सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण देते हुए कहा है कि जब कोई हाईकोर्ट, ट्रायल कोर्ट द्वारा खारिज किए गए वाद पत्र (plaint) के आदेश को रद्द कर मुकदमे को बहाल (restore) करता है, तो इसका यह अर्थ नहीं है कि प्रारंभिक आपत्तियों को नजरअंदाज कर दिया गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि मुकदमे की बहाली का मतलब है कि लिमिटेशन (परिसीमा) और रेस ज्यूडिकाटा (Res Judicata) जैसे मुद्दों सहित सभी पहलुओं पर कानून के अनुसार फैसला लिया जाएगा।
जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के उस फैसले को सही ठहराया, जिसमें ट्रायल कोर्ट के वाद पत्र खारिज करने के आदेश को पलट दिया गया था।
क्या था कानूनी विवाद?
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य सवाल यह था कि क्या कर्नाटक हाईकोर्ट ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश VII नियम 11 (a) और (d) के तहत वाद पत्र खारिज करने वाले ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द करके सही किया था? अपीलकर्ता (प्रतिवादी) का तर्क था कि मुकदमा कानूनन वर्जित है, जबकि हाईकोर्ट ने इसे विचारणीय मानते हुए बहाल कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सी.एम. मीनाक्षी द्वारा दायर अपील को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि मुकदमे की बहाली के बाद ट्रायल कोर्ट को गुण-दोष (merits) के साथ-साथ मेंटेनेबिलिटी (पोषणीयता) के मुद्दों पर भी निर्णय लेना होगा।
मामले की पृष्ठभूमि
यह विवाद बैंगलोर साउथ तालुक के बिलेकहल्ली गांव स्थित 1 एकड़ 04 गुंटा जमीन से जुड़ा है। उत्तरदाताओं-वादियों (आर्कबिशप ऑफ बैंगलोर व अन्य) ने एक मूल वाद (O.S. No. 26246/2023) दायर किया था, जिसमें उन्होंने निम्नलिखित राहत मांगी थी:
- विवादित संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व (absolute ownership) की घोषणा।
- यह घोषणा कि O.S. No. 26051/2014 में पारित फैसला उन पर बाध्यकारी नहीं है।
- वर्ष 2014 और 2020 के बैनामा (Sale Deeds) को शून्य और अमान्य घोषित करना।
- प्रतिवादियों को संपत्ति में किसी भी प्रकार का बदलाव करने या उसे बेचने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction)।
मुकदमे के दौरान, प्रतिवादियों ने CPC के आदेश VII नियम 11 के तहत एक आवेदन (I.A. No. 3) दायर किया, जिसमें वाद पत्र को खारिज करने की मांग की गई। 15 मार्च, 2024 को बेंगलुरु की निचली अदालत (73rd Additional City Civil and Sessions Judge) ने इस आवेदन को स्वीकार करते हुए वाद पत्र खारिज कर दिया था।
इसके खिलाफ वादियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कर्नाटक हाईकोर्ट ने 27 जून, 2024 को अपील स्वीकार करते हुए ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द कर दिया और मुकदमा बहाल कर दिया। इसी आदेश को चुनौती देते हुए प्रतिवादी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता का पक्ष: वरिष्ठ अधिवक्ता श्री आनंद ग्रोवर ने अपीलकर्ता की ओर से तर्क दिया कि हाईकोर्ट का फैसला गलत है क्योंकि:
- कोई वाद कारण (Cause of Action) नहीं: वाद पत्र में कोई वैध ‘कॉज ऑफ एक्शन’ का खुलासा नहीं किया गया है।
- लिमिटेशन एक्ट: मांगी गई राहतें परिसीमा कानून (Limitation) द्वारा वर्जित हैं।
- रेस ज्यूडिकाटा: वादियों ने पहले भी चार मुकदमे दायर किए थे जो या तो खारिज हो गए या वापस ले लिए गए। इसलिए, ‘रेस ज्यूडिकाटा’ के सिद्धांत के तहत वर्तमान मुकदमा चलने योग्य नहीं है।
- CPC आदेश II नियम 2: वर्तमान राहतें पिछले मुकदमों में भी मांगी जा सकती थीं, इसलिए यह नया मुकदमा वर्जित है।
उत्तरदाताओं का पक्ष: उत्तरदाताओं-वादियों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने हाईकोर्ट के आदेश का बचाव करते हुए कहा:
- ट्रायल का विषय: भले ही लिमिटेशन या रेस ज्यूडिकाटा के मुद्दे हों, ये सब ट्रायल (सुनवाई) के दौरान तय किए जाने वाले विषय हैं। इन्हें शुरुआती चरण में ही आधार बनाकर वाद खारिज नहीं किया जा सकता।
- गलत अस्वीकृति: ट्रायल कोर्ट ने बिना पूरी सुनवाई के वाद पत्र खारिज कर गलती की थी।
कोर्ट का विश्लेषण और फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने मामले के तथ्यों और हाईकोर्ट के फैसले का विश्लेषण किया। प्रतिवादी संख्या 11 की ओर से यह आशंका जताई गई थी कि हाईकोर्ट के आदेश का मतलब यह निकाला जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट को अब लिमिटेशन और रेस ज्यूडिकाटा जैसे मुद्दों पर विचार नहीं करना है।
इस पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने फैसले में स्पष्ट किया:
“हम नहीं मानते कि हाईकोर्ट के फैसले का यह निहितार्थ है… हाईकोर्ट का केवल इतना कहना था कि मुकदमा ट्रायल कोर्ट की फाइल पर बहाल किया गया है और इसका निर्णय कानून के अनुसार किया जाना है, जिसमें गुण-दोष के अलावा उपरोक्त सभी मुद्दे (लिमिटेशन, रेस ज्यूडिकाटा आदि) भी शामिल होंगे।”
कोर्ट ने श्रीहरि हनुमानदास टोटला बनाम हेमंत विठ्ठल कामत (2021) और शक्ति भोग फूड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया (2020) के फैसलों का हवाला दिया।
अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने अपील खारिज कर दी और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि दोनों पक्षों के सहयोग से मुकदमे का निपटारा जल्द से जल्द किया जाए।




