छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 के नियम 11(a) और 11(b) को ‘अधिकारतीत’ (Ultra Vires) और असंवैधानिक घोषित कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) मेडिकल कोर्सेज में निवास (Residence) के आधार पर आरक्षण देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह इन नियमों के तहत उल्लेखित श्रेणियों के आधार पर उम्मीदवारों के बीच भेदभाव न करे।
इस मामले में कोर्ट के समक्ष मुख्य कानूनी सवाल यह था कि क्या छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 के नियम 11(a) और 11(b) संवैधानिक रूप से वैध हैं? इन नियमों के तहत राज्य कोटे की सीटों पर उन उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा रही थी जिन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के भीतर स्थित मेडिकल कॉलेजों से अपनी एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की है।
हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए इन नियमों को रद्द कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पीजी मेडिकल कोर्सेज में निवास-आधारित आरक्षण की अनुमति नहीं दी जा सकती और यह समानता के संवैधानिक अधिकार के खिलाफ है।
मामले की पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता डॉ. समृद्धि दुबे छत्तीसगढ़ की स्थायी निवासी हैं और उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा बिलासपुर से पूरी की है। नीट (UG) 2018 में अपनी ऑल इंडिया रैंक के आधार पर उन्होंने सलेम, तमिलनाडु स्थित वीएमकेवी मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल से एमबीबीएस की डिग्री हासिल की। अप्रैल 2024 में अपनी इंटर्नशिप पूरी करने के बाद, वह तमिलनाडु मेडिकल काउंसिल और छत्तीसगढ़ मेडिकल काउंसिल दोनों में पंजीकृत हैं।
याचिकाकर्ता ने नीट (PG)-2025 परीक्षा में भाग लिया और 75,068 की ऑल इंडिया रैंक हासिल की। इसके बाद राज्य सरकार ने पीजी मेडिकल कोर्सेज में प्रवेश के लिए छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 अधिसूचित किए। इन नियमों के नियम 11 में प्राथमिकता की व्यवस्था इस प्रकार थी:
- नियम 11(a): राज्य कोटे की सीटों पर सबसे पहले उन उम्मीदवारों को प्रवेश दिया जाएगा जिन्होंने पं. दीनदयाल उपाध्याय स्मृति स्वास्थ्य विज्ञान एवं आयुष विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ से संबद्ध मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया हो, या जो सेवारत उम्मीदवार हों।
- नियम 11(b): यदि नियम 11(a) के तहत प्रवेश देने के बाद सीटें खाली रह जाती हैं, तो ही छत्तीसगढ़ के बाहर के कॉलेजों से एमबीबीएस करने वाले उम्मीदवारों को प्रवेश दिया जाएगा।
याचिकाकर्ता ने इन नियमों को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि यह व्यवस्था प्रभावी रूप से उन छात्रों के लिए 100% आरक्षण जैसा है जिन्होंने राज्य के भीतर से पढ़ाई की है, जिससे राज्य के उन स्थायी निवासियों के साथ भेदभाव हो रहा है जिन्होंने बाहर से डिग्री ली है।
पक्षकारों की दलीलें
याचिकाकर्ता का तर्क: याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री राजीव श्रीवास्तव ने तर्क दिया कि 2025 के नियमों का नियम 11(a) और 11(b) संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि केवल इस आधार पर कि किसी ने किस विश्वविद्यालय से डिग्री प्राप्त की है, राज्य के निवासियों और अन्य के बीच वर्गीकरण करना अनुचित है।
अधिवक्ता ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले डॉ. तन्वी बहल बनाम श्रेय गोयल व अन्य (2025) का हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि पीजी मेडिकल कोर्सेज में निवास-आधारित आरक्षण स्वीकार्य नहीं है। उनका कहना था कि इस तरह के आरक्षण की अनुमति देना मौलिक अधिकारों का हनन होगा।
