बेईमानी की हद! ‘पैसे दो और मनचाही तारीख का बर्थ सर्टिफिकेट लो’ – इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव को किया तलब

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश में जन्म प्रमाण पत्र जारी करने की मौजूदा व्यवस्था पर कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने सिस्टम को “अव्यवस्थित” (Mess) करार देते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य में कोई भी व्यक्ति, कहीं से भी और अपनी मर्जी की तारीख वाला जन्म प्रमाण पत्र बनवा सकता है।

न्यायमूर्ति अतुल श्रीधरन और न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने शिवांकी बनाम भारत संघ व अन्य (रिट-सी संख्या 40200/2025) के मामले में सुनवाई करते हुए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने उनसे पूछा है कि इस तरह की विसंगतियां क्यों मौजूद हैं और सिस्टम को सुधारने के लिए क्या कदम उठाए जा रहे हैं।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला याचिकाकर्ता शिवांकी से संबंधित है। सुनवाई के दौरान यूआईडीएआई (UIDAI) के क्षेत्रीय कार्यालय, लखनऊ के उप निदेशक द्वारा 17 नवंबर, 2025 के निर्देशों के आधार पर कुछ दस्तावेज पेश किए गए। इन दस्तावेजों में याचिकाकर्ता के दो अलग-अलग जन्म प्रमाण पत्र संलग्न थे, जो अलग-अलग जगहों से जारी किए गए थे और उनमें जन्म तिथि भी भिन्न थी:

  1. पहला प्रमाण पत्र: यह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC), मनौता के जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रार द्वारा जारी किया गया था। इसमें याचिकाकर्ता की जन्म तिथि 10.12.2007 दर्ज है, जिसे 21.08.2020 को जारी किया गया था।
  2. दूसरा प्रमाण पत्र: यह ग्राम पंचायत हर सिंहपुर द्वारा जारी किया गया था। इसमें जन्म तिथि 01.01.2005 दिखाई गई है, और पंजीकरण की तारीख 14.11.2022 है।
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कोर्ट की तल्ख टिप्पणी

एक ही व्यक्ति के दो वैध सरकारी प्रमाण पत्रों में अलग-अलग जन्म तिथियां देखकर पीठ ने सिस्टम की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि यह स्थिति दर्शाती है कि सिस्टम पूरी तरह से विफल हो चुका है।

कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा:

“प्रथम दृष्टया, यह एक अव्यवस्था (Mess) है। ऐसा प्रतीत होता है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी समय, राज्य में कहीं से भी, अपनी मर्जी की तारीख वाला जन्म प्रमाण पत्र बनवा सकता है।”

फर्जी दस्तावेजों की आसानी से उपलब्धता पर चिंता जताते हुए कोर्ट ने आगे कहा:

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“एक तरह से यह हर स्तर पर मौजूद बेईमानी की सीमा को दर्शाता है और यह भी बताता है कि ऐसे दस्तावेज बनवाना कितना आसान है, जिनका उपयोग आपराधिक मुकदमों में भी साक्ष्य के रूप में किया जा सकता है।”

हाईकोर्ट के निर्देश

स्थिति की गंभीरता को देखते हुए, कोर्ट ने चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव को इस याचिका में प्रतिवादी संख्या 4 के रूप में पक्षकार बनाया है। कोर्ट ने उन्हें एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करने का आदेश दिया है, जिसमें निम्नलिखित बिंदुओं पर जानकारी मांगी गई है:

  • विभाग की स्थिति: जन्म प्रमाण पत्र जारी करने के संबंध में विभाग में मौजूदा स्थिति का स्पष्टीकरण।
  • फर्जीवाड़े पर रोक: यह सुनिश्चित करने के लिए क्या प्रावधान मौजूद हैं कि कोई फर्जी प्रमाण पत्र जारी न हो सके।
  • सुधारात्मक कदम: यदि सिस्टम टूटा हुआ है, तो इस विसंगति को दूर करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक व्यक्ति का केवल एक ही जन्म प्रमाण पत्र जारी हो, विभाग तत्काल क्या कदम उठाने का प्रस्ताव रखता है।
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कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौजूदा हालात में सिस्टम टूटा हुआ नजर आ रहा है। मामले की अगली सुनवाई 10 दिसंबर, 2025 को होगी, तब तक प्रमुख सचिव को अपना जवाब दाखिल करना होगा।

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