गठन किया था, जिसने जुलाई 2022 में अपनी रिपोर्ट दी। इसके बाद जस्टिस ए.एम. खानविलकर (सेवानिवृत्त) की अगुवाई वाली पीठ ने उसकी अनुशंसाओं को मंजूरी दी थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने दलील दी कि इन पुराने आदेशों के कारण स्थानीय अधिकारियों में भ्रम पैदा हुआ और उन्होंने इसे 50% की सीमा से ऊपर आरक्षण की अनुमति समझ लिया।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने राज्य की ओर से कहा कि अधिकारियों ने अदालत के आदेशों की “सद्भावनापूर्ण व्याख्या” के आधार पर ही कदम उठाए थे।
मई 2025 में मौजूदा पीठ ने महाराष्ट्र को चार महीने में चुनाव पूरा करने और बंथिया रिपोर्ट से पहले की कानूनी व्यवस्था के आधार पर ही ओबीसी आरक्षण देने का निर्देश दिया था। कुछ सप्ताह पहले अदालत को स्पष्ट करना पड़ा कि इस आदेश का अर्थ 50% सीमा पार करना नहीं है।
पीठ इससे पहले SEC को आदेशों का पालन न करने पर फटकार लगा चुकी है और निर्देश दिया था कि 2022 से रुके हुए स्थानीय निकाय चुनाव 31 जनवरी 2026 तक हर हाल में पूरे कराए जाएँ।
19 नवंबर को अदालत ने राज्य सरकार से नामांकन प्रक्रिया स्थगित रखने पर भी विचार करने को कहा था, ताकि ओबीसी आरक्षण का मुद्दा पहले तय हो सके।
शुक्रवार के आदेश के बाद अब चुनाव तो आगे बढ़ेंगे, लेकिन किसी भी निकाय का परिणाम तब तक अंतिम नहीं होगा, जब तक सुप्रीम कोर्ट ओबीसी आरक्षण और 50% सीमा पर अपना निर्णायक फैसला नहीं दे देता।




