यदि पक्षकार की गलती से अपील में देरी हुई है, तो वैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार कर रिट याचिका दायर नहीं की जा सकती: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि कोई वादी वैधानिक समय सीमा (Limitation Period) के भीतर अपील करने में विफल रहता है, तो वह अपनी गलती को सुधारने के लिए हाईकोर्ट के रिट अधिकार क्षेत्र (Writ Jurisdiction) का सहारा नहीं ले सकता। शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें एक वादी की रिट याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि उसने सीमा शुल्क अधिनियम (Customs Act), 1962 के तहत उपलब्ध वैधानिक अपील के विकल्प को नहीं अपनाया था।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस अरविंद कुमार की खंडपीठ ने कहा कि जब कानून में एक विशिष्ट मंच (Forum) उपलब्ध है—विशेष रूप से जब वह मंच स्वयं हाईकोर्ट ही है—तो संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत रिट क्षेत्राधिकार का उपयोग वैधानिक प्रक्रिया को दरकिनार (Bypass) करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।

मामले का संक्षिप्त विवरण

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी प्रश्न यह था कि क्या हाईकोर्ट द्वारा रिट याचिका पर विचार करने से इनकार करना उचित था, जब अपीलकर्ता ने सीमा शुल्क अधिनियम के तहत अपील/रेफरेंस के वैधानिक उपाय का उपयोग निर्धारित समय सीमा के भीतर नहीं किया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि कोई भी पक्षकार समय पर वैधानिक उपचार न लेने की अपनी गलती को छिपाने के लिए रिट क्षेत्राधिकार का आह्वान नहीं कर सकता।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला 27 सितंबर, 1992 की एक घटना से संबंधित है, जिसमें तस्करी के आरोप में 252.177 किलोग्राम चांदी जब्त की गई थी। 7 मई, 1996 को सीमा शुल्क और केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्त (प्रतिवादी संख्या 3) ने जब्त की गई चांदी को राजसात (Confiscate) करने का आदेश दिया और अपीलकर्ता, रिखब चंद जैन पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया।

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अपीलकर्ता ने इस आदेश को सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और स्वर्ण (नियंत्रण) अपीलीय न्यायाधिकरण (CEGAT) के समक्ष चुनौती दी। 23 जून, 2000 के अपने आदेश में, CEGAT ने जब्ती के आदेश में हस्तक्षेप नहीं किया, लेकिन जुर्माने की राशि को घटाकर 30,000 रुपये कर दिया।

सीमा शुल्क अधिनियम, 1962 की धारा 130 (तत्कालीन धारा 130A) के तहत, अपीलकर्ता के पास 180 दिनों के भीतर हाईकोर्ट में रेफरेंस आवेदन दायर करने का अधिकार था। हालांकि, अपीलकर्ता ने इस अवधि के भीतर CEGAT के आदेश को चुनौती नहीं दी। इसके बजाय, लगभग तीन साल बाद, 18 मार्च, 2003 को उन्होंने राजस्थान हाईकोर्ट (जयपुर बेंच) में रिट याचिका दायर कर आयुक्त और CEGAT दोनों के आदेशों को चुनौती दी।

हाईकोर्ट ने 14 मार्च, 2011 को रिट याचिका को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि अपीलकर्ता ने वैकल्पिक उपाय (Alternative Remedy) का पालन नहीं किया और CEGAT का आदेश अंतिम हो चुका था।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ और विश्लेषण

1. वैकल्पिक उपाय और रिट क्षेत्राधिकार सुप्रीम कोर्ट ने इस कानूनी स्थिति को स्वीकार किया कि वैकल्पिक उपाय की उपलब्धता रिट कोर्ट के अधिकार क्षेत्र को पूरी तरह से खत्म नहीं करती है। हालांकि, कोर्ट ने उन मामलों के लिए एक महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट किया जहां वैकल्पिक मंच स्वयं हाईकोर्ट है।

पीठ ने कहा:

“हालांकि, वर्तमान मामले की तरह, यदि कानून द्वारा निर्धारित वैकल्पिक मंच स्वयं हाईकोर्ट ही है (जिसके अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार क्षेत्र का आह्वान किया गया है) और कोई सामान्य न्यायाधिकरण नहीं, तो याचिका पर विचार करने से इनकार करना ही नियम (Rule) होना चाहिए और उस पर विचार करना एक अपवाद।”

2. संविधान पीठ के फैसलों पर निर्भरता कोर्ट ने थानसिंह नथमल बनाम ए. माजिद (AIR 1964 SC 1419) के संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया, जिसमें यह सिद्धांत स्थापित किया गया था कि हाईकोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत याचिका स्वीकार करके कानून द्वारा बनाई गई मशीनरी को दरकिनार करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।

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इसके अलावा, कोर्ट ने ए.वी. वेंकटेश्वरन बनाम रामचंद सोभराज वाधवानी (AIR 1961 SC 1506) के मामले का भी उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि यदि कोई याचिकाकर्ता अपनी गलती के कारण निर्धारित समय के भीतर वैधानिक उपाय का लाभ उठाने में असमर्थ हो जाता है, तो उसे अनुच्छेद 226 के तहत राहत की मांग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।

3. समय सीमा और देरी अपीलकर्ता द्वारा देरी के लिए दिए गए स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए, कोर्ट ने नोट किया कि रिट याचिका रेफरेंस के लिए निर्धारित समय सीमा समाप्त होने के काफी बाद दायर की गई थी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस संदर्भ में सीमा शुल्क अधिनियम पर परिसीमा अधिनियम (Limitation Act), 1963 लागू होता है।

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 29(2) के तहत देरी की माफी (Condonation of Delay) के अनुरोध के साथ हाईकोर्ट के रेफरेंस क्षेत्राधिकार में जा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कोर्ट ने अपीलकर्ता की रणनीति को एक “(दुस्)साहस” (Misadventure) करार दिया।

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4. दलीलें और मेरिट सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश में एक तथ्यात्मक त्रुटि को सुधारा और माना कि अपीलकर्ता ने वास्तव में CEGAT के समक्ष अपनी अपील में जब्ती (Confiscation) के आदेश को चुनौती दी थी। हालांकि, कोर्ट ने अंततः रिट याचिका में विशिष्ट दलीलों (Specific Pleadings) की कमी के कारण मामले को खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा।

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि याचिका में केवल आधार (Grounds) गिनाना यह दावा करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि ट्रिब्यूनल ने उन पर विचार नहीं किया। इसके लिए शपथ पर विशिष्ट कथन होना आवश्यक है।

“केवल ‘आधार’ शीर्षक के तहत एक आधार का आग्रह करना… बिना किसी के शपथ पर यह जिम्मेदारी लिए कि यह बिंदु उठाया गया था लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया, हमें इस शिकायत पर विचार करने के लिए राजी करने हेतु पर्याप्त नहीं होगा।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को बरकरार रखा और अपील को खारिज कर दिया।

केस विवरण:

  • केस का नाम: रिखब चंद जैन बनाम भारत संघ और अन्य
  • अपील संख्या: सिविल अपील संख्या 6719/2012
  • साइटेशन: 2025 INSC 1337
  • पीठ: जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस अरविंद कुमार

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