जयपुर: राजस्थान हाईकोर्ट ने कक्षा 6 की छात्रा के साथ अनैतिक यौन व्यवहार (Immoral Sexual Behaviour) के दोषी पाए गए केंद्रीय विद्यालय संगठन (KVS) के एक शिक्षक की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है। जस्टिस विनीत कुमार माथुर और जस्टिस रवि चिराानिया की खंडपीठ ने ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ (जहां नारियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं) श्लोक का उद्धरण देते हुए कहा कि शिक्षक का कृत्य शर्मनाक था। कोर्ट ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (CAT), जयपुर के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।
मामले का संक्षिप्त विवरण
याचिकाकर्ता यतेंद्र कुमार नागोरी (62 वर्ष) को 1990 में केंद्रीय विद्यालय, जयपुर क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था। 6 फरवरी 2015 को उनके खिलाफ एक नाबालिग छात्रा (जिसे फैसले में ‘A’ कहा गया है) के साथ अनैतिक यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार की शिकायत दर्ज कराई गई थी।
शिकायत के बाद गठित एक समिति ने आरोपों की पुष्टि की, जिसके बाद याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया गया। इसके बाद केवीएस, अहमदाबाद के उपायुक्त द्वारा गठित एक ‘समरी इंक्वायरी कमेटी’ ने भी अपनी रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को प्रथम दृष्टया अनैतिक व्यवहार में शामिल पाया। परिणामस्वरुप, 16 अक्टूबर 2015 को अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने शिक्षा संहिता (Education Code) के अनुच्छेद 81(बी) के तहत उनकी सेवाएं समाप्त कर दीं। याचिकाकर्ता ने इसे कैट (CAT) में चुनौती दी, लेकिन वहां से राहत न मिलने पर उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता के वकील राजेंद्र प्रसाद भदौरिया ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने दलील दी कि यह पूरी कहानी एक अन्य शिक्षिका, सुश्री साधना के इशारे पर छात्रा के माता-पिता द्वारा रची गई थी, क्योंकि याचिकाकर्ता ने उक्त शिक्षिका द्वारा ली जा रही निजी ट्यूशन पर आपत्ति जताई थी।
वकील ने यह भी कहा कि पीड़ित छात्रा के दो बयानों में भारी विरोधाभास है और जांच समिति ने अन्य छात्रों पर दबाव डालकर बयान दर्ज किए। उन्होंने आरोप लगाया कि अनुच्छेद 81(बी) की अनिवार्य शर्तों का पालन किए बिना जल्दबाजी में सेवाएं समाप्त की गईं।
हाईकोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
फैसला सुनाते हुए खंडपीठ ने भारतीय संस्कृति में महिलाओं के सम्मान पर जोर दिया। कोर्ट ने अपने आदेश की शुरुआत संस्कृत श्लोक के साथ की और टिप्पणी की:
“भारतीय संस्कृति और समाज में, समुदाय की भलाई के लिए महिलाओं का सम्मान और आदर किया जाता है… वर्तमान मामले में, कक्षा 6 में पढ़ने वाली एक बच्ची उस व्यक्ति का शिकार बनी है जो युवा छात्रों के भविष्य को संवारने के लिए जिम्मेदार था।”
पीड़िता के बयान की विश्वसनीयता कोर्ट ने छात्रा के बयानों की जांच की, जिसमें उसने घटना का विवरण दिया था कि कैसे याचिकाकर्ता ने उसे अनुचित तरीके से स्पर्श किया और उसकी शारीरिक बनावट पर आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। कोर्ट ने बचाव पक्ष की दलीलों को खारिज करते हुए कहा:
“हमारी सुविचारित राय में, पीड़ित बच्ची ‘A’ का बयान ही याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त है… इस कोर्ट के पास बच्ची के बयान पर अविश्वास करने का कोई कारण नहीं है क्योंकि बच्ची या उसके परिवार की याचिकाकर्ता से कोई दुश्मनी नहीं थी।”
साजिश की थ्योरी खारिज कोर्ट ने साथी शिक्षिका सुश्री साधना द्वारा साजिश रचे जाने के तर्क को पूरी तरह खारिज कर दिया। बेंच ने कहा कि यह विश्वास करना कठिन है कि कोई शिक्षिका अपना व्यक्तिगत स्कोर सेट करने के लिए एक छोटी बच्ची का इस्तेमाल करेगी। इसके अलावा, 8 अन्य छात्रों ने भी समिति के सामने गवाही दी थी।
फैसला
हाईकोर्ट ने माना कि आरोप अत्यंत गंभीर प्रकृति के थे और बर्खास्तगी का आदेश अपराध के अनुरूप है। कोर्ट ने कहा कि न्यायाधिकरण (Tribunal) ने मामले की विस्तृत जांच की है और सही निष्कर्ष निकाला है। इसके आधार पर रिट याचिका खारिज कर दी गई।
नाबालिगों की पहचान पर निर्देश
फैसले के अंत में, हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी किया। कोर्ट ने नोट किया कि ट्रिब्यूनल के आदेश में पीड़िता का नाम उल्लेखित था। हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिया कि:
“…सभी पीठासीन अधिकारियों (Presiding Officers) को ऐसे मामलों में आदेश या निर्णय पारित करते समय नाबालिग बच्चों के नामों का उल्लेख करने से बचना चाहिए।”