राज्य (प्रतिवादी) का तर्क: राज्य की ओर से उप महाधिवक्ता श्री शशांक ठाकुर ने नियमों का बचाव करते हुए कहा कि 2025 के नियमों में ‘डोमिसाइल’ (अधिवास) के आधार पर नहीं बल्कि ‘संस्थागत प्राथमिकता’ (Institutional Preference) के आधार पर व्यवस्था की गई है।
उन्होंने तर्क दिया कि नियम 11(a) उन उम्मीदवारों को प्राथमिकता देता है जिन्होंने राज्य आयुष विश्वविद्यालय से संबद्ध कॉलेजों से एमबीबीएस किया है, चाहे उनका डोमिसाइल कोई भी हो। उन्होंने कहा कि इन कॉलेजों में ऑल इंडिया कोटे के तहत प्रवेश लेने वाले कई छात्र दूसरे राज्यों के निवासी होते हैं, इसलिए यह नियम निवास के आधार पर भेदभाव नहीं करता।
कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियां
हाईकोर्ट ने मुख्य रूप से इस बात पर विचार किया कि क्या विवादित नियमों के तहत दिया गया आरक्षण वास्तव में अस्वीकार्य निवास-आधारित आरक्षण की श्रेणी में आता है। पीठ ने डॉ. तन्वी बहल मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का विस्तार से उल्लेख किया, जिसमें प्रदीप जैन बनाम भारत संघ और सौरभ चौधरी बनाम भारत संघ जैसे पूर्व के निर्णयों का विश्लेषण किया गया था।
कोर्ट ने डॉ. तन्वी बहल मामले से सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को उद्धृत किया:
“शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का लाभ एमबीबीएस पाठ्यक्रमों में एक निश्चित सीमा तक दिया जा सकता है… लेकिन पीजी मेडिकल कोर्स में विशेषज्ञ डॉक्टरों के महत्व को देखते हुए, उच्च स्तर पर ‘निवास’ के आधार पर आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।”
फैसले में सुप्रीम कोर्ट की इस चिंता को भी रेखांकित किया गया कि यदि इस तरह के आरक्षण की अनुमति दी जाती है, तो यह कई छात्रों के मौलिक अधिकारों पर आक्रमण होगा, जिन्हें केवल इसलिए असमान माना जा रहा है क्योंकि वे संघ के किसी अन्य राज्य से संबंधित हैं।
हाईकोर्ट ने जगदीश सरन मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी का भी हवाला दिया, जिसमें उच्च शिक्षा में मेरिट के महत्व पर जोर दिया गया था:
“शिखर पर योग्यता (Merit) का अवमूल्यन करना पेशेवर विशेषज्ञता के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में देश के विकास के साथ समझौता करना है।”
पीठ ने यह भी नोट किया कि इसी तरह का एक मामला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा सावन बोहरा व अन्य बनाम मध्य प्रदेश राज्य (WP No. 38169/2025) में 19 नवंबर, 2025 को तय किया गया था। कोर्ट ने कहा कि चूंकि वर्तमान याचिका में शामिल मुद्दा सावन बोहरा के समान है, इसलिए मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा अपनाए गए दृष्टिकोण से अलग राय नहीं ली जा सकती।
निर्णय
हाईकोर्ट ने रिट याचिका को स्वीकार कर लिया। खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा:
“डॉ. तन्वी बहल (सुप्रा) में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रतिपादित कानून के मद्देनजर, छत्तीसगढ़ मेडिकल पोस्ट ग्रेजुएट एडमिशन रूल्स, 2025 के नियम 11(a) और (b) को अधिकारतीत (Ultra Vires) और भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करने वाला होने के कारण रद्द किया जाता है। राज्य को निर्देश दिया जाता है कि वह नियम 11(a) और (b) में उल्लिखित श्रेणियों के आधार पर उम्मीदवारों के बीच भेदभाव न करे।”
केस विवरण:
- केस शीर्षक: डॉ. समृद्धि दुबे बनाम छत्तीसगढ़ राज्य व अन्य
- केस संख्या: डब्ल्यूपीसी (WPC) नंबर 5937 ऑफ 2025
- पीठ: मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्त गुरु




