इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 26 सितंबर को बरेली में हुई हिंसा से संबंधित एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया है और कहा कि आरोपी कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपायों का उपयोग कर सकता है।
न्यायमूर्ति अजय भानोट और न्यायमूर्ति गरिमा प्रसाद की खंडपीठ ने 13 नवंबर के आदेश में आदनान द्वारा दायर याचिका का निपटारा कर दिया। आदनान इस मामले में आरोपी हैं और उन्होंने बारादरी थाने में दर्ज एफआईआर को क्वैश करने की मांग की थी।
राज्य सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोप बेहद गंभीर हैं, जिनमें पुलिस बल पर ईंट-पत्थर, तेज़ाब की बोतलें और हथियारों से हमला करना शामिल है। अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह हिंसा उस समय भड़की जब मौलाना तौक़ीर रज़ा ने कथित तौर पर एक विशेष समुदाय के लोगों को इस्लामिया इंटर कॉलेज में जुटने का आह्वान किया, जबकि उस समय भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 163 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी।
बताया गया कि 200–250 लोगों की भीड़ प्लेकार्ड लेकर और नारे लगाते हुए इकट्ठा हुई और पुलिस की समझाइश को नज़रअंदाज़ किया। हालात तब बिगड़े जब भीड़ को रोका गया और वह आक्रामक हो गई। एफआईआर के अनुसार, भीड़ की ओर से पुलिस पर पत्थर, ईंट और तेज़ाब की बोतलें फेंकी गईं और फायरिंग भी की गई। इस दौरान दो पुलिसकर्मी घायल हुए और उनके कपड़े फट गए।
राज्य के वकील ने कहा कि इस तरह के अपराधों का प्रभाव दूर तक पड़ सकता है और सार्वजनिक सुरक्षा व शांति के लिए खतरा पैदा कर सकता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि इस स्तर पर कोई भी अंतरिम राहत जांच को प्रभावित कर सकती है, और इस मुद्दे पर कई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया।
कुछ बहस के बाद, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि वह एफआईआर रद्द करने के अनुरोध पर अब जोर नहीं देना चाहते। इसके बाद अदालत ने राहत देने से इनकार कर दिया।
अंततः, हाईकोर्ट ने याचिका का निपटारा करते हुए आदनान को सक्षम न्यायालय के समक्ष उचित कानूनी उपायों के लिए जाने की स्वतंत्रता प्रदान की।




