अनुच्छेद 32 सामान्य सेवा मामलों के लिए ‘खुला राजमार्ग’ नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने भर्ती के खिलाफ याचिका खारिज की

सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), जमशेदपुर द्वारा जारी भर्ती अधिसूचना में अनियमितताओं को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सामान्य सेवा मामलों (Service Matters) को अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट लाने के बजाय, आमतौर पर अनुच्छेद 226 के तहत संबंधित हाईकोर्ट में सुना जाना चाहिए।

जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत उपचार “असाधारण” (extraordinary) है और यह उन शिकायतों के लिए नहीं है जो महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न नहीं उठाते हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

याचिकाकर्ता नीतीश वर्मा ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ‘रिट याचिका (सिविल) संख्या 1004 वर्ष 2025’ दायर कर सुप्रीम कोर्ट के असाधारण क्षेत्राधिकार का आह्वान किया था। याचिका में एनआईटी जमशेदपुर द्वारा जारी एक भर्ती अधिसूचना में कुछ अनियमितताओं का आरोप लगाया गया था, जो विशेष रूप से “आरक्षण और उसकी गणना” से संबंधित थीं।

कोर्ट की टिप्पणियां और विश्लेषण

पीठ ने “सामान्य सेवा मामलों” के लिए सीधे अनुच्छेद 32 का उपयोग करने पर कड़ी आपत्ति जताई। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि हालांकि अनुच्छेद 32 एक मौलिक अधिकार है, लेकिन यह हर शिकायत के लिए उचित मंच नहीं है।

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अपने आदेश में पीठ ने महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा:

“इस कोर्ट ने बार-बार जोर दिया है कि अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की आड़ में हर शिकायत के लिए कोई ‘खुला राजमार्ग’ (open highway) नहीं है। यह एक पवित्र संवैधानिक धमनी है जिसका उपयोग तब किया जाना चाहिए जब स्वतंत्रता का जीवन रक्त (life blood of liberty) ही खतरे में हो, न कि नियमित सेवा मामलों के लिए, जिनका स्वाभाविक स्थान भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट्स के समक्ष है।”

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कोर्ट ने कहा कि बयानबाजी को हटा दिया जाए तो, वर्तमान याचिका में न तो कोई महत्वपूर्ण संवैधानिक प्रश्न उठता है और न ही कोई ऐसी असाधारण परिस्थिति है जिसके लिए इस कोर्ट के सीधे हस्तक्षेप की आवश्यकता हो। जजों ने कहा कि भर्ती अधिसूचना के तहत आरक्षण की गणना से जुड़ी शिकायत को “संवैधानिक संकट का रूप लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती।”

संवैधानिक उपचार की पवित्रता पर प्रकाश डालते हुए, कोर्ट ने कहा:

“जबकि यह कोर्ट मौलिक अधिकारों के संरक्षक और प्रहरी के रूप में खड़ा है, इसे वादियों को यह भी याद दिलाना होगा कि बिना उचित कारण के अनुच्छेद 32 के दरवाजे पर दी गई हर दस्तक इसकी पवित्रता को कम करती है। संवैधानिक उपचार असाधारण बने रहने के लिए है, सजावटी या आदतन नहीं।”

पीठ ने संवैधानिक उपायों को ‘शॉर्टकट’ के रूप में इस्तेमाल न करने की सलाह देते हुए कहा:

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“अनुच्छेद 32 की महिमा इसके आह्वान की आवृत्ति (frequency) में नहीं, बल्कि उस कारण की गंभीरता में निहित है जो इसे अनिवार्य बनाती है।”

निर्णय

नतीजतन, सुप्रीम कोर्ट ने रिट याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि, कोर्ट ने याचिकाकर्ता को “क्षेत्राधिकार वाले हाईकोर्ट के समक्ष उचित राहत मांगने की स्वतंत्रता दी, जो कानूनन उचित मंच है।”

केस डिटेल्स:

  • केस टाइटल: नीतीश वर्मा बनाम भारत संघ और अन्य
  • केस नंबर: रिट याचिका (सिविल) संख्या 1004/2025
  • कोरम: जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस एस.वी.एन. भट्टी
  • याचिकाकर्ता के वकील: श्री बाबुल कुमार, सुश्री मोनिका, श्री अजीम खान और सुश्री अश्वथी एम.के. (एओआर)

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