जस्टिस सूर्य कांत ने सोमवार को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में शपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक भव्य समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। जस्टिस सूर्य कांत ने जस्टिस बी.आर. गवई का स्थान लिया है, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं।
नए मुख्य न्यायाधीश के रूप में जस्टिस सूर्य कांत का कार्यकाल 9 फरवरी, 2027 तक रहेगा। उन्हें लगभग 14 महीने से अधिक का समय मिलेगा, जो सुप्रीम कोर्ट के प्रशासनिक ढांचे को सुदृढ़ करने और न्यायिक एजेंडे को दिशा देने के लिए एक महत्वपूर्ण अवधि मानी जा रही है।
इस शपथ ग्रहण समारोह में एक ऐतिहासिक क्षण तब देखने को मिला जब भूटान, केन्या, मलेशिया, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका के न्यायाधीशों का एक प्रतिनिधिमंडल भी मौजूद रहा, जो अंतरराष्ट्रीय न्यायिक सहयोग की दिशा में एक सकारात्मक कदम है।
हिसार से शीर्ष अदालत तक का सफर
जस्टिस सूर्य कांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हरियाणा के हिसार जिले के पेटवाड़ गांव में हुआ था। उनकी कानूनी यात्रा 1984 में हिसार जिला अदालत से शुरू हुई। इसके बाद 1985 में उन्होंने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में वकालत शुरू की, जहां उन्होंने संवैधानिक, सेवा और दीवानी मामलों में विशेषज्ञता हासिल की।
जुलाई 2000 में उन्हें हरियाणा का महाधिवक्ता (Advocate General) नियुक्त किया गया; वे इस पद को संभालने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। 9 जनवरी, 2004 को उन्हें पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का स्थायी न्यायाधीश बनाया गया। इसके बाद, 5 अक्टूबर, 2018 को उन्होंने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाला और 24 मई, 2019 को उन्हें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।
प्राथमिकता: लंबित मामले और संविधान पीठ
CJI का पदभार संभालते ही जस्टिस सूर्य कांत के सामने अदालतों में लंबित मुकदमों का विशाल बैकलॉग एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि भारतीय न्यायपालिका में पेंडेंसी को कम करना उनकी “सर्वोच्य प्राथमिकता” होगी।
न्याय के प्रति वादी-केंद्रित (litigant-centric) दृष्टिकोण पर जोर देते हुए, उन्होंने हाल ही में एक सुनवाई के दौरान कहा था, “लोगों को फैसलों की जरूरत है, उन्हें न्यायशास्त्र या किसी और चीज से मतलब नहीं है। राहत दी गई है या नहीं, इस पर एक तर्कसंगत आदेश दिया जाना चाहिए।”
रिपोर्ट्स के मुताबिक, नए सीजेआई आने वाले हफ्तों में कानून के लंबे समय से लंबित सवालों को सुलझाने के लिए पांच, सात और नौ जजों की संविधान पीठों का गठन करने की योजना बना रहे हैं। इसके अलावा, अदालतों पर बोझ कम करने के लिए वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र, विशेष रूप से मध्यस्थता (Mediation) को मजबूत करना उनके प्रमुख एजेंडे में शामिल होगा।
महत्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, जस्टिस सूर्य कांत ने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करने वाली पीठों का नेतृत्व किया है:
- चुनावी अखंडता: जस्टिस कांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) से संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई की और सटीक गणना सुनिश्चित करने के लिए चुनाव आयोग के जनादेश को सुदृढ़ किया।
- साइबर अपराध और “डिजिटल अरेस्ट”: “डिजिटल अरेस्ट” घोटालों के बढ़ते खतरे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए, उनकी पीठ ने हाल ही में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी किया, ताकि इस पर एक ठोस कानूनी प्रतिक्रिया तैयार की जा सके।
- सोशल मीडिया की जवाबदेही: सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स की जवाबदेही पर जस्टिस कांत ने कड़ा रुख अपनाया है। हाल ही में एक मामले में उन्होंने टिप्पणी की थी कि बोलने की आजादी के साथ कर्तव्य भी जुड़े हैं और समाज को शर्मिंदा करने वाले या “विकृत मानसिकता” वाले कंटेंट से सख्ती से निपटा जाएगा।
- मानवाधिकार और जेल सुधार: हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में, उन्होंने जसवीर सिंह मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था, जिसमें जेल सुधार समिति के गठन का निर्देश दिया गया था और कैदियों के लिए ‘वैवाहिक मुलाकातों’ (conjugal visits) को जीवन के मौलिक अधिकार का हिस्सा माना गया था।
कानूनी बिरादरी की उम्मीदें
कानूनी जगत को उम्मीद है कि जस्टिस सूर्य कांत का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट में स्थिरता लाएगा और मुकदमों के त्वरित निपटारे का मार्ग प्रशस्त करेगा। इस ऐतिहासिक अवसर का गवाह बनने के लिए हिसार डिस्ट्रिक्ट बार एसोसिएशन के वकीलों की एक बड़ी संख्या राजधानी में मौजूद थी।




