बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक मुंबई निवासी के उस व्यवहार पर तीखी टिप्पणी की है, जिसमें उसने अपनी बीमार और अस्पताल में भर्ती 76 वर्षीय मां को कथित तौर पर छोड़ दिया था। अदालत ने कहा कि यह “बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और दुखद स्थिति” है और ऐसा कृत्य “अक्षम्य” है।
जस्टिस ए. एस. गडकरी और जस्टिस आर. आर. भोंसले की खंडपीठ ने सोमवार को दिए आदेश में कहा कि यह मामला अदालत के “अंतरात्मा को झकझोरता है” और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है।
महिला को अगस्त में बांद्रा स्थित होली फैमिली अस्पताल में उसके बेटे ने भर्ती कराया था। मेडिकल जांच में पता चला कि वह कुपोषित थीं और स्ट्रोक से उबर रही थीं।
अस्पताल के अनुसार, बेटे ने शुरुआती भुगतान तो किया, लेकिन बाद में मेडिकल लापरवाही का आरोप लगाकर बाकी भुगतान से इंकार कर दिया। उसने मां को घर ले जाने या किसी अन्य अस्पताल में स्थानांतरित करने से भी इनकार कर दिया। बकाया बिल करीब 16 लाख रुपये है।
महिला अब स्थिर है और डिस्चार्ज की स्थिति में है, इसलिए अस्पताल ने हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाते हुए उसकी सुरक्षित शिफ्टिंग के लिए दिशा-निर्देश मांगे।
अदालत ने नोट किया कि बेटे की ओर से जिम्मेदारी लेने से इनकार — जिसमें अदालत में यह undertaking न देना भी शामिल है कि वह मां की देखभाल करेगा, और फिर कोर्टरूम छोड़कर चले जाना — साफ तौर पर “परित्याग” (abandonment) को दर्शाता है।
पीठ ने कहा, “यह किसी समझदार या जिम्मेदार पुत्र का आचरण नहीं है।”
कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला को तत्काल नगर निगम संचालित भाभा अस्पताल में शिफ्ट किया जाए और उसके खर्चों का भुगतान बेटा करेगा। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है, तो राज्य सरकार को महिला की अभिरक्षा लेकर उसे किसी सरकारी अस्पताल में स्थानांतरित करना होगा।
अदालत ने यह भी नोट किया कि परिवार का फ्लैट महिला के नाम पर है। इसलिए अदालत ने बेटे को उसकी किसी भी संपत्ति से छेड़छाड़ करने या लेन-देन करने से रोकते हुए निर्देश दिया कि वह एक सप्ताह के भीतर उसकी सभी संपत्तियों का विवरण देते हुए शपथपत्र दाखिल करे।
पीठ ने कहा कि यह “बेहद दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण” स्थिति है, जिसमें बुज़ुर्ग महिला की गरिमा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अदालत का दखल आवश्यक हो गया।




